"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


02 January 2017

Happy new year via Faiz - नया साल मुबारक वाया फ़ैज़


फै़ज़ अहमद 'फ़ैज़' की एक अनोखी नज़्म

*ऐ नये साल*

ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है?
हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है?
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही,
आज हमको नज़र आती है हर बात वही।
आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं,
एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं।
अगले बरसों की तरह होंगे करीने तेरे,
किसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे।
जनवरी, फरवरी और मार्च में पड़ेगी सर्दी,
और अप्रैल, मई, जून में होवेगी गर्मी।
तेरे मान-दहार में कुछ खोएगा कुछ पाएगा,
अपनी मय्यत बसर करके चला जाएगा।
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नई,
वरना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई।
बे-सबब देते हैं क्यों लोग मुबारक बादें,
गालिबन भूल गए वक़्त की कड़वी यादें।
तेरी आमद से घटी उम्र जहां में सभी की,
'फैज' नयी लिखी है यह नज़्म निराले ढब की।

(ख़ल्क – दुनिया, हिन्दसे – अंक, जिद्दत – नयी बात, आधुनिकता (novelty), करीने – ढ़ंग,
मान-दहार – समय (time period), ग़ालिबन – शायद, आमद – आने से)

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