बचपन में जब मेरी आयु 12-13 वर्ष की थी तब टोहाना में हमारे साथ वाले घर की एक नवविवाहिता में अचानक उसकी पहली स्वर्गीय सास आ गई. वर्तमान सास और ससुर हैरान. चारों ओर आड़ोस-पड़ोस में रहस्यमय और डर वाला माहौल बन गया. काफी तूफान मचा. सास-ससुर, पति-देवर परेशान. ओझा बुलाए गए. मुर्गी की बलि दी गई जो मरने से पहले गोल-गोल घूमी और गिर गई. दो सप्ताह तक दहशत फैली रही. डर के कारण मेरी माँ और मुझे सोते में छाती पर दबाव महसूस हुआ. अगले दिन माँ ने ओझा से कह कर तहलीज़ पर कील ठुकवा लिए.
बच्चा होने के नाते मेरा उस घर में आना-जाना अचानक भी हो जाता था. मुझे उस परिवार की कुछ ऐसी बातें पता थीं जो बड़े नहीं जानते थे. मैंने एक दिन माँ से कहा कि उस महिला में आई उसकी पहली सास कहेगी कि ‘मेरी बहु को कुछ दिन के लिए उसके गाँव भेज दो’. माँ ने पूछा, "तुझे कैसे पता?" मैंने जानते हुए भी उत्तर नहीं दिया लेकिन ऐसे मुँह बनाया जैसे मैं ‘अज्ञात’ बातें जानता हूँ. यह 'बच्चे' की समझदारी ही थी…..और मेरी ‘भविष्यवाणी’ सच साबित हुई. बहु को उसके गाँव भेज दिया गया. सब ठीक हो गया. आठ-दस महीने के बाद वो लौटी. यह जीवन के एक अनजाने पक्ष का ऐसा सच था जिसे उस महिला के ससुराल वालों ने यह सोच कर स्वीकार कर लिया कि- 'जाने दो'. पूरे मामले में धर्म बस इस बात में दिखा कि आगे चल कर बहु की मानसिक तकलीफ़ को समझते हुए उसे माफ़ कर दिया गया.
‘मृतात्माएँ’ यूँ ही प्रकट नहीं होतीं. कोई व्यक्ति दुखी होता है या उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं हो रही होतीं तो मृतात्माएँ, भूत आदि प्रकट होने लगते हैं. पति के नपुंसक होने पर पत्नी या युवा विधवाओं को भूत-प्रेतों या ‘ऊपरी चीज़ों’ का सताना और उनके डर से उसका साधुओं के पास या धार्मिक स्थानों पर जाना इसी मानसिक प्रक्रिया का हिस्सा है.
इसके अन्य नकली कारण भी होते हैं. जिसका मैंने ऊपर शुरू में उल्लेख किया है मेरे उसी मित्र की पत्नी एक अन्य महिला के संपर्क में है जिसमें ‘देवी माँ’ आती है और उस महिला ने अपने घर में ही एक मंदिर भी बना रखा है. उसके पति ने इसे किसी कारण से छोड़ दिया था और अब उस महिला पर तीन पुत्रियों का उत्तरदायित्व है. मित्र की पत्नी उसके मंदिर में नियमित रूप से जाती है और खूब चढ़ावा चढ़ाती है.
एक दिन मित्र के यहाँ कीर्तन रखा गया तो मुझे भी निमंत्रण मिला. मैं लगभग जानता था कि क्या होने जा रहा है. कुछ देर ‘देवी माँ’ की आरतियाँ गाने के बाद एक भजन-सा गाया गया जिसका भाव था- ‘आज मेरी माँ यहाँ प्रकट होगी’. दोनों महिलाओं ने अपने बाल ऐसे बाँध रखे थे कि आसानी से खुल जाएँ. फिर उनका सिर घुमाने, झूमने और लंबी जीभ निकालने का नाटक शुरू हुआ. मोहल्ले की कुछ महिलाएँ तभी उठ कर चली गईं. एक यह कह कर चली गई कि 'इन पढ़े-लिखों से तो हम अनपढ़ ही अच्छे हैं'. कीर्तन का सार इतना-सा ही है कि अपने घर में मंदिर चलाने वाली ‘देवी’ ने अंत में मेरे मित्र की पत्नी को बताया- ‘तुम्हारे ख़ानदान का ही कोई ऐसा है जिसने तुम्हारी फ़ैमिली को कुछ किया हुआ है’. उनके परिवार की बनावट ऐसी थी कि यदि 'इसको छोड़ दो, उसको भी जाने दो' के तरीके से परिवार की केवल उस इकाई की ओर शक की उँगली जाती थी जिसका कुल संपत्ति में बराबर का कानूनी अधिकार था. कुल मिला कर देवी प्रकट होने की वजह में नया कुछ नहीं था. सिर्फ़ इतना प्रयोजन था कि संपत्ति में जो शरीक़ हैं उनके विरुद्ध नफ़रत का वातवरण बनाया जाए और संपत्ति के मामले में सास-ससुर के निर्णयों को प्रभावित किया जाए.
