राजनीति दुनिया के चार बड़े धंधों में से एक है. राजनीतिज्ञ (politician) किसी विचारधारा पर चलता है लेकिन समझौते भी करता चलता है, वह विचारधारा से हट भी जाता है ताकि सत्ता में बना रहे. उसके वादे कोई गारंटी नहीं देते. उसके अस्तित्व की सार्थकता सत्ता में या सत्ता के पास रहने में है. वह मुद्दों की छीना-झपटी करता है और मुद्दों का उत्पादन करता है. वह कसम तो संविधान की खाता है लेकिन कार्य पार्टी के एजेंडा पर करता है, जैसे - युद्ध, दंगे, गाय, हिंदुत्व, धर्म आदि. उसका कार्यकर्ता (political worker, activist) उसके एनेक्सचर-सा होता है, स्थान दोयम दर्जे का और कुल मिला कर इस्तेमाल करके फेंक देने वाली चीज़. राजनीतिज्ञ की पहचान उसकी राजनीतिक समझ है और राजनीतिक कार्यकर्ता अपनी सामाजिक सक्रियता और सामाजिक कार्य से सम्मान पाता है. अपने नेता की गलती का परिणाम जनता के साथ-साथ कार्यकर्ता को भी भुगतना पड़ता है. जब कोई कार्यकर्ता ख़ुद राजनीतिज्ञ बन जाता है तो समाज को सीधे तौर पर नुकसान होता है. राजनीतिज्ञ और उसके कार्यकर्ताओं के मुकाबले सामाजिक कार्यकर्ता अधिक सम्मान का हक़दार है.
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"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह
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राजनैतिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता में ज़मीन आसमान का अन्तर है . वर्तमान में तो राजनैतिक कार्यकर्ता के साथ-साथ राजनेता भी संविधान का उल्लंघन करते देखे जा रहे हैं .
ReplyDeleteआपका कहना सही है और किसी वक़्त में ऐसा होता भी था ...
ReplyDeleteविनोब भावे जैसे लोग इसके उदाहरण भी हैं पर आज के समय में बस राजनीति ही रह गई है ... समाज में मार्ग करने वालों का सम्मान नहि के बराबर है ... Anna शायद इसके आज के सबसे बड़े उदाहरण हैं ...