"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


06 October 2012

The meaning of being a Bhagat - भगत होने का अर्थ



मेघ भगत समुदाय के लोगों में भक्तिभाव आने का क्या कारण है इसके बारे में भगत मुंशीराम जी ने अपनी पुस्तक मेघमाला के प्रकरण-2 (p-33) में लिखा है:-

....भगत बनने का संस्कार भी उन्होंने (मेघ भगतों ने) इसी (हिंदू) धर्म से ग्रहण किया. इस धर्म पर चलते-चलते आर्थिक दशा अच्छी न होने के कारण और अशिक्षित रहने के कारणइस जाति में गरीबीअधीनता और दासपने का आना स्वाभाविक है. जिस जाति के लोगों की आवश्यकताएँ सीमित हो जाती हैं वो जिस काम में भी लगें होवो किसी प्रकार का भी होआय-व्यय का कोई प्रश्न नहींवे जैसा वक़्त आ गया वैसा काट लेते हैं. ऐसी स्वाभाविक रहनी के लोग स्वाभाविक भगत हो जाते हैं. आप पूछेंगे कि आप यह क्या कह रहे हैं. भक्ति भाव तो बड़े-बड़े तप करने के बाद आता है. इसके लिए लोग घर-बारकामकाजधन-धान्यमान-प्रतिष्ठा छोड़ कर जंगलों और पहाड़ों की गुफाओं में जाकर कठिन साधन करते हैंतब जाकर भक्तिभाव आता है. मेघ जाति के लोगों ने कोई तप नहीं कियाकोई साधन नहीं किया तो कैसे भगत बन गए. यह प्रकृति का एक भेद है जिसको सर्वसाधारण चाहे किसी भी जाति का होकिसी भी धर्म को मानने वाला होनहीं जानताजब तक कि उसे प्रकृति का ज्ञान न हो जाए. मैंने अपने सत्गुरु हुजूर परमदयाल फकीरचन्द जी महाराज से जो कुछ समझा उसे बताने की कोशिश करूँगा. हर एक आदमी अगर ध्यान से अपने अन्दर देखे तो पता चलेगा कि हर समय कोई न कोई इच्छाआशा और वासना हर व्यक्ति के अन्दर उठती रहती है. उस इच्छा को पूर्ण करने के लिए हम हरकत में आ जाते हैंकर्म करते हैं. इच्छा पूरी हो जाने के बाद जिस चीज़ की इच्छा कीउसका भोग करते हैं और भोग से आनन्दखुशी लेते हैं. फिर और इच्छा पैदा होती है कि इस प्रकार के भोग भोगते रहें. इसी तरह इच्छाकर्मफलभोग फिर इच्छाकर्मफल और भोग का चक्कर चलता रहता है. जब तक यह चक्कर है कोई भी व्यक्ति भगत नहीं बन सकता. भगत वो है जिसकी आवश्यकताएँ कम हो गई होंअधिक भोग-विलास की इच्छा न रही हो. चाहे ये आवश्यकताएँ और इच्छाएँ तप करने से अपने अधीन कर लो या उसकी जिन्दगी में दूसरे लोग उसको दबाए रखेंदलित और पतित बनाए रखें उसको आश्रित बनाए रखेंउसका कोई काम बड़े लोगों की सहायता के बगैर न हो सकता हो तो थोड़े मेंग़रीबी मेंपतितपने में अपना जीवन गुजारता है. उसकी इच्छाएँ और वासनाएँ बलपूर्वक दबा दी जाती हैं. जिसकी आवश्यकताएँ बहुत सीमित हो गई हों और उसके अनुसार वासनाओं का उठना भी कम हो गया वह बिना किसी तप-साधन और अभ्यास के भगत बन सकता है और भक्ति भावना को अपने चित्त पटल में जगह दे सकता है.

भगत मुंशीराम जी ने जिस भगत की व्याख्या की है उसकी पृष्ठभूमि के बारे में वे बहुत साफ तौर पर लिख रहे हैं कि इस धर्म पर चलते-चलते आर्थिक दशा अच्छी न होने के कारण और अशिक्षित रहने के कारणइस जाति में गरीबीअधीनता और दासपने का आना स्वाभाविक है’. आगे की बात भी वे बहुत सावधानीपूर्वक लेकिन स्पष्टता के साथ कह रहे हैं कि- उसकी इच्छाएँ और वासनाएँ बलपूर्वक दबा दी जाती हैं. 

मैं उक्त व्याख्या से यही समझ पाया हूँ कि भगत उसे कहा जाता है जो अशिक्षा का शिकार हो, ग़रीब हो, अभाव में हो, धार्मिक विचारों का सहारा लेकर गुज़ारा करता हो और ईश्वर का धन्यवाद करता हो.

क्या लाला गंगाराम ने इसी अर्थ में मेघों को भगत कहा था? 

शायद हाँ.

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