चलिए,
फैसला
हो गया.
इंसान
की बड़ी पुरानी और पक्की आदत
है कि वह अपना मूल ढूँढता है कि 'मैं आया कहाँ से हूँ'.
पहले
तो उसे सब कुछ 'भगवान का' बता कर
चुप करा दिया जाता था
लेकिन
अब वह जान चुका है कि जहाँ-जहाँ
उसके सवाल भगवान को समर्पित
हो रहे थे वहाँ बहुत बड़ा
लोचा है.
इस
लिहाज़ से कबीर का जवाब भी
क्या बुरा था कि भई- 'कुदरत के सब
बंदे'.
लेकिन
नहीं,
बंदा
नहीं मानता. उसका कहना है कि बंदा जब बंदे को बंदा नहीं समझता तब सवाल तो पूछने ही पड़ेंगे.
मेघ-जन का सवाल सख़्त है कि- 'असल बात बताओ'. सवाल अड़ा हुआ है और जवाब हकलाते हैं.
मेघों
के मुड्ड (मूल) को लेकर बहुत सिद्धांत
हैं.
उनसे
इतना संकेत तो मिलता है कि वे
भारत की अन्य जातियों की
तरह कई प्रकार के रक्त मिश्रण (ब्लड मिक्सिंग)
के दौर से गुज़रे हैं. अब वैज्ञानिक खोज विशेषकर
डीएनए
रिपोर्ट से साफ़ जवाब मिले हैं और
संदेह दूर हुए हैं.
जब
से संयुक्तराष्ट्र ने
International
Day of the World's Indigenous Peoples 9 August घोषित
किया है तब से भारत के कई समुदायों
में यह जानने की इच्छा बढ़ी
है कि क्या वे भारत के मूलनिवासी
हैं?
डीएनए
रिपोर्ट ने सभी सवालों के जवाब
दे दिए हैं.
संक्षेप
में मेघ-जन
भारत के मूलनिवासी
हैं,
वही
'मूलनिवासी'
जिसे
बामसेफ़ ने अपनी शैली में खूब प्रचारित किया है. उम्मीद है इससे व्यवस्था परिवर्तन का रास्ता खुलेगा और समाज अपनी समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान निकाल लेगा.
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