सदियों से गरीबी की मार झेल रही जातियां अपना अतीत ढूंढने के लिए मजबूर हैं ताकि वे अपने आपको समझ सकें. इस बारे में एक बहुत ही अद्भुत फिनॉमिना है कि वे लोक-कथाओं के ज़रिए आपस में राजा-रानी और राजकुमार-राजकुमारी की कहानियां सुनाते हैं. सुनते हुए वे खुद की और अपने माता पिता की पहचान राजा-रानी या उनकी संतानों के रूप में करते हैं. यह प्रवृत्ति सारी इंसानी ज़ात में देखी जाती है. यदि किसी को मालूम हो जाए कि उसके पुरखे कभी, किसी समय, किसी इलाक़े के शासक थे तो उसे कैसा महसूस होगा इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है. उसे थोड़ी बहुत हैरानगी और खुशी भी होगी कि उसकी जमात में बहुत क्षमताएं रही हैं. लेकिन वो जानना चाहेगा कि किस कारण से उनकी क्षमताएँ संकुचित हो गईं.
हालांकि पहले भी मैंने इस ब्लॉग पर कुछ पोस्ट लिखी हैं जो बताती हैं कि मेघवंशी जातियों के पुरखे कभी शासक रहे हैं. उन पोस्टों पर यद्यपि किसी ने कमेंट नहीं किया लेकिन टेलीफोन पर कई प्रतिक्रियाएं मिलीं. उनमें से एक मज़ेदार प्रतिक्रिया यह भी थी कि कुछ बच्चे उन पोस्टों को पढ़कर बिगड़ गए और फिजूलखर्ची पर उतर आए (यानि मेरी पोस्ट को दोषी करार दिया जा रहा था :)). मैं नहीं समझता यदि बच्चों का पालन-पोषण सही तरीके से हुआ है तो वे ऐसी किसी पोस्ट को पढ़कर बिगड़ ही जाएंगे. यह सब कुछ यदि मेरे ब्लॉग पर ना भी रहता तो भी, कहीं ना कहीं, किसी न किसी जिज्ञासु बच्चे के हाथ में आ जाता. बच्चों का रास्ता उनका परिवेश तय करता है.
मेघ वंश के राजाओं के बारे में हाल ही में जो विस्तृत सामग्री मिली है वो जोधपुर के श्री ताराराम (जिन्होंने मेघवंश - इतिहास और संस्कृति नाम की पुस्तक लिखी है) के ज़रिए मिली है. उन्होंने इतिहास की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. साधना मेघवाल के शोध-पत्र की फोटो प्रतियां भेजी हैं जिन्हें आप नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते हैं. यह शोध-पत्र 'राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस' (जो राजस्थान के इतिहासकारों का एक मंच है) के एक अधिवेशन में प्रस्तुत किया गया था. ध्यान रहे कि इस शोध-पत्र में दिए गए संदर्भ नामी-गिरामी इतिहासकारों की पुस्तकों से लिए गए हैं. लिंक नीचे हैं. डॉ. साधना मेघवाल को बहुत बहुत धन्यवाद.
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"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह
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मेरा मानना है कहीं कोई वंश जो सदियों से चला आ रहा है जो कुछ विशेषता तो रही होगी ... उनके पूर्वज भी होंगे जिन्होंने समाज को दिशा दी होगी ... आप समाज के लिए एक संकलन इकठ्ठा कर रहे हैं सतत कर रहे हैं जिसके लिए आपको साधुवाद ...
ReplyDeleteसही कहा आपने, अपने अतीत की उज्ज्वल गाथा से हर किसी को प्रसन्नता और गौरव की ही अनूभूति होगी.
ReplyDeleteइतिहास को संजोये रखने
ReplyDeleteमें ये लिंक काम आने वाले हैं भविष्य में ... आप सतत कार्य कर रहे हैं जिसके लिए आपको साधुवाद ...