(Frederic Drew की पुस्तक के पृष्ठ 55-57 तक का अनुवाद)
ये कबीले
आर्यों से पहले आने वाले कबीलों
के वंशज हैं जो पहाड़ों पर
रहने वाले थे जो हिंदुओं और
आर्यों द्वारा देश पर कब्ज़ा
करने के बाद दास बना लिए गए
थे; आवश्यक
नहीं था कि वे किसी एक व्यक्ति
के ही दास हों,
वे
समुदाय के लिए निम्न (कमीन)
और
गंदगी का कार्य करते थे.
उनकी
स्थिति आज भी वैसी है.
वे
शहरों और गाँवों में सफाई का
कार्य करते हैं*.
(* मेरा
विचार है कि धियारों का रोज़गार
ऐसा कम है कि वे जातीय रूप से
मेघों और डूमों से जुड़े हैं.)
डूमों
और मेघों की संख्या जम्मू में
अधिक है और वे पूरे देश,
जो
निचली पहाड़ियों और उससे आगे
की ऊँची पहाड़ियों,
में
बिखरे हैं. वे
ईँट बनानें,
चारकोल
बर्निंग और झाड़ू-पोंछा
जैसे रोज़गार से थोड़ी कमाई
कर लेते हैं.
इन्हें
प्राधिकारियों द्वारा किसी
भी समय ऐसे कार्य के लिए बुलाया
जा सकता है जिसमें कोई अन्य
हाथ नहीं लगाता.
केवल उनके
द्वारा किए जाने वाले ऐसे श्रम
की श्रेणी के कारण ही ऐसा है
कि उन्हें एकदम अस्वच्छ गिना
जाता है; वे
जिस चीज़ को छूते हैं वह गंदी
प्रदूषित हो जाती है;
कोई
हिंदू सपने में भी नहीं सोच
सकता कि वह उनके द्वारा लाए
गए ऐसे बर्तन से पानी पीएगा
जिस बर्तन को एक सोंटी के
किनारे पर लटका कर ही क्यों
न लाया गया हो.
जिस
गलीचे पर अन्य बैठै हों वहाँ
इन्हें कभी आने नहीं दिया जाता
है. यदि
संयोग से उन्हें कोई कागज़
देना हो तो हिंदू उस कागज़ को
ज़मीन पर गिरा देगा और वहाँ
से वह उसे ख़ुद ही उठाएगा;
वह
उन्हें उनके हाथ से नहीं लेगा.
मेघों
और डूमों के शारीरिक गुण भी
हैं जो उन्हें अन्य जातियों
से अलग करते हैं.
उनका
रंग सामान्यतः अधिक साँवला
होता है जबकि इन क्षेत्रों
में उनका रंग हल्का गेहुँआ
होता है, इनका
रंग कभी इतना साँवला भी हो
सकता है जितना दिल्ली से नीचे
के भारतवासियों में है.
मेरा
विचार है कि आम तौर पर इनके
अंग छोटे होते हैं और कद भी
तनिक छोटा होता है.
अन्य
जातियों की अपेक्षा इनके चेहरे
पर कम दाढ़ी होती है और डोगरों
के मुकाबले इनका चेहरा-मोहरा
काफी निम्न प्रकार का है,
हालाँकि
इसके अपवाद हैं जिसका कारण
निस्संदेह रक्तमिश्रण है,
क्योंकि
दिलचस्प है कि अन्य के साधारण
दैनिक जीवन से इनका अलगाव उस
कभी-कभार
के अंतर्संबंधों को नहीं रोकता
जो अन्य जातियों को आत्मसात
करता है.
डूमों
के मुकाबले मेघों की स्थिति
कुछ वैसी है जैसे हिंदुओं में
ब्राह्मणों की,
उन्हें
न केवल थोड़ा ऊँचा माना जाता
है बल्कि उन्हें कुछ विशेष
आदर के साथ देखा जाता है.
जम्मू-कश्मीर
के महाराजा (गुलाब
सिंह) ने
इन निम्न जातियों की स्थिति
में सुधार के लिए कार्य
किया और सैंकड़ों लोगों को सिपाही
के तौर पर खुदाई और खनन कार्य
के लिए भर्ती किया.
इन्होंने
कुछ नाम कमाया है,
वास्तव
में युद्ध के समय ऐसा व्यवहार
किया है कि उन्हें सम्मान मिला
है, उच्चतर
जातियों के समान ही अपने साहस
का परिचय दिया है और सहनशक्ति
में तो उनसे आगे निकले हैं.
इस प्रकार
हम देखते हैं कि डूगर के अधिसंख्य
लोग हिंदू हैं जिनमें पुराने
कबीलों के भी लोग हैं. वे किस
धर्म से संबंधित हैं यह नहीं
कहा जा सकता........
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