जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के कई भूभाग सन 1900 के आसपास chamba state में शामिल थे। रावी और चंद्रभागा नदियों के कारण यह महत्वपूर्ण क्षेत्र था। उन्नीसवीं सदी के अंत में अंग्रेजों ने इस भूभाग का विस्तृत सर्वे और अनुसन्धान किया जिसे गजेटिअर ऑफ़ चाम्बा के नाम से 1910 में प्रकाशित किया। सैमुएल टी वेस्टन द्वारा सम्पादित इस गजेटियर में इन इलाकों में निवासित लोगों के रहन-सहन, रीति-रिवाज, खानपान, व्यवसाय और इतिहास आदि पर महत्वपूर्ण सामग्री है। पंजाब और जे. के. आदि क्षेत्रों में निवास करने वाले मेघ समुदाय पर उपलब्ध सूचना संक्षेप में निम्न प्रकार है-
To Satish Bhagat-.यहाँ
पर आपको सैम्युल टी वेस्टन के मेघ इतिहास के बारे में व्यक्त मत का अनुवाद
पेश कर रहा हूँ। कृपया संग्रहित करें। जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर मेघ
आबादी पर्वतीय क्षेत्रों में रहती है। ये वर्त्तमान में पर्वतों पर नहीं बसे
हैं बल्कि जब से पहाड़ी क्षेत्रों में बस्तियाँ बसने लगीं तभी से आबाद हैं। आज
ये एक जाति के रूप में जाने जाते हैं।
सैमुअल टी वेस्टन लिखते हैं- "पर्वतों पर रहने वाले ये लोग मूलतः कौन थे? इस
बारे में अत्यल्प जानकारी भी उपलब्ध नहीं है; जो इस बारे में हमारी मदद कर
सके। परम्परागत मान्यता है कि ये लोग मैदानी इलाकों से आकर यहाँ बसे हैं।
जहाँ सब कुछ अनिश्चित है; जहाँ कोई अनुमान की जोखिम उठाता तो यह असम्भाव्य
नहीं लगता है कि वर्त्तमान में जो मेघ आदि जातियाँ हैं वे लोग ही यहाँ के
आदि (मूल) निवासी है।--------इनकी आबादी एक चौथाई है। जो कोली----मेघ और कुछ
अन्य में परिगणित हैं। यद्यपि वे सामाजिक स्तरीकरण में अलग अलग हैं परन्तु
हिन्दुओं द्वारा उन्हें बहिष्कृत (जाति बाह्य) ही माना जाता है। इन लोगों के
पास अपने मूल निवास की कोई इतिहास-परंपरा भी नहीं है। जो इस अनुमान को पुष्ट
करता है कि उनको यहाँ निवास करते हुए लम्बा काल गुजर चुका है। जनरल
कन्निन्घम आश्वस्त हैं कि किसी समय पश्चिमी हिमालय क्षेत्र, मध्य भारत में
बसने वाली कोल प्रजाति के समान मानव समूहों द्वारा ही आबाद था। आज भी ये
बहुतायत लोग है; जो कोल; मेघ नाम धारण करते हैं । ये वही लोग है।" पूर्वोक्त
पृष्ठ 58.
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