I once heard some students discussing the medieval meaning of nationality. The conclusion was that at that time it had been limited to small states. It was not as vast as present day India.
A sentence is often heard in independent India. If a man from that state and a snake come together, kill the man first and then kill the snake. Medieval trend probably still exists.
Now, Amitabh Bachchan's film "Aarakshan (Reservation)" is getting much publicity in media. In promo Amitabh says, “There are two countries living in India. What's there in the movie, I do not know, however, what he says is no different from the truth.
A few days ago this news appeared in a newspaper:-
“In 1871 the British Parliament raised the issue of adult franchise. Alarm bells started ringing in British India. By 1918, the political ambition had emerged in intellectuals belonging to backward castes. They had started discussing entering politics. Balgangadhar Tilak was restless. He put his real heart into his speech while addressing a gathering at Athani (Maharashtra). He said, "I do not understand what the Teli, Tamboli and Khati Kunbhat (all low castes) would do in Parliament. Will Teli sell oil in Parliament? Will Tamboli stitch clothes in Parliament and Khati Kunbhat (Kurmi or Patidar) plough in the parliament?”
This narrow thinking and limited definition of Swaraj prevails even today. One of my colleagues from Andhra Pradesh had said, “Gandhi became a leader of the nation whereas Gokhale or Tilak should have been the leaders. It was bad luck of this country! "
Such statements must have affected popularity of Tilak. Gandhi had done some work for SCs, STs and OBCs. As a result Teli-Tamboli became his followers. In 1930, freedom fighters from Koli tribe joined his Dandi Marching where they were in great numbers.
If we take Tilak's Statement as product of medieval thinking or thinking of his own time, it can be forgiven. But it is clear from the corruption prevailing in the present day country that his words have become sign boards pointing to his type of Self Rule and independence. Today, it is dangerous for India. Scheduled Castes, Tribes and other backward castes have very little role in Self Rule or independence. In fact they are struggling for human dignity for themselves. Human rights are distant dream for them. Are not they constrained to start a freedom movement for improving their human personality and quality of life?
Budget is provided in government scheme for development of the poor. As per Rajiv Gandhi’s statement only 10% reaches (?) the masses. Will the corrupt let this money (called ‘independence’ in the holiest meaning) reach the righteous hands?
हिंदी विभाग के कुछ विद्यार्थियों को मैंने हिंदी साहित्य के इतिहास के वीरगाथा काल पर बहस करते कभी सुना था. मुद्दा था कि उस समय की राष्ट्रीयता का स्वरूप क्या था. यह प्रश्न उनके बीच बैठे एक राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी ने उठाया था. अंत में संतोषजनक जवाब भी उसी से आया कि तब की राष्ट्रीय भावना छोटे-छोटे राज्यों तक ही सीमित थी. आज जैसे विशाल भारत जैसी उदात्त नहीं थी.
स्वतंत्र भारत में कई राज्यों में कार्य करते हुए एक वाक्य कई बार सुनने में आया कि यदि फलाँ राज्य का व्यक्ति और साँप एक साथ आ जाएँ तो साँप को बाद में मारो और उस व्यक्ति को पहले. शायद वीरगाथा काल की वह पुरानी प्रवृत्ति आज भी कार्य करती है.
इन दिनों अमिताभ बच्चन की एक नई फिल्म ‘आरक्षण’ की चर्चा है. इसके प्रोमो में अमिताभ कहते हैं कि इस देश में दो भारत बसते हैं. इस बात का फिल्म में क्या अर्थ है पता नहीं, परंतु जो नज़र आता है वह सच्चाई से अलग नहीं.
कुछ दिन पूर्व एक समाचार-पत्र में यह पढ़ा है-
'सन् 1871 में ब्रिटिश संसद में प्रौढ़ मताधिकार का मामला उठा. ब्रिटिश इंडिया में खतरे की घंटी बजने लगी. सन् 1918 तक पिछड़ों के बुद्धिजीवयों में राजनैतिक महत्वाकांक्षा का प्रादुर्भाव होने लगा और उनमें राजनीति में प्रवेश की चर्चा होने लगी थी. तब बालगंगाधर तिलक से रहा नहीं गया. उन्होंने अथनी (महाराष्ट्र) की एक जनसभा को संबोधित करते हुए अपने दिल की बात कह डाली- ‘मेरी समझ में नहीं आता कि ये तेली, तंबोली और खाती कुनभट संसद में क्यों जाना चाहते हैं. तेली क्या संसद में जाकर तेल बेचेगा. तंबोली क्या संसद में जाकर कपड़ा सिलेगा और खाती कुनभट (कुर्मी या पाटीदार) क्या संसंद में जाकर हल चलाएगा.’
