"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


21 June 2011

Baba Faqir Chand- Secret-4 बाबा फकीर चंद - रहस्य-4


Everywhere the same element is widespread and has its own four cells or worlds - physical, mental, spiritual and fourth is the essence. The game or work or self-powered motion of every world creates bodies of various forms made of either solid matter or subtle or causal matter and this texture generates a kind of consciousness or awareness which is called life. This life is physical, mental and spiritual. When parts of a body of any of these bodies get destroyed or become useless, then the life of that body comes to an end and the same parts of that get merged with other bodies or create another body.

The whole world, with all its parts, is a game of nature or God Almighty. The essence, infiniteness or origin of this entire existence (power) cannot be estimated or sensed. No one can see, understand or feel it. The human senses, which are result of acts of gross, subtle and spiritual bodies, cannot go beyond causal matter or spiritual body, so none has right to say what that eternal (reality) is. It is what it is, or, to say it from spiritual angle, it is an absolute wonderful condition.


एक ही तत्व सर्वत्र व्यापक है और जिसके अपने ही चार कोष या लोक हैं - शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और चौथा सार तत्व हैं. प्रत्येक लोक का खेल या कार्य अथवा स्वयं संचालित गति या तो स्थूल पदार्थ के या सूक्ष्म या कारण पदार्थ के विभिन्न रूप वाले शरीर बनाती है और इस बनावट से एक प्रकार की चेतना या बोध उत्पन्न होता है जिसको जीवन कहते हैं. वह शारीरिक, मानसिक और आत्मिक होता है. जब इन शरीरों में से किसी शरीर के अंग नष्ट हो जाते हैं अथवा नाकारा हो जाते हैं, तो उस शरीर का जीवन भी नाश हो जाता है और उस शरीर के वही अंग या तो दूसरे शरीरों से मिल जाते हैं अथवा दूसरे शरीर बना लेते हैं.


संसार अपने समस्त अंगों सहित प्रकृति या सर्वशक्तिमान ईश्वर का एक खेल है. इस समस्त अस्तित्व (सत्ता) के सार तत्व, अनन्तता या उद्गम का न अनुमान किया जा सकता है और न बोध. न कोई उसे देख सकता है, न समझ सकता है न महसूस कर सकता है. मनुष्य की इन्द्रियाँ जो स्थूल, सूक्ष्म और आत्मिक शरीरों के कृत्यों का परिणाम हैं, कारण पदार्थ या आत्मिक शरीर के आगे नहीं जा सकतीं, इसलिये किसी को यह कहने का अधिकार नहीं है कि वह अनन्त (असलियत) क्या है. वह जो है सो है अथवा मानसिक और आत्मिक दृष्टि से कहने के लिये एक परम आश्चर्यजनक दशा है.


नोट- (पुस्तक सच्चाई प्रथमतः 1948 में अंग्रेज़ी में छपी फिर उसका उर्दू अनुवाद 1955 में छपा. हिंदी अनुवाद का प्रकाशन अलीगढ़ की शिव पत्रिका ने 1957-58 में किया.)

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया और शानदार पोस्ट!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
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