अधिकतर मामलों में 'देवी माँ' के ये व्यवसायी ऐसे 'कीर्तनों' के आयोजन का मकसद पहले से जानते हैं. ये कभी भूल कर भी उस व्यक्ति का नाम नहीं लेते जिसके ख़िलाफ़ नफ़रत और डर का वातावरण बनाना होता है. सवालों के जवाब में अस्पष्ट अर्थ देने वाले गोल-मोल शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं और शेष कार्य कानाफूसी, निंदा, चुग़ली, अनुमान आदि के ज़रिए होने दिया जाता है. क्योंकि किसी व्यक्ति का नाम लेने पर ऐसे तथाकथित धार्मिक कीर्तन में बवाल हो सकता है और कीर्तन करने आई "देवी माँ" को फटकार लगा पूछा जा सकता है कि ‘तुमने एक व्यक्ति का नाम लिया है तो तुम्हारा मतलब और मकसद क्या है और तुम्हारे खिलाफ़ कानूनी कार्रवाई क्यों न की जाए.’
इस तरह का धंधा करने वालों को गुंडों और पुलिस का साथ लेना पड़ता है. पुलिस वाले इनके ज़रिए विभिन्न परिवारों की आंतरिक जानकारियाँ ले सकते हैं. यह धंधा करने वाले अपने 'ग्राहकों' से उनके संपर्कों (कन्टैक्ट्स) की भी जानकारी ले लेते हैं और उनका शोषण कर सकते हैं. किसी का दिया हुआ विज़िटिंग कार्ड तक इनके बहुत काम का होता है. इस धंधे का मूल मंत्र है - भय और आशंका का वातावरण बना कर धन कमाना. इस बात को ‘देवी माँ’ जानती है.
जंगल के भोले-भाले कर्मकांड को शहर के शातिरों ने बिजनेस बना दिया।
ReplyDeleteभारत में केवल राजनैतिक घोटरले ही नहीं हो रहे हैं बल्कि स्वयंभू और फर्जी देवियों, स्वामियों, बाबाओं और भगवानों के द्वारा बड़े पैमाने पर योजनाबद्ध घोटाले किए जा रहे हैं।
मानव के आदिम भय को कैश करने का आसान तरीका !
आपकी बात का समर्थन करता हूँ. भोले-भाले लोगों की दमित इच्छाएँ इस प्रकार से प्रकट होती थीं. लोग इसका कारण जानते थे और इसे मान्यता देते थे. अब शातिरों ने इसे व्यापार बना लिया है. आभार आपका.
Deleteकतई नहीं.. पर ये ' देवी माँ ' का तांडव हर गाँव या शहर में देखने और सुनने को मिलता ही रहता है . मैंने भी छोटे में देखा है . आपने याद दिला दिया .
ReplyDeleteमेरी इस बिज़नेस में रुचि है क्योंकि मैं इस पर और लिखना चाहता हूँ :))
Deleteऐसा अक्सर देखने में आया है ... गांव हो अथवा शहर बेहद सशक्त लेखन ...आभार
ReplyDeleteहमें तो भूषण सरजी, एक पुरानी फिल्म याद आ रही है जिसमें बीबी पर जब तब(उसकी बात न मानी जाने पर) देवी आ जाती थी और मियाँ जी और बाकी परिवार मन मसोस कर रह जाते थे और आखिर में सब्र का बाँध टूटने पर उसके पति (शायद ओम प्रकाश) पर भैरों आ जाते हैं और फिर...|
ReplyDeleteहाँ भाई साहब, सब्र का बाँध टूट जाए तो किसी और में कोई और आ सकता है. बहुत खूब :))
Deleteसुना तो मैंने भी बहुत है मगर कभी देखा नहीं मेरी मम्मी कहा करती हैं ऐसा कुछ होता नहीं लोग भक्ति में इतना रम जाते हैं कि झूमने लगते हैं और नाम हो जाता है देवी आई हैं यदि ऐसा होता तो हर घर में देवी का वास होता :)वैसा यह सच हो या ना हो मगर ऐसे किसे कहानियाँ पढ़ने और सुनने में मज़ा बहुत आता है तो आप अपनी रुचि के अनुसार लिखें हम पढ़ेंगे :)
ReplyDeleteपल्लवी बिटिया मैं जानता हूँ कि बाहर से हमारे भीतर कोई नहीं आ सकता. हाँ हमारे मन में जो होता है वह कभी घनीभूत होकर हमें बाहर में दिखने लगता है. पढ़ने के लिए शुक्रिया.
