01 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव की यादों की बाढ़ फिर से आ गई है. चंद्रधर हडके ने फेसबुक पर एक बहुत जानकारी से भरा आलेख पोस्ट किया था जिसके माध्यम से मैंने भीमा कोरेगांव के इतिहास के बारे में जाना था. लेकिन कोरेगांव की हाल की घटनाओं ने मुझे वो जानकारी भी दी जो अभी तक आँखों से ओझल थी.
01 जनवरी, 2018 का दिन भारत के जातिवाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ गया है. सवर्ण मीडिया मराठों और दलितों को आपस में बाँटने के चक्कर में उनमें एकता की पृष्ठभूमि तैयार कर गया हालाँकि अब वो ‘डैमेज कंट्रोल’ में लगा है. लेकिन जो होना था वो तो हो गया. मराठा संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि कोरेगांव और उसके इतिहास को लेकर उनका कोई मतभेद महारों या अन्य अनुसूचित जातियों से नहीं है.
सवर्ण मीडिया को यह प्रमाणित करने की जल्दी थी कि भीमा कोरेगांव में जो दलित जाते हैं वे वहाँ पेशवाओं पर अंगरेज़ों की जीत का जश्न मनाते हैं (यानि वे दलित देश के ग़द्दार हैं). ज़ाहिर था कि मीडिया में बैठे उनके एंकर देश में राष्ट्रभक्ति और ग़द्दारी के सर्टिफिकेट बाँटने का कार्य कर रहे थे. मीडिया की यही कोशिश उस पर उलटी पड़ी और प्रतिक्रिया में दलित संगठन बहुत मज़बूत हो कर सड़कों पर उतर आए. पहली बार मुंबई बंद हुआ. देश के अन्य भागों में प्रोटेस्ट आयोजित किए जा रहे हैं. उत्तर भारत के गांवों में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव और महारों के शौर्य के इतिहास के बारे में शायद ही कोई जानता था. लेकिन अब जान गया है. देश की मूलनिवासी जातियाँ बहुत कुछ बर्दाश्त कर जाती हैं लेकिन यह बर्दाश्त नहीं करेंगी कि कोई उन्हें देशद्रोही कहे. एक जनवरी से मूलनिवासियों ने यह जानकारी भी बड़े पैमाने पर हासिल कर ली कि देश के ग़द्दार वास्तव में कौन थे और हैं जो देश और समाज को कमज़ोर करने में लगे हैं.
आग लगाऊ मीडिया के लिंक्स की उपेक्षा कर रहा हूँ और जिन एंकरों की भूमिका ठीक-ठाक रही उनसे संबंधित लिंक्स दे रहा हूँ.
एनडीटीवी इंडिया पर निधि कुलपति का प्राइम टाइम
‘द वायर’ के एंकर विनोद दुआ का जन गण मन की बात
भीमा-कोरेगांव-2
प्रसंगवश दो लिंक्स नीचे दे रहा हूँ जिनसे जानकारी मिलती है कि महार जाति बुनकर जाति है जिसका मूल मेघवंश है.
01 जनवरी, 2018 का दिन भारत के जातिवाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ गया है. सवर्ण मीडिया मराठों और दलितों को आपस में बाँटने के चक्कर में उनमें एकता की पृष्ठभूमि तैयार कर गया हालाँकि अब वो ‘डैमेज कंट्रोल’ में लगा है. लेकिन जो होना था वो तो हो गया. मराठा संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि कोरेगांव और उसके इतिहास को लेकर उनका कोई मतभेद महारों या अन्य अनुसूचित जातियों से नहीं है.
सवर्ण मीडिया को यह प्रमाणित करने की जल्दी थी कि भीमा कोरेगांव में जो दलित जाते हैं वे वहाँ पेशवाओं पर अंगरेज़ों की जीत का जश्न मनाते हैं (यानि वे दलित देश के ग़द्दार हैं). ज़ाहिर था कि मीडिया में बैठे उनके एंकर देश में राष्ट्रभक्ति और ग़द्दारी के सर्टिफिकेट बाँटने का कार्य कर रहे थे. मीडिया की यही कोशिश उस पर उलटी पड़ी और प्रतिक्रिया में दलित संगठन बहुत मज़बूत हो कर सड़कों पर उतर आए. पहली बार मुंबई बंद हुआ. देश के अन्य भागों में प्रोटेस्ट आयोजित किए जा रहे हैं. उत्तर भारत के गांवों में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव और महारों के शौर्य के इतिहास के बारे में शायद ही कोई जानता था. लेकिन अब जान गया है. देश की मूलनिवासी जातियाँ बहुत कुछ बर्दाश्त कर जाती हैं लेकिन यह बर्दाश्त नहीं करेंगी कि कोई उन्हें देशद्रोही कहे. एक जनवरी से मूलनिवासियों ने यह जानकारी भी बड़े पैमाने पर हासिल कर ली कि देश के ग़द्दार वास्तव में कौन थे और हैं जो देश और समाज को कमज़ोर करने में लगे हैं.
आग लगाऊ मीडिया के लिंक्स की उपेक्षा कर रहा हूँ और जिन एंकरों की भूमिका ठीक-ठाक रही उनसे संबंधित लिंक्स दे रहा हूँ.
एनडीटीवी इंडिया पर निधि कुलपति का प्राइम टाइम
‘द वायर’ के एंकर विनोद दुआ का जन गण मन की बात
भीमा-कोरेगांव-2
प्रसंगवश दो लिंक्स नीचे दे रहा हूँ जिनसे जानकारी मिलती है कि महार जाति बुनकर जाति है जिसका मूल मेघवंश है.
The main occupation of Mahar community is weaving (07-01-2018 को भी रिट्रीव किया)
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