"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


07 October 2020

Ultimate Jnanam - अल्टीमेट ज्ञानं

 

हवा, पानी, आग, रोशनी आदि प्रकृति की शक्तियां अपना काम हमेशा करती रहती हैं। इन्हें भी इंसानी दिमाग ने ईश्वर कहा है। जब इंसान महसूस करता है कि उसके जीवन में अभावों का कहीं अंत नहीं है तो वह भी सोचता है कि कोई शक्ति तो होगी जो उसकी जरूरतों को पूरा करे। संसाधन किसी शक्तिशाली या धूर्त के कब्जे में रहते हैं। यदि वो किसी की ज़रूरतों को पूरा करने की हालत में होता है तो वह ख़ुद एक शक्ति या ईश्वर का स्टेटस प्राप्त कर लेता है। मुसीबत (जैसे जान का ख़तरा) में भी इंसान को किसी शक्ति की ज़रूरत महसूस होती है जो उसकी रक्षा करे। तब वो जिसे भी मानता है उसे पूरी मानसिक ताकत से याद करता है और उसके अपने ही मन की प्रोजेक्शंस किसी न किसी रूप में उसकी मदद करती हैं। जैसे किसी का रूप प्रकट हो जाना और मदद मिल जाना। आज तक इसका कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला कि बाहर से कोई अदृश्य शक्ति मदद करती है। इस प्रोसेस में छोटे-बड़े शासकों और पूंजीधारियों तक को ईश्वर या भगवान बने या भगवान का स्टेटस प्राप्त होते देखा गया है। यहाँ धूर्तों की भी भूमिका रहती है।

यदि कोई मन से किसी को भगवान या ईश्वर मान कर अपने ही मन से ताक़त-तरकीब हासिल कर लेता है तो भी मुबारक है। यदि उसे किसी जेनुइन इंसान से मदद मिल जाती है तो वो भी मुबारक है। ईश्वर-परमेश्वर के चक्कर में लुट नहीं जाना चाहिए।



इति अल्टीमेट ज्ञानं।🙂

 

*एक मित्र को भेजी गई टिप्पणी.

 


1 comment:

  1. किसी ने माला जपी किसी ने जाम लिया
    सहारा जो मिला जिसको उसी को थाम लिया

    ईश्वरीय सत्य तो गूंगे का गुड़ है जब पर्दा उठता है तब पता चलता है कि संप्रदायों ने कितना भटकाया है ।

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