"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


05 March 2017

King Preist of Indus Valley - सिंधु घाटी का पुरोहित नरेश


अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भाषाविज्ञानी डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाषा के नज़रिए से इतिहास पर समीक्षात्मक नज़र डाली है. उन्होंने नई बातें सामने ला दी हैं जो अभी तक लिखे गए इतिहास पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं साथ ही कई मान्यताओं को भी प्रभावित करती हैं.


मेघ ऋषि को अपना वंशकर्ता मानने वाले कुछ मेघवंशियों ने मेघऋषि के रूप की कल्पना सिंधुघाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) से मिली पुरोहित नरेश की मूर्ति के आधार पर की और उसका अच्छा प्रचार किया है. वैदिक या पौराणिक कथाओं में वर्णित किसी ऋषि की कल्पना उसके लिए प्रयुक्त शब्दों से मन पर उभरती छवियों के आधार पर होती है. मेघ ऋषि का कोई प्रामाणिक चित्र तो है नहीं फिर भी मेघ ऋषि का एक रूप बना कर उस में आस्था पिरोई जा सकती है. दूसरी ओर वैज्ञानिक खोज हमारी आस्था आधारित अवधारणआओं को प्रभावित करती चलती है.


डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह जी ने उक्त पुरोहित नरेश की मूर्ति के माथे पर लगे गोल अलंकरण के बारे में बताया है कि:-


“पालि का एक शब्द है - ककुध. ककु अर्थात शिखर. ककुसन्ध बुद्ध इसी से संबंधित हैं. ककुध के तीन रूप हैं - ककुध, ककुभ और ककुद. ककुध के तीन अर्थ प्रमुख हैं - शीर्ष, राजचिह्न और वृषभ का कूबड़. विशेषण के अर्थ में यह उत्तम पुरुष का द्योतक है - अध्यात्म के क्षेत्र में भी और सत्ता के क्षेत्र में भी.


सिंधु घाटी सभ्यता में सेलखड़ी पत्थर की बनी जिस प्रतिनिधि पुरुष की मूर्ति को इतिहासकारों ने पुरोहित नरेश या कोई शक्ति केंद्रित पुरुष की मूर्ति बताई है, उसके मस्तक पर गोल अलंकरण है, वह ककुध है. कई सील-चित्रों पर कूबड़दार वृषभ का अंकन है और जिनके बारे में इतिहासकारों की राय है कि उनकी पूजा होती होगी, उनकी पीठ के शीर्ष भाग पर ककुध है. गौतम बुद्ध के मस्तक पर जो उठी हुई गोलाई है, यदि आप उसे टीका या मांसपिंड समझते हैं तो यह गलतफहमी है. बौद्ध मत में इसे ककुध कहा जाता है. ककुध की परंपरा सिंधु घाटी सभ्यता को बौद्ध सभ्यता से जोड़ती है.” एक अन्य जगह डॉ. राजोेंद्र प्रसाद सिंह ने स्पष्ट लिख दिया है कि उक्त ककुध की मूर्ति को पीछे से देखने पर यह बात और भी साफ़ होने लगती है कि वह मूर्ति बुद्ध की मूर्ति हो सकती है.


यानि सिंधुघाटी सभ्यता ख़ुद के बौध सभ्यता होने का पर्याप्त संकेत देती है. मैंने उक्त मूर्ति के लिए प्रयुक्त शब्द ‘King Preist’ का हिंदी अनुवाद ‘राज पुरोहित’ किया था जो ग़लत था. डॉ. राजेंद्र जी द्वारा प्रयुक्त शब्द ‘पुरोहित नरेश’ सही और सटीक शब्द है.

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