यह संकुचित सोच और स्वराज की सीमित परिभाषा आज भी उपलब्ध है. आंध्रप्रदेश के मेरे सहकर्मी सत्यनारायण ने एक बार कहा था, “जब गोखले या तिलक को देश का नेता होना चाहिए था तब गाँधी देश का नेता बना. यह इस देश का दुर्भाग्य है”.
मैं सोचता हूँ शायद तिलक के ऐसे वक्तव्यों का उनकी लोकप्रियता पर असर पड़ा होगा. गाँधी ने बहुत तो नहीं परंतु जितना किया उसके कारण तेली-तंबोली उनके साथ हो लिए थे. 1930 के डाँडी मार्च में बहुत बड़ी संख्या जुझारू कोलियों (Koli tribals) की थी.
तिलक के वक्तव्य को यदि वीरगाथाकाल की परिस्थितियों या तिलक के अपने समय की परिस्थितियों का उत्पाद मान लिया जाए तो बात को भुलाया भी जा सकता है. परंतु देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से स्पष्ट है कि इसे तिलक के स्वराज और स्वतंत्रता के दिशापट्ट के तौर पर रख लिया गया जो आज के भारत के लिए अनिष्टकर है. ऐसी स्थिति में भारत की अनुसूचित जातियाँ, जन जातियाँ और अन्य पिछड़ी जातियाँ स्वराज्य और स्वतंत्रता में हिस्सेदार नहीं मानी जाएँगी. तब क्या उन्हें अपने मानवीय व्यक्तित्व में सुधार और गुणवत्तापूर्ण जीवन के लिए स्वतंत्रता आंदोलन चलाना होगा?
गरीबों के उत्थान के लिए जो सरकारी योजनाओं में पैसा दिया जाता है उसका 10 प्रतिशत ही उन तक पहुँच पाता है, ऐसा राजीव गाँधी ने माना था. क्या भ्रष्टाचारी तंत्र इतनी बड़ी राशि को (जिसे पवित्रतम रूप में स्वराज कहा जाता है) सही जगह पहुँचने देगा?
विशेष नोट : यह पोस्ट बड़ी तेज़ी से इस ब्लॉग की टॉप 5 पोस्टस (यथा 10-08-2011 को) में आ गई है. इसका एक कारण यह भी है कि 'आरक्षण' फिल्म का प्रदर्शन अभी मद्रास हाईकोर्ट ने रोका है और फिल्म के बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है. इस बीच NDTV पर रवीश कुमार की फिल्म के निर्माता प्रकाश झा, अमिताभ बच्चन, मनोज वाजपेयी से एक बातचीत यू-ट्यूब पर उपलब्ध है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं- आरक्षण
(Key words: Koli, Kori, Kol, Khati, Kunbhat, Teli, Tamboli, Bal Gangadhar Tilak, Dandi March, Gandhi, Film Resevation, Amitabh Bachchan, Big B)
अभी हाल ही में एनडीटीवी के अनिंद्यो ने आरक्षण के मुद्दे पर एक स्टोरी की है. उसे आप देख सकते हैं.
विशेष नोट : यह पोस्ट बड़ी तेज़ी से इस ब्लॉग की टॉप 5 पोस्टस (यथा 10-08-2011 को) में आ गई है. इसका एक कारण यह भी है कि 'आरक्षण' फिल्म का प्रदर्शन अभी मद्रास हाईकोर्ट ने रोका है और फिल्म के बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है. इस बीच NDTV पर रवीश कुमार की फिल्म के निर्माता प्रकाश झा, अमिताभ बच्चन, मनोज वाजपेयी से एक बातचीत यू-ट्यूब पर उपलब्ध है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं- आरक्षण
(Key words: Koli, Kori, Kol, Khati, Kunbhat, Teli, Tamboli, Bal Gangadhar Tilak, Dandi March, Gandhi, Film Resevation, Amitabh Bachchan, Big B)
अभी हाल ही में एनडीटीवी के अनिंद्यो ने आरक्षण के मुद्दे पर एक स्टोरी की है. उसे आप देख सकते हैं.
बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकरी मिली! सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! अमिताभ बच्चन के नए फिल्म के बारे में मुझे पता नहीं था जो चर्चा का विषय बन गया है! उम्दा पोस्ट!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Thanks Bhusanji good informative post,Political corruption in India is the main major cause of down fall of poor peoples of India....original Indians are neglected. these are painful for poor peoples of India...
ReplyDeleteNitin...
जानकारी देती हुई सार्थक पोस्ट .......आभार
ReplyDeleteReservation was originally started by the ancient Aryans who enjoyed its fruits for two thousand years by brutally exploiting the working classes (currently called as SC/ST/OBC)to such an extent that they were made as sanctified slaves. Therefore, how the persons like Tilak (Aryans-later on named as Hindus by foreigners)can now like the empowerment (though practically very mild) of those very erstwhile slaves? They direly need to change their old mindset; but will they do it?
ReplyDeleteअभी भी बहुत प्रश्न है ..इसतरह की मानसिकता के लिए .कृपया सामाधान करें .
ReplyDeleteफिल्म का नाम आरक्षण सुनने में आ रहा है। शायद आपने उसका अनुवाद कर दिया है। अमिताभ जैसे फिल्मों में ही बोलेंगे और 100-50 लोगों के लिए अनाथालय खोलकर खेल देंगे।
ReplyDeleteगाँधी के बारे में आपके मित्र का बयान कुछ अलग है। लेकिन बिहार में आज स्थिति उलटी हो गई है। मैं जाति-व्यवस्था का व्यक्तिगत तौर पर बहिष्कार करता हूँ। लेकिन समाज में या सरकार द्वारा मुझसे मेरी जाति पूछी जाएगी। कहीं जाऊंगा तो आवेदन करते समय लिखना ही होगा कि सामान्य हूँ।
बिहार में नीतीश ने दलितों के नाम पर महादलित और महादलित आयोग जैसा तामझाम शुरु कर दिया है। उस दिन तो बहुत गुस्सा आया जब बिहार में पाँच मंत्रियों को कल्याण मंत्री बनाया गया, इतनी जातिवादिता है।
आज बिहार में पंचायत चुनावों में सीट ऐसे आरक्षित कर दिए गए हैं जो मानव की स्वतंत्रता के खिलाफ़ हैं जैसे कह दिया कि राजस्थान का मुख्यमंत्री जाति का चमार ही होगा और कोई नहीं तो क्या है ये? इसे आप दलित समर्थन कहेंगे या दुष्टतापूर्ण नीति। लेकिन ऐसा बिहार में इस हद तक हो गया है कि सामान्य लोग बस परेशान हैं।
आपको बताऊँ कि अभी साल भर पहले मैंने अपने शिक्षक से कहा था कि आरक्षण मनुष्य की सोची हुई सबसे रद्दी चीज है। मेरे पास बहुत से तर्क हैं इसे गलत साबित करने के। लेकिन इससे इनकार नहीं कर सकता कि तिलक का बयान गलत और नीचा है। लेकिन आजादी की लड़ाई में नीची कही जाने वाली जाति के लोग भी लड़े थे, ऐसा सुना है। हाँ उनमें नेता नहीं था कोई इसलिए बाद में अम्बेदकर और गाँधी आए।
वैसे जाति में रोटी-बेटी की समस्या में से रोटी की समस्या अब खत्म ही है। अभी एक और बात याद आ रही है तो कह देता हूँ। मैं जाति की व्यवस्था आस्तिक होने पर भी अच्छा नहीं मानता था लेकिन जब कोई आलोचना करे तो कह देता था। एक लड़के कहा था कि ब्राह्मण सब बदमाश थे, हम सब को तेली बना दिया और खुद ब्राह्मण बन गए। मैं कहता था कि तुम्हारे पूर्वज भी तो थे जाति के वर्गीकरण के समय, वे चुप क्यों रहे और वे क्यों नहीं बने ब्राह्मण।
