“मेघ या मेग भारत का एक प्राचीन राजनीतिक और सांस्कृतिक जातीय समूह है,” ऐसा ताराराम जी ने हाल ही में लिखे अपने एक आलेख में कहा है. यही बात पहले के विद्वान भी कह चुके हैं. मेघों के प्राचीन इतिहास पर कई लोगों ने लिखा है लेकिन मेघ समाज के अपने सदस्यों ने इस विषय पर बहुत ही कम लिखा है और जिन्होंने लिखा मैं उनकी बात आजकल अधिक कर रहा हूं. यह पूरी नीयत से और जानबूझ कर है.
अपने नए आलेख में ताराराम जी ने ‘मेघ’ शब्द की उत्पत्ति और उसकी वैदिक प्रयुक्ति के बारे में लिखा है. विवादास्पद शब्द ‘असुर’ की उन्होंने पर्याप्त व्याख्या कर दी है. लोक-कथाओं में आने वाले वैदिक-पौराणिक पात्र मेघ, वृत्र और मेघ ऋषि और विशेषकर ‘वृत्र’ शब्द की व्याख्या पर उन्होंने विस्तार से लिखा है. अपने कथ्य की पुष्टि के लिए उन्होंने विभिन्न स्रोतों से संदर्भ जुटाए और उद्धृत किए हैं. उन्होंने कहा है कि यह अभी प्रारूप है और वे इस पर अभी कार्य कर रहे हैं. उनके उसी आलेख का लिंक नीचे दे रहा हूँ. यह आलेख हमारे कई सवालों के उत्तर और उनके प्रमाण मुहैया कराता है.
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