आवागमन को लेकर एक प्रश्न उठता रहता है कि इतने ऋषि-मुनि,
गुरु, महात्मा, संत, बाबा, योगी आदि हो गुज़रे हैं और उनके इतने शिष्य और शिष्यों
की अगणित शाखाएँ-प्रशाखाएँ हैं कि यदि वे आवागमन के चक्र से बाहर हो जाते तो
जन्म-मरण के सिद्धांत के अनुसार विश्व की आबादी, विशेष कर भारत की, कम होनी चाहिए
थी. हुआ उलटा. इसकी एक व्याख्या बाबा फकीर चंद के साहित्य से मिली है जो मुझे बेहतर
लगती है :-
“सोचता हूँ यह सृष्टि अनादि है. यदि
यह मान लूँ कि सन्तों की शिक्षा से आवागमन छूट जाता है तो ख्याल करता हूँ कि सत का
प्राकट्य कलियुग में हुआ तो आबादी तो इतनी बढ़ी कि जिसका कोई हिसाब नहीं. घट
जानी चाहिए थी. इसे जानने में मेरा दिमाग़ फेल होता है. मैं
तो हौसले से कहना चाहता हूँ कि कुदरत के भेद का पता शायद कबीर को भी न लगा हो. इतना
ही लगा कि वे इस संसार से उस ज्ञान के आधार पर, जो मैंने
संतमत में समझा, शायद आप अलग हो गये हों. कई
बार सोचता हूँ कि अलग हो गये तो क्या हो गया. जो अलग हो
गया उसके लिए संसार नहीं रहा. दुनिया जैसी
है वैसी बनी हुई है. सत्युग, त्रेता, द्वापर
और कलियुग के चक्र आते रहते हैं. क्या कहूं
कि कितने मनुष्य या कितनी आत्माएँ इस संसार से निकल गईं! समझ
यही आई कि आप निकल गया उसके लिये संसार भी निकल गया.” (‘अगम-वाणी’
से)
बहुत ही तार्किक बार उठाई है आपने इस लेख द्वारा । आबादी का और आत्मा का संबंध मुझे भी आज तक समझ नहीं आया! यदि आत्मा अजर-अमर है और पुराना शरीर त्याग नये शरीर में प्रवेश करती है तो जनसंख्या की वॄद्धि को देखते हुए इतनी आत्माएँ कहाँ से आईं?
ReplyDeleteइस वैचारिक प्रस्त५उति के लिये धन्यवाद ।
मेरा मन भी अक्सर ऐसा सवाल करता रहता है..
ReplyDeleteइस धरती पर अनेक बार इससे भी अधिक जनसंख्या रही होगी भाया अरब से पुरानी तो वेदों के अनुसार है तथा नया विज्ञान भी इसी तरफ जा रहा है। बिग बैंग को जब सृष्टि का आधार कहा जा रहा है तथा ये कहा जा रहा है कि ये नाद ही समय तथा आकाश के साथ गैस तरल ठोस को बना कर ब्रह्म का या विस्तार का रूप है तो आप जैसे पूछ रहे हैं कि यह बिग बैंग किस जगह हुआ था। भाया बैंग ही हो रहा है विस्तार ही हो रहा है नृत्य ही हो रहा है मृत्यु तो शरीर की होती है जन्मता भी शरीर है आत्मा न जन्मती है न मरती है वह तो वही है जहां जन्म व मृत्यु का खेल हो रहा है लीला हो रही है रास हो रहा है। इन प्रश्नों का उठना जब बंद हो जाता है तो खाली नहीं रहते हर तरह से भरे होते हैं ऋषि-मुनि, गुरु, महात्मा, संत, बाबा, योगी जो करुणा प्रेम से बांटते जाते हैं ले लो रे कोई लेने वाला पर बाद में आने वाला तो यही कहता है कि कोई बात नहीं कल ले लेंगे आज तो पता करने नेट पर जाते हैं कि आत्माएं मुक्त हो गई तो जनसंख्या कैसे बढ़ गई।
ReplyDeleteवेदों में आपने भी एक अरब संख्या ढूँढी. क्यों? क्योंकि संख्याओं से आपको भी कुछ लेना है. जब वेद लिखे गए थे तब दुनिया की जनसंख्या एकत्रित करने की परंपरा विकसित नहीं हुई थी. कबीलाई कहानियाँ अवश्य थीं जो बढ़ा-चढ़ा कर बातें कहती थीं.
Deleteकुछ सनातन प्रश्न होते हैं जिन से रूबरू होना अच्छा होता है. आपकी टिप्पणी बिग बैंग, विज्ञान, नृत्य में उलझाती तो है लेकिन उत्तर नहीं देती. आत्माएँ मुक्त होती हैं तो धरती पर उनकी संख्या घटना चाहिए थी, प्रश्न वहीं है.
दूसरे आपने अपनी बात कहने के लिए मसीहाई मुद्रा अपनाई है. क्या इसके बिना गुज़ारा नहीं?