दलित नाम पर भारत में नौटंकी खूब हो रही है। मैं एक पोस्ट लिखने वाला हूँ जिसका संभावित शीर्षक होगा -'मुझे दलित-विमर्श और स्त्री-विमर्श से चिढ़ है'।
लेकिन एक सवाल है कि तिलक ने जब कहा था कि तेली आदि भी संसद में क्या करेंगे तब कोई तेली आदि ऐसे थे जो संसद में बैठने लायक थे। यहाँ यह बात कहना बेकार है कि उच्च जातियों में भी सभी लोग तो ऐसे न थे।
हारनेवाले को हराया जाता है। लेकिन कभी-कभी जीतने वाले किसी के चलते हार जाते हैं जैसा कि आपने 23 जून की मेरी पोस्ट में पढ़ा होगा।
@ Amrita Tanmay,
ReplyDeleteपोस्ट में उठाए प्रश्नों से भी कठिन है वह समाधान देना जो आपने कहा है. व्यक्तिगत समस्या का समाधान व्यक्ति सोचता है. समाज की समस्या का समाधान समाज करता है. लेकिन जब सामाजिक कलिष्टताओं की बात आती है तो इसका समाधान समय करता है. या तो समाज रिवोल्व होता है, या इवोल्व होता है. प्रार्थना यही करनी चाहिए कि यह धीरे-धीरे इवोल्व हो जाए. यदि नागरिक राष्ट्र धर्म को सम्मुख रख कर चलें और समाज का समग्र विकास हो तो समाधान और भी सरल हो जाता है.
@ चंदन कुमार मिश्र,
ReplyDeleteआपने स्थिति को बहुत अच्छे तरीके से लिख दिया है. मैं जानता हूँ कि वर्तमान स्थिति सुलगन की ओर जा रही है. इसी लिए मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार इसे भ्रष्टाचार के साथ जोड़ कर देखा है और समाज के समग्र विकास में इसका समाधान ढूँढने की कोशिश की है.
सार्थक पोस्ट....
ReplyDeletethought provoking... a true reflection of the great indian divide...
ReplyDeleteregards,
dorothy.
स्तिथि में बदलाव अवश्य ही आएगा. अब उस जमाने की बात पर अधिक समय बर्बाद न किया जावे जब शिक्षा केवल एक वर्ग तक ही सीमित थी. समाज के समग्र विकास की जरूरत को आपने रेखांकित किया है, यह महत्वपूर्ण है. तिलक के उस बयान का मै विरोध करता हूँ.
ReplyDelete@ P.N. Subramanian
ReplyDeleteआपने दक्षिण भारत में आए बदलावों को स्वयं देखा है. मैं आपको बहुत आदर से देखता हूँ और आपकी टिप्पणी का मूल्य समझता हूँ.
खंड-खंड में बंटा हुआ है हमारा भारत . ! स्वराज आसान नहीं . गरीबों और दलितों तक एक प्रतिशत भी नहीं पहुँचता ! आज नक्सलवाद इसी की उपज है ! गरीब और अमीर के मध्य खाई जैसा फासला बढ़ रहा है !
ReplyDelete@ ZEAL, डॉ दिव्या, आपकी टिप्पणी स्वभावतः सशक्त है. खाई कैसे बढ़ रही है इसका उदाहरण मैंने अपने परिेवेश में देखा है. हमने दूकानदारों के सामान पर बढ़ी हुई कीमत अदा कर दी, सब्ज़ी-फल वाले को भी नई कीमत दे दी, राज-मज़दूर भी बढ़ी पगार पाने में सफल हो गए लेकिन घरेलू साफ-सफाई और बर्तन आदि का कार्य करने वालों का पगार किसी ने बढ़ाया हो ऐसा कम ही देखने को मिला. उनकी मँहगाई अलग मानते हैं हम. हमारे मोहल्ले के एक प्रभावशाली व्यक्ति ने कहा कि इन लोगों पर मँहगाई का क्या प्रभाव पड़ना है, इनकी तो ज़रूरतें ही बहुत कम होती हैं. किसी को ग़रीब बनाए रख कर उसकी ज़रूरतें कम रखी जा सकती हैं. यह कब अमानवीयता की सीमाएँ लाँघ जाता है इस पर हम नहीं सोचते.
