"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


19 December 2011

Train from Pakistan (Jassadan Wali Train)- ‘जस्सड़ां वाली गाड़ी’- अनकही कथा

(Revised)

1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए लोग एक रेलगाड़ी का नाम बहुत लेते हैं- जस्सड़ां वाली गड्डी. इस गाड़ी में सवार लगभग सभी लोगों को मार डाला गया था. इसकी प्रतिक्रिया में लाशों से भरी दो गाड़ियाँ भारत से पाकिस्तान भेजी गईं. इनमें से एक गाड़ी की पृष्ठभूमि में खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) का उपन्यास Train to Pakistan लिखा गया. जस्सड़ां वाली गाड़ी को Train from Pakistan कह सकते हैं. मैंने एक दिन यों ही अपनी सासु माँ से पूछा कि आपको जस्सड़ां वाली गाड़ी के बारे में कुछ जानकारी है तो बोली, हाँ, है. हम उसी में आए थे. इसके बाद जो कुछ उन्होंने बताया वह मैंने समेकित किया है. जब यह घटना घटी तब वे लगभग सोलह वर्ष की थीं.

मेरी सासु माँ का नाम ध्यान देवी है और वे स्यालकोट के मोहल्ला प्रकाशनगर, गाँव लुट्टर की रहने वाली हैं. पिता का नाम हाड़ी राम और माता का नाम वीरो देई था.

भारत विभाजन के समय जब यह परिवार स्यालकोट से चला तो पहले स्यालकोट छावनी में नौ दिन रुका. इस परिवार में ध्यान देवी के माता-पिता के अतिरिक्त देसराज (भाई), ज्ञान देवी (बहन), आज्ञावंती (भाभी), प्रकाश (भाई), महेश कुमार (भाई, आयु 3 वर्ष), एक नवजात बहन कांता (आयु 20 दिन) और दादी थीं. स्यालकोट छावनी से गाड़ी पकड़ी. गाड़ी ठसाठस भरी हुई थी. दरवाज़ों-खिड़कियों और छतों पर भी लोग लटके हुए थे. वहाँ के अच्छे इंसानों ने सभी यात्रियों को रास्ते के लिए संतरे दे कर विदा किया. ध्यान देवी ने भी दो-तीन संतरे खीसे में डाल लिए. जस्सड़ स्टेशन नारोवाल और डेरा बाबा नानक के बीच पड़ता था और डेरा बाबा नानक से पहले रावी नदी पर एक पुल था जिसे पैदल पार करना था. जस्सड़ में मुसलमानों का एक समूह आया और आऊटर सिग्नल पर गाड़ी रोक दी गई और उसे चलने नहीं दिया. ध्यान देवी बताती हैं कि यह समूह गाड़ी में सवार एक महिला शीलू (शीला) को भारत नहीं आने दे रहा था क्यों कि शादी से पूर्व उसका एक मुसलमान लड़के से प्रेम रह चुका था. शीलू के सिख पति और अन्य संबंधियों द्वारा ज़ोर ज़बरदस्ती का विरोध करना मारकाट की वजह बन गया. हत्याओं का दौर शुरू हुआ और लूटपाट भी मची. इंसानियत कोने में दुबकी रही. धर्म-मज़हब हमेशा की तरह अप्रभावी हो गए. पुल आने से पहले ही लोगों को मारने का सिलसिला शुरू कर दिया गया. मारने की एक रणनीति थी. युवाओं को काट कर मारा गया, बूढ़ों और बच्चों को दरिया में फेंका गया. युवतियों को हाँक कर ले जाया गया. एक-एक युवती और 15-15 हाँकने वाले. उनकी दिशा छीन ली गई. ध्यान देवी उन्हें और तब के वातावरण को याद करती हैं....भगदड़ ही भगदड़....
ये जो थोड़े से लोग बच गए ये जैसे-तैसे पुल पार कर गए. दादी पुल पार करके नहीं आई. शायद मार डाली गई. अपनाई गई रणनीति के अनुसार युवा भाई प्रकाश को काट कर दरिया में फेंका गया. तीन साल के भाई महेश को जीवित दरिया में फेंका गया. माँ वीरो पर गंडासे से हमला हुआ. वह मुँह और सिर पर चोट खा कर गिर गई. लेकिन वह समय पीछे मुड़ कर मदद करने का नहीं था. जो पीछे छूट गया उसके मरा होने या ज़िंदा होने की सुध लेने की सुध किसी को नहीं थी. केवल एक दिशा का पता था कि उधर जाना है.
पुल पार करके सुरक्षित जगह पहुँचे लोगों को अब इंतज़ार करने का कुछ समय मिला. वे पीछे देखने लगे कि शायद कोई बचा हुआ संबंधी पुल पर आता दिख जाए. जो ज़िंदा बच गए थे उन बेघरों को अपनी आने वाली समस्याएँ दिखने और सताने लगीं.

