जर्मन-स्विस
उपन्यासकार हरमन हेस Hermann
Hesse ने
एक बहु चर्चित उपन्यास लिखा
था -
Sidhhartha.
जिस
पर अंगरेज़ी में इसी नाम से
एक फिल्म बनी थी.
मुझे
बहुत पसंद आई थी.
कई
वर्ष बाद उसमें प्रयुक्त एक
बंग्ला गीत-
'ओ
नोदी रे,
एकटी
कोथा शोधाय शुधु तोमारे'
यू
ट्यूब पर सुनने को मन किया तो
सिद्धार्थ और उसके मित्र
गोविंदा के बीच के संवाद फिर
ध्यान से सुने.
उन्हें
यहाँ रख लिया है.
इनमें
एक बात है जो आध्यात्मिक खोज
को एक अंत देती है. यह अहसास नया न सही, लेकिन आज भी ताज़ा है. Thank you, Mr. Hesse.
सिद्धार्थ
– ''गोविंदा!
मेरे
प्यारे दोस्त गोविंदा,
उद्देश्य
की यही समस्या है कि आदमी
उद्देश्य को लेकर उससे ग्रस्त
हो जाता है.
जब
तुम खोज रहे हो तो उसका अर्थ
है कि कुछ
पाना बाकी है लेकिन असल मुक्ति
तो यह समझ लेने में है कि लक्ष्य
तो कुछ है नहीं.
जो
है वह अब है.
जो
कल हुआ वह चला गया.
कल
क्या होगा हम नहीं जानते.
इसलिए
हमें वर्तमान में ही जीना
चाहिए.
नदी
की तरह.
हर
चीज लौटती है.
कोई
चीज़ वैसी ही नहीं रहती.
गोविंदा,
कोई
व्यक्ति कभी भी पूरी तरह संत
नहीं होता या पूरी तरह पापी
नहीं होता.
बुद्ध
डाकू में भी है और वेश्या में
भी.
ईश्वर
सब कहीं है.''
गोविंदा - ''ईश्वर सब कहीं है?''
सिद्धार्थ - (एक पत्थर को प्रेमपूर्वक हाथ में लेकर) ''तुम इस पत्थर को देख रहे हो. यह पत्थर कुछ समय बाद मिट्टी हो जाएगा और मिट्टी से यह पौधा या प्राणी या मनुष्य बनेगा. अब यह सब जानने से पहले मैं कहा करता था यह एक पत्थर है, इसकी कोई कीमत नहीं है. अब मैं सोचता हूँ कि यह पत्थर सिर्फ पत्थर नहीं है. यह प्राणी है, यह ईश्वर है, यह बुद्ध है, और परिवर्तन के चक्र में यह मनुष्य और जीव बन सकता है. इसका महत्व हो सकता है क्योंकि पहले ही यह बहुत कुछ रह चुका है. मैं पत्थर से प्रेम करता हूँ.....मैं इसे प्रेम करता हूँ क्योंकि यह एक पत्थर है. गोविंदा, मैं शब्दों के बिना प्रेम कर सकता हूँ इसीलिए मैं शिक्षकों में विश्वास नहीं करता. नदी..!! नदी सबसे बढिया शिक्षक है.''
गोविंदा - ''ईश्वर सब कहीं है?''
सिद्धार्थ - (एक पत्थर को प्रेमपूर्वक हाथ में लेकर) ''तुम इस पत्थर को देख रहे हो. यह पत्थर कुछ समय बाद मिट्टी हो जाएगा और मिट्टी से यह पौधा या प्राणी या मनुष्य बनेगा. अब यह सब जानने से पहले मैं कहा करता था यह एक पत्थर है, इसकी कोई कीमत नहीं है. अब मैं सोचता हूँ कि यह पत्थर सिर्फ पत्थर नहीं है. यह प्राणी है, यह ईश्वर है, यह बुद्ध है, और परिवर्तन के चक्र में यह मनुष्य और जीव बन सकता है. इसका महत्व हो सकता है क्योंकि पहले ही यह बहुत कुछ रह चुका है. मैं पत्थर से प्रेम करता हूँ.....मैं इसे प्रेम करता हूँ क्योंकि यह एक पत्थर है. गोविंदा, मैं शब्दों के बिना प्रेम कर सकता हूँ इसीलिए मैं शिक्षकों में विश्वास नहीं करता. नदी..!! नदी सबसे बढिया शिक्षक है.''
गोविंदा
- ''तुम्हें
बुद्ध याद है?''
सिद्धार्थ
– ''हाँ,
मुझे
याद है और वे सभी याद हैं जिनको
हमने प्रेम किया और जो हमसे
पहले मर गए.....और मैंने यह जाना
है कि हमें खोज को भूलना होगा.''
गोवंदा
- ''मुझे
भी कुछ बताओ जिससे मुझे सहायता
मिले.
मेरा
रास्ता बहुत कठिन है.
मुझे
वह बताओ जो मैं समझ सकूँ.
मेरी
सहायता करो,
सिद्धार्थ!''
सिद्धार्थ
-
ढूँढना
बंद करो, चिंता करना छोड़ो और प्रेम देना सीखो.
मेरे
पास रुको और नदी पर मेरे साथ
काम करो,
गोविंदा!
शांति
से रहो!......गोविंदा,
शांति
से रहो!!
MEGHnet
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