ReplyDeleteसही बात है ........विचारणीय लेख
ReplyDeleteज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteआपका तहे दिल से शुक्रिया मेरे ब्लॉग पे आने के लिए और शुभकामनाएं देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद/शुक्रिया..
ReplyDelete9 दिन तक ब्लोगिंग से दूर रहा इस लिए आपके ब्लॉग पर नहीं आया उसके लिए क्षमा चाहता हूँ ...आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
ज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteबहस का हिस्सा बनना नहीं चाहता लेकिन आरक्षण पर बहस होनी चाहिए |
Thanks Bhushanji. DHARMACHAR..NE KARAM KO JUHAR.
ReplyDeletethanks for your kind guidance and communication,I will post my Mamaidev's post on Blog spot, good idea to share. pl give guidance.
I appreciate the posts of Dr Hardeep
विचार उत्तेजक एक महत्वपूर्ण पोस्ट .
ReplyDelete.
ReplyDelete@----लेकिन घरेलू साफ-सफाई और बर्तन आदि का कार्य करने वालों का पगार किसी ने बढ़ाया हो ऐसा कम ही देखने को मिला। उनकी मँहगाई अलग मानते हैं हम....
------
भूषण जी ,
बहुत सटीक बात कही आपने । लोग अपने लिए तो महंगाई से चिंतित हैं , लेकिन घर के नौकरों के बारे में शायद हi सोचते हों । अपने से पहले उनके लिए सोचना ज्यादा ज़रूरी है ! बेहद अहम् है ये।
मुझे थोडा सा संतोष सिर्फ एक बात का है की मैं अपने घर काम करने बाई बाई के आठ वर्षीय पुत्र को निशुल्क पढ़ाती हूँ। त्योहारों पर उनसे लिए वस्त्र और खिलौने ! तथा बाई जब नागा करती है तो कभी नहीं पूछती हूँ की क्यूँ नहीं आई ? जानती हूँ , उसकी भी ज़रूरतें हमारे जैसी हैं , उसके भी घर कोई बीमार होता होगा , उसको भी कभी छुट्टी की ज़रुरत होती होगी ।
मन में एक आशा ये भी है की कुछ लोग तो ऐसे और भी होंगे जो इन ज़रूरतमंदों के बारे में भी सोचते होंगे।
वैसी सद्भावना रखने का एक प्रत्यक्ष लाभ यह भी पाया की तब ये हमारा काम मन लगाकर दिल से और खुश रहते हुए करते हैं । इनके और हमारे अधिकारों में कोई फरक नहीं होना चाहिए।
.
@ ZEAL आदरणीय Dr. Divya
ReplyDeleteआपके आलेखों में कई जीवन-सिद्धांतों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को देखा है. आप काम करने वाली बाई की बच्ची को निःशुल्क पढ़ाती हैं यह आपकी सामाजिक प्रतिबद्धता दर्शाता है. इससे बढ़ कर और कौन सी समाज सेवा हो सकती है? हम किसी के जीवन-स्तर को सहारा दे भी पाते हैं लेकिन सब से बड़ी बात है मानवीय जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना और उसमें सहायता करना. आपका आभार.
bhushan ji.aj ghoomte ghoomte apke blog par aa gai. aur aai to poori rachna padhkar hi dam liya.aapki krati me aapka anubhav saaf jhalakta hai.bahut bahut aabhar.
ReplyDeleteइस विषय पे बहुत कुछ लिखा और किया जाना चाहिए लेकिन सवाल उठता है की कौन करे? जब भी कोई नेता कुछ करता तो वो केवल वादे ही करता है और सच कहाँ जब कोई मदद आती हैं तो ९०% बंट जाती हैं
ReplyDeleteAarakshan jaroor dekhiyega kyo ye aapko baad me bataungee .......matr aagrah hai .......
