हवा,
पानी, आग, रोशनी आदि प्रकृति की शक्तियां अपना काम
हमेशा करती रहती हैं। इन्हें भी इंसानी दिमाग ने ईश्वर कहा है। जब इंसान महसूस
करता है कि उसके जीवन में अभावों का कहीं अंत नहीं है तो वह भी सोचता है कि कोई
शक्ति तो होगी जो उसकी जरूरतों को पूरा करे। संसाधन किसी शक्तिशाली या धूर्त के
कब्जे में रहते हैं। यदि वो किसी की ज़रूरतों को पूरा करने की हालत में होता है तो
वह ख़ुद एक शक्ति या ईश्वर का स्टेटस प्राप्त कर लेता है। मुसीबत (जैसे जान का
ख़तरा) में भी इंसान को किसी शक्ति की ज़रूरत महसूस होती है जो उसकी रक्षा करे। तब
वो जिसे भी मानता है उसे पूरी मानसिक ताकत से याद करता है और उसके अपने ही मन की
प्रोजेक्शंस किसी न किसी रूप में उसकी मदद करती हैं। जैसे किसी का रूप प्रकट हो
जाना और मदद मिल जाना। आज तक इसका कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला कि बाहर से कोई
अदृश्य शक्ति मदद करती है। इस प्रोसेस में छोटे-बड़े शासकों और पूंजीधारियों तक को
ईश्वर या भगवान बने या भगवान का स्टेटस प्राप्त होते देखा गया है। यहाँ धूर्तों की
भी भूमिका रहती है।
यदि कोई मन से किसी को भगवान या ईश्वर
मान कर अपने ही मन से ताक़त-तरकीब हासिल कर लेता है तो भी मुबारक है। यदि उसे किसी
जेनुइन इंसान से मदद मिल जाती है तो वो भी मुबारक है। ईश्वर-परमेश्वर के चक्कर में
लुट नहीं जाना चाहिए।
इति अल्टीमेट ज्ञानं।🙂
*एक मित्र को भेजी गई टिप्पणी.
किसी ने माला जपी किसी ने जाम लिया
ReplyDeleteसहारा जो मिला जिसको उसी को थाम लिया
ईश्वरीय सत्य तो गूंगे का गुड़ है जब पर्दा उठता है तब पता चलता है कि संप्रदायों ने कितना भटकाया है ।