MEGHnet
ब्लॉग पर मैंने दलितों के इतिहास से
संबंधित आलेख (चिट्ठे) लिखे हैं जो पुस्तकों और इंटरनेट से उपलब्ध सामग्री के आधार
पर हैं. ये इतिहास नहीं हैं परंतु कई पौराणिक और आधुनिक सूत्रों को समझने तथा
उन्हें एक जगह एकत्रित करने का प्रयास है. अन्य से ली गई सामग्री के लिए संबंधित लेखक या वेबसाइट के
प्रति विधिवत् आभार प्रकट किया गया है. मेघनेट
के बहुत से आलेख कई अन्य वेब साइट्स और ब्लॉग्स पर मेघनेट के साभार डाले गए हैं जो
बहुत संतोष देने वाला है.
कपूरथला के डॉ. ध्यान सिंह को जब मैं मिला तब
उन्हें अपनी मंशा बता कर उनका पीएचडी थीसिस मैं ले आया था और उसे एक अन्य
ब्लॉग 'Hisory of Megh Bhagats' या 'पंजाब
में कबीरपंथ का उद्भव और विकास'
के नाम से काफी देर से इंटरनेट पर रखा
हुआ है. इस ब्लॉग पर कई जिज्ञासु आए हैं.
मन में यह इच्छा थी कि डॉ. ध्यान सिंह के संपूर्ण थीसिस को या
उसके कुछ अंशों को यूनीकोड में टाईप कर करके इंटरनेट पर डाला जाए जिससे उसे कोई भी
हिंदी में पढ़ सकें.
इसमें एक खतरा भी था कि कोई भी
शोधग्रंथ की सामग्री को आसानी से कॉपी कर सकता था और प्रयोग कर सकता था. क्योंकि यह सामग्री मूलतः ध्यान सिंह
जी की है अतः मेरा कर्तव्य था कि इसे यथा संभव सुरक्षित रखा जाए और पीडीएफ बना कर
लिंक के रूप में अपने विभिन्न ब्लॉग्स पर रख दिया जाए ताकि जिज्ञासु इसे पढ़ सकें. आप इस फाइल का प्रिंट आऊट लेकर पढ़ सकते हैं.
शोधग्रंथ का यह एक ही अध्याय है जो
प्रस्तुत किया जा रहा है लेकिन निश्चित है कि इसमें मेघ भगतों का ज्ञात इतिहास है. मेघों का प्राचीन इतिहास कथा-कहानियों
के रूप में है. उन्हें संकेत माना जा सकता है. वास्तविक/विस्तृत इतिहास या तो लिखा
ही नहीं गया या उसे आक्रमणकारी कबीलों ने नष्ट कर दिया. अतः जो ज्ञात है उसे पहले जाना
जाए.
डॉ. ध्यान
सिंह के साभार और उनके कर कमलों से उनके शोधग्रंथ का तीसरा और मुख्य अध्याय
मेघवंशियों को समर्पित है.
डॉ. ध्यान सिंह
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उक्त ज्ञात इतिहास को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.
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