ग़ज़ल के क्षेत्र में यह एक सशक्त हस्ताक्षर दिखा है. शायद मैं ही इसे देखने में लेट हूँ. आप इसका आनंद लीजिए.
यूँ मिला आज वो मुझसे कि ख़फ़ा हो जैसे
मैंने महसूस किया मेरी ख़ता हो जैसे
तुम मिले हो तो ये दर-दर पे भटकना छूटा
एक बेकार को कुछ काम मिला हो जैसे
ज़िंदगी छोड़ के जायेगी न जीने देगी
मैंने इसका कोई नुकसान किया हो जैसे
वो तो आदेश पे आदेश दिये जाता है
सिर्फ़ मेरा नहीं दुनिया का ख़ुदा हो जैसे
तेरे होठों पे मेरा नाम ख़ुदा ख़ैर करे
एक मस्जिद पे श्रीराम लिखा हो जैसे
मेरे कानों में बजी प्यार भरी धुन बल्ली
उसने हौले से मेरा नाम लिया हो जैसे
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यूँ मिला आज वो मुझसे कि ख़फ़ा हो जैसे
मैंने महसूस किया मेरी ख़ता हो जैसे
तुम मिले हो तो ये दर-दर पे भटकना छूटा
एक बेकार को कुछ काम मिला हो जैसे
ज़िंदगी छोड़ के जायेगी न जीने देगी
मैंने इसका कोई नुकसान किया हो जैसे
वो तो आदेश पे आदेश दिये जाता है
सिर्फ़ मेरा नहीं दुनिया का ख़ुदा हो जैसे
तेरे होठों पे मेरा नाम ख़ुदा ख़ैर करे
एक मस्जिद पे श्रीराम लिखा हो जैसे
मेरे कानों में बजी प्यार भरी धुन बल्ली
उसने हौले से मेरा नाम लिया हो जैसे
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