ReplyDeletesamvedansheel aur manav premee bhee ise duniya me hai.......mere paas jo helping hand hai part time ve mere paas kareeb 28yrs se hai.......jab se hum Banglore aae tabhee se .
ghar me sabhee bacche tak respect dekar baat karte hai......noukar shavd ka istemal bhee nahee hota humare yaha......
ghar ke sadasy se kum nahee .....
mane dekha hai shikshi varg dhyaan rakhta hai...
janha tak reservation policy ka prashn hai vote bank kee politics hai .
kisee ke bhale kee nahee apne bhale ke liye kadam uthae jate hai...
@ Apanatva, आदरणीय सरिता जी, आपकी बात का मैं बहुत सम्मान करता हूँ. सच यही है कि संवेदनशील और मानव प्रेमियों से ही दुनिया चलती है. आपने किसी डोमेस्टिक हेल्प को ससम्मान कार्य का वातावरण दिया है यह बहुत अच्छा तरीका है.
ReplyDeleteआपने कहा है, आरक्षण फिल्म ज़रूर देखूँगा.
जहाँ तक सरकारी नौकरियों में आरक्षण का सवाल है यह वोट बैंक के साथ एक एक्सपैरीमेंट है जिसका काँग्रेस को काफी लाभ मिला है. भारत के मानव संशाधनों के बढ़िया शिक्षण-प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया जाता तो देश को अधिक लाभ होता.
INDIANS NEED TO CHANGE THEIR MINDSET
ReplyDeleteFor six decades, generations of Indians have been taught to believe that the colonial rulers saw India through the lens of ignorance and prejudice. The Britishers used to believe that Hinduism could not build up a nation because of one 'vital structure' i.e. 'Caste' . National allegiance was secondary to the loyalty each (Hindu) owed to his caste, since his caste was his Karma, determining much more than his present life, namely, all his lives still to come.
Consequently, we may mirror India as a land obsessed by caste and unable to rise above it. Since the foreign rulers never aimed at being social reformers, they attempted to accommodate this caste obsession in public policy. They documented caste in all its bewildering complexities in the Gazetteers and most importantly, attempted to quantify caste allegiances in the Census operations from 1881.
However, even after the Independence, the 'vital structure' is still now supported in practice by India's political and religious leadership. Consequently, caste has become the bases of the government’s elaborative redistributive programmes. Sixty years of experiments with modernity have proved to be mere ripples on the surface; the depths of India’s ‘vital structure’ have been unmoved.
It is our nationalist modernizers who have been defeated by the ‘real’ India, wherein, the future appears to belong to the same old structure. As per the findings of some research scholars caste was the worst form of racialism and we may as well acknowledge it as per the ground situation in India.
To honestly deal with such situations (be it racialism or caste), in recent times, Germany has apologized to the Jews for the Holocaust, Japan has said sorry to the US for Pearl Harbour; the Pope has publically taken the burden of his errant clergy on himself and bowed his head in shame; Russia has apologized to Poland for Stalin’s massacre of its non-communist leadership in 1939; the federal government of Australia has apologized to its aborigines for willfully killing so many of them; and one & a half decade back, the Queen apologized for the Jallianwala Bagh massacre. Further, the British Parliament have legally declared casteism as tantamount to racialism, just to ensure that this contagious disease of caste may not grip their country, because of the deep-rooted mindset of the Indians settled there.
Are both the religious and the political leaders sleeping in India, and now to start with & to honestly follow all other civilized countries on this planet, can't they even pass resolutions expressing their resolve to revolutionize the the Indian society?
@ Rattan Gottra.
ReplyDeleteआप बहुत देर के बाद इस ब्लॉग पर आए हैं. गोत्रा जी आपका पहले तो स्वागत और इतनी विद्वत्तापूर्ण टिप्पणी के लिए बहुत धन्यवाद.
@ prerna argal,
ReplyDeleteप्रेरणा जी, मैं व्यक्तिगत रूप से मंच और आपका आभार व्यक्त करता हूँ कि आप मेरे आलेख को ब्लॉगर्ज़ मीट वीकली पर ला रहे हैं. आपके सद्प्रयासों और हिंदी सेवा के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.