"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


30 December 2013

The reality of riots - दंगों का सच

दंगों का कारण कभी भी केवल धार्मिक और आर्थिक नहीं रहा. इनका संबंध सत्ता से रहा है और अब लोकतंत्र में सीधे तौर पर वोटों की गिनती के साथ है. कोशिश होती है कि दंगे कर के दलितों और दलितों से धर्मांतरित हुए मुस्लिमों को पहले के मुकाबले अधिक गरीब कर दिया जाए और बाद में पुनर्वास के नाम पर उन्हें उनके वोट क्षेत्र से दूर ले जाकर बसाया जाए ताकि उनके वोटों की ताकत बिखर जाए.


3 comments:

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