16 वर्षीय ध्यान देवी ने अपनी 20 दिन की बहन को उठाया हुआ था और बीच-बीच में उसे संतरे का रस दे कर चुप कराती रही. उसकी माँ के ज़िंदा होने का पता नहीं था. पिता की चिंता थी कि इतनी छोटी बच्ची को कहाँ लिए फिरेंगे. कौन पालेगा. नन्हें शिशु को ध्यान देवी से ले कर दरिया में फेंकने की तैयारी कई बार की गई. परंतु ध्यान देवी सब समझती थी. हर बार वह बहन को किसी बहाने वापस ले लेती और संतरे का रस देती रही. शाम होते-होते पुल से कुछ लोग आते दिखे. ध्यान देवी को अपनी माँ घायल अवस्था में आती दिखाई दी. फिर दरिया में फेंका गया छोटा भाई महेश भी आता दिखा. तीन वर्षीय महेश अपने गाँव की दो अन्य बच्चियों को अपनी छोटी-छोटी उँगलियाँ थमा कर साथ ला रहा था. घटना के तौर पर इतना काफी था. लेकिन नहीं.....

सासु माँ की कहानी तीन घंटे चली. शीलू कौन थी जिसका नितांत निजी जीवन हज़ारों लोगों के मारे जाने का बहाना बन गया. शीलू इनके घर से तीसरे घर में रहती थी. शीलू बहुत सुंदर थी. उसकी पहली माँ का नाम भागवंती और दूसरी माँ का नाम सुमित्रा था. पिता संतराम बढ़ई थे. शीलू एक मुसलमान लड़के से प्रेम करती थी. उसके माता-पिता किसी मुसलमान से उसकी शादी के खिलाफ थे. उसकी शादी एक सिख परिवार में कर दी गई. वह सारा सिख परिवार, शीलू सहित, जस्सड़ां वाली गाड़ी काँड में मारा गया. उस माहौल में भी शीलू के माता-पिता ने पाकिस्तान में रहना बेहतर समझा और आगे चल कर मुसलमान हो गए.


(श्रीमती ध्यान  देवी   का  निधन 03-01-2014  को हुआ.)


25 comments:

  1. जिस पर बीती है असली दर्द तो वही जानता है लेकिन मैं यही कहूँगा कि हत्या करने वाले भी दरिंदे थे जिन्होंने इतना बुरी तरह मारकाट मचायी थी, माता जी मेरा प्रणाम कहना, उस विभत्स खूनी नरसंहार के बाद जीवित बचना किसी करिश्मे से कम नहीं है।

    जस्सड़ां वाली गाड़ी का सफ़र करने वाले सारी उम्र नहीं भूल पायेंगे।

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  2. दर्दनाक घटना है भाई.

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  3. दुर्लभ जानकारी और दुर्लभ चित्र।

    विभाजन की विभीषिका की हम केवल कल्पना कर सकते हैं।

    संग्रहणीय आलेख।

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  4. सामराज्यवादी -शोषण-लूट का यह वीभत्स रूप सांप्रदायिकता का जामा पहन कर सामने आए था जिसने एक लंबे अरसे तक आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक रूप से भारत की एकता मे व्यवधान डाले रखा और अब भी जब तक सिर उठाता रहता है। आजकल यह भूत 'अन्ना आंदोलन' के रूप मे अपने रौद्र रूप मे हमारे सामने है।

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  5. मन को झकझोर कर रख देते हैं ऐसे हादसे ... विभाजन का दर्द जीवन भर साथ ही रहा ... ।

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  6. विभाजन का दर्द तो सही मायनों में वे लोग ही समझ पाए होंगे जिन्होंने अपनों को खोया होगा ,जिनका आशियाना हमेशा के लिए उजर गया होगा ..
    हमलोग तो उनके दुःख को महसूस कर के ही कांप जाते हैं ...

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  7. यह झूठ तो सब बोल जाते हैं कि यह साम्राज्यवाद है, संप्रदायवाद है लेकिन धर्म इसके मूल में है, हमारे धार्मिक जन इसके मूल में हैं, यह कहते हुए पता नहीं क्या हो जाता है? फेसबुक पर इसे बाँट रहा हूँ।

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  8. ईश्वर की सर्वोत्तम रचना इंसान किस कद्र दरिंदगी की सारी हदें पार कर जाता है ! शीलू तो एक बहाना मात्र बनी, एक कारण मात्र अपनी हैवानियत ढकने के लिये जिसका कोई तर्क नहीं, कोई औचित्य नहीं ! नन्हे मासूम बच्चे, असहाय वृद्ध जन सभी नृशंसता के शिकार हुए ! यह वहशीपन जो मानवता के नाम पर सदा एक कलंक ही रहेगा !

