बीजेपी
का दलित दाँव
आज
सभी समाचारिया चैनल उदित
राज (बुद्धिस्ट) और
रामविलास पासवान (दुसाध) और
रामदास अठावले (बुद्धिस्ट), अध्यक्ष, रिपब्लिकन
पार्टी ऑफ इंडिया के बीजेपी
में जाने की खबरों से अटे पड़े
हैं.
पासवान
कभी पायदार सामाजिक कार्यकर्ता
रहे हैं. केंद्र
में मंत्री भी रह चुके हैं. उनकी
पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी
है. आजकल
उनकी छवि मौकापरस्त राजनेता
की है. उदितराज
का नाम पहले रामराज था. संभवतः
अंबेडकरवाद से प्रभावित हो
कर उन्होंने अपना नाम उदितराज
कर लिया. दिल्ली
में काफी सक्रिय रहे हैं. उनकी 'इंडियन
जस्टिस पार्टी' नाम
से एक राजनीतिक पार्टी भी
है. दक्षिण
भारत की कुछ दलित संस्थाओं
में उनकी अच्छी घुसपैठ है. एक
बार उनसे फोन पर बात करने का
सुअवसर प्राप्त हुआ था. काफी
खनखनाती आवाज़ में टू द प्वाइंट
बोलते हैं.
बीजेपी
ने काफी समय से ओबीसी को
जाने-अनजाने
में अपने पसंदीदा टारगेट पर
रखा है. उमा
भारती,
(शायद) गोविंदाचार्य (भी), नरेंद्र
मोदी नामक ओबीसी पत्ते उसके
पास रहे हैं. पंजाब
में एक वर्तमान मंत्री श्री
चूनी लाल भगत को कुछ प्रोमोट
किया है. इसी
प्रकार राजस्थान और जम्मू-कश्मीर
के मेघों में भी बीजेपी की
बिजली चमकी है. राजस्थान
में कैलाश मेघवाल विधानसभा
के अध्यक्ष हैं केंद्र में
एनडीए की पिछली सरकार में
अर्जुन मेघवाल एक महत्वपूर्ण
चेहरा बने हैं.
मेघवंशियों
और बीजेपी पर मैंने मेघनेट
पर एक पोस्ट लिखी थी. नीचे
दिए उसके लिंक पर आप कुछ जानकारी
ले सकते हैं. मैं
अपनी खोपड़ी के खाँचे के अनुसार
पासवान और उदितराज को मेघवंशी
मानता हूँ.
ख़ैर! हर
पार्टी दलित कार्ड खेलती है
और हर दलित नेता के हाथ
में 4-5 पार्टियों
के पत्ते होते हैं. देखा
यह है कि दलितों का थर्मामीटर
राजनीतिक समझदारी का तापमान
कम और आपसी अनेकता का तापमान अधिक
दिखाता है. दाँव
पर ख़ुद जनता होती है.
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