Delete.
ReplyDeleteहां, इस तरह की घटनाएं देखने में अवश्य आती रही हैं आदरणीय भारत भूषण जी
…लेकिन आपकी तरह 'अंदर की ख़बर' पाने का कभी प्रयास नहीं किया …
:)
आपके अनुसार औरतें पति के नपुंसक होने की स्थिति में ऐसे कलाप करती हैं…
कई पुरुषों में भी देवता/प्रेत आत्माएं आते देखा-सुना है …
वहां क्या कारण होता होगा ?
कई मामलों में ऐसे पीड़ित-पीड़िता औरों को विशेष दुख देते भी नहीं पाए जाते, जबकि स्वयं को अचेतना/अर्द्ध चेतना की स्थिति में नुकसान पहुंचा लेते हैं … घायल कर लेते हैं …
और मैंने देखा है, कि ऐसी अवस्था में पीड़ित-पीड़िता युगों पुरानी , कई बार सौ साल से भी अधिक पुरानी बातें करते पाए गए हैं …
# कुछ वर्ष पहले टी वी समाचारों में डेढ़सौ वर्ष पहले काल-कलवित हुए एक अंग्रेज वैज्ञानिक की आत्मा हिंदुस्तान के एक गंवारु बच्चे में प्रविष्ट होने की महारोचक ख़बर शायद औरों को भी याद हो …
उस अंग्रेज वैज्ञानिक के एक सूत्र memory never dies पर उस निहायत गंवार किशोर द्वारा 150 वर्ष पुरानी ब्रिटिश अंग्रेजी में लेक्चर देते देख' जहां उसका अनपढ़ परिवार घोर दुखी था … आप-हम जैसे हज़ारों दर्शक हतप्रभ , आश्चर्यचकित और रोमांचित थे … मैंने उस न्यूज़ की रिकॉर्डिंग भी की थी …
बहरहाल , आपकी पोस्ट अलग-सी है … रोचक भी
पूरी पढ़ने में अरुचि नहीं हुई…
:))
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
स्त्री हो या पुरुष हो दोनों के मन की कार्य प्रणाली एक जैसी है. पुरुष की दमित वासनाएँ उसमें भी भूत-प्रेतों को प्रकट कर सकती हैं. आपने जिस गँवार बच्चे में किसी मृतात्मा आने की खबर देखी थी उसका तो मुझे पता नहीं लेकिन एक अन्य खबर के अनुसार एक बच्चा अमेरिकन अंग्रेज़ी बोलता था. उस पर शोध होने के बाद टीवी पर दिखाया गया कि वह बच्चा कई महीने कमरे में बंद रह कर टीवी पर अंग्रेजी चैनल देखता रहा था फिर बाद में उसी लहज़े में उसे टीवी पर अंग्रेज़ी बोलते उसे दिखाया गया. वह किसी वैज्ञानिक विषय पर लेक्चर देता था. लेकिन उसकी बातों में संबद्धता नहीं थी. इसी से शक होता था कि उसमें किसी समझदार वैज्ञानिक की आत्मा है. कुछ प्रश्न पूछे गए तो वह बच्चा उत्तर नहीं दे पाया.
Deleteवह भी मन की क्लिष्ट कार्यप्रणाली का एक उदाहरण था जिसका भारत के विशेषज्ञों ने विश्लेषण किया और किसी मृतात्मा के होने की बात को नकार दिया.
आपकी इस टिप्पणी के लिए आभार.
"कई मामलों में ऐसे पीड़ित-पीड़िता औरों को विशेष दुख देते भी नहीं पाए जाते, जबकि स्वयं को अचेतना/अर्द्ध चेतना की स्थिति में नुकसान पहुंचा लेते हैं … घायल कर लेते हैं …"
Deleteहाँ ऐसे न्यूरल डिस-आर्डर के केस भी बहुत होते हैं.
One must get out of such superstitions, but yes , at times certain things happen which cannot be explained with the help of science.
ReplyDeleteबेहद सशक्त लेखन........सरजी
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