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  9. जिन लोगो ने अपनो को खोया है विभाजन का दर्द वही समझ सकते है.मन को झकझोर दिया है इस धटना ने भारत भूषन जी.....आभार

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  10. poignant... how divisions n war always result in so many painful such stories !!

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  11. तकलीफदेह यादें ... ....
    हार्दिक शुभकामनायें आपको !

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  12. दुःख भरी दास्ताँ ! अफसोसजनक और दर्दनाक घटना!

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  13. Pallavi ✆ via blogger.bounces.google.com

    2:53 PM (1 hour ago)

    to me
    Pallavi has left a new comment on your post "Train from Pakistan (Jassadan Wali Train)- ‘जस्सड़...":

    इस घटना को जितनी बार भी पढ़ो बिकुल ऐसा लगता है जैसे सब कुछ आँखों के सामने ही चल रहा हो हालाकी मैं जानती हूँ इस भयावह घटना की कल्पना भी नामुमकिन है हमारे लिए। जिसने खुद इस दुखद घटना का अनुभव किया है वही समझ सकता है। आपने यह पोस्ट दुबारा पोस्ट की है क्या अंकल ? मुझे ऐसा लगा आप ही के ब्लॉग पर शायद पहले पढ़ी थी मैंने यह पोस्ट....

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  14. क्या लिखूं
    विभाजन का दृश्य आज भी आँखों सामने जीवित है वह हां हां कार चीखें ,मरघट लूट बस और नहीं लिख सकती

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  15. sach jis par gujarti hai wahi us dard ko harpal jeeta hai..
    Dard ki yah dastan kabhi n khatm hone wali hai..
    sarthak prastuti hetu aabhr!

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  16. विभाजन के समय हुए इन घटनाओं की वीभस्यता हमेशा ही रोंगटे खड़ी कर देती है. शुक्र है आपकी सासुमां आपके बीच है. जल विवादों के चलते अपने देश के अन्दर ही दो प्रदेशों के सीमावर्ती क्षेत्रों और अन्यत्र क्या होता है यह आज भी देखा जा सकता है ऐसे में उन ऐतिहासिक क्षणों की तो बस हम कल्पना कर ही सकते हैं. आपकी सासुमां के अनुभवों को साझा करने के लिए आभार. ... कोयम्बतूर से...

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  17. Amrita Tanmay ✆ noreply-comment@blogger.com

    1:18 PM (7 hours ago)

    to me
    Amrita Tanmay has left a new comment on your post "Train from Pakistan (Jassadan Wali Train)- ‘जस्सड़...":

    कहानियों में तो बहुत बार पढ़ा था विभाजन की घटनाओं को पर पहली बार पूज्यनीय ध्यान देवी से अनुभव रूप में पढ़ने को मिला . रोम-रोम सिहर उठा..

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  18. Navin Bhoiya ✆ dharmachar@gmail.com via blogger.bounces.google.com

    5:15 PM (3 hours ago) to me

    Navin Bhoiya has left a new comment on your post "Train from Pakistan (Jassadan Wali Train)- ‘जस्सड़...":

    भूषण सरजी,

    मुझे लगता है यह आलेख आपके माध्यम से में पहले भी पड़ चूका हूँ. उस वक्त भी मैं भावुक हो गया था और आज फिर से ऐसे लग रहा है जैसे ये घटना अभी अभी ही घटी है. ‘जस्सड़ां वाली गड्डी’ में सवार मारे गए सभी जीवात्माओ को श्रधासुमन अर्पण करता हूँ और आपकी सासु माँ और उनकी माँ तथा महेशजी का जीवित लौट आने पर आदर के साथ उनका अभिवादन करता हूँ.

    आपका धन्यवाद सरजी.

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  19. rongate khade karne walee saty ghatna........
    janko rakhe saiya maar sake naa koy kahavat ko charitarth kartee ...... kis vedana ke thour se guzre honge sabhee kya hum kalpana bhee kar sakte hai ? desh ne bahut keemat chukai hai swatantrata ke liye aur jati aur dharm ke naam par kahar dhane wale khule aam aaj bhee ghoomate hai......
    itanee kamseen umr me sasoo maa ne kya kya dekha offfff unake sneh samjhdaree ke kayal hue hum unaka santre ka juice pila kar baby ko chup karana......shruddhapoorvak pranam unhe .

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  20. संगीता स्वरुप ( गीत ) ✆ noreply-comment@blogger.com 12:27 AM (8 hours ago)to me
    संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "Train from Pakistan (Jassadan Wali Train)- ‘जस्सड़...":

    कैसा रहा होगा वो मंज़र ... पढ़ कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं ...

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  21. इस सचाई से रु-बा-रु कराने के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद....आभारी हूँ...

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  22. कहीं वहाँ भी तो संघ वगैरा जैसा मामला नहीं बनता था. आज के नेता ऐसा कह सकते हैं.

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