इतिहास का प्रवाह और भाषा (और उसकी ध्वनियों) का प्रवाह दो ऐसी रेखाएँ हैं जो एक दूसरे से लिपट कर चलती हैं. यदि एक रेखा छिटक कर अलग दिखती है तो दूसरी उसके व्यवहार की ओर इशारा कर देती है कि- 'वो देखो मेरी बहन अलग खिचड़ी पका रही है'. ‘मेघ’ शब्द की तलाश में निकले लोग ‘म’, ‘मे’, ‘में’ जैसी ध्वनियों का पीछा करते कहाँ-कहाँ पहुँचे इसका कुछ अनुभव हुआ है. यह ठीक वैसे हुआ है जैसे एम.ए. Pol.Science में करने के बाद लोग पोल्ट्री फार्मिंग को गूगल करने लगे या एम.ए. हिंदी करने वाले हिस्ट्री को गूगल करने लगे.😄लेकिन इसे इतना सरल भी न समझें. यही देश है जहाँ मिनांडर (Menander) जैसे ऐतिहासिक पात्र को मनिंदर भी कहा गया और मिलिंद भी. यहाँ भी आप बदली हुई ध्वनियों को खोजते हुए सत्य तक पहुँचने की कोशिश करते हैं.
शब्दकोश
में
‘मेघ’
शब्द
ढूँढने
पर
उसके
अर्थ
की
व्यापकता
को
हम
'जगत
के
जीवन'
की
सीमा
तक
बड़ा-बड़ा करके
देख
सकते
हैं.
‘नागमेघ’
के
तो
कहने
ही
क्या.
शेषनाग
के
सिर
पर
तो
धरती
टिकी
रही.
‘मेघ’
शब्द
धरती
के
किस
कोने
में
किस-किस
अर्थ
में
इस्तेमाल
हुआ
यह
दूसरी
खोज
है.
नागवंश
में
से
मेघवंश
की
उत्पत्ति
इतिहास
की
तीसरी
धारा
है
और
उनकी
जनसांख्यिक
(demographic) स्थिति
के
साथ
उनका
बड़े-छोटे
पैमानों
पर
एक
जगह
से
अन्य
जगह
जाना
एक
तीसरी
तरह
की
कथा
है
जो
प्रशिक्षित
और
अनुशासित
अध्ययन
की
मांग
करती
है.
जब
मैंने
कहीं
पढ़ा
था
कि
ओडिशा
में
भी
कुछ
लोग
मेघ
ऋषि
(जिसे
ऋग्वेद
के
आधार
पर
वृत्रासुर,
नागमेघ,
असुर
मेघ
भी
माना
गया)
को
अपना
पूर्वज
मानते
हैं
तब
संदर्भों
को
संभाल
कर
रखने
की
आदत
नहीं
थी.
बस
जानकारी
लेकर
खुश
हो
लेते
थे.
इधर
देखा
है
कि
कई
लोग
मेघऋषि
को
पहचाने
से
इंकार
करते
हैं
बल्कि
नकार
देते
हैं.
कुछ
का
मानना
है
कि
मेघऋषि
नहीं
वो
कोई
मेघमुनि
रहा
हो
सकता
है
क्यों
कि
ऋषियों
से
पहले
हमारे
यहाँ
मुनियों
की
सद्परंपरा
थी.
कुछ
भी
हो
इतना
आभास
तो
हो
ही
रहा
था
कि
ओडिशा
में
है
तो
उत्तर-पूर्व
में
मेघवंश,
नागवंश
की
उपस्थिति
ज़रूर
होगी.
‘मेघालय’
राज्य
ध्यान
खींचता
रहा.
लॉर्ड कन्निंघम
ने
भी
कहा
था
कि
चीन
की
ओर
से
मेघों
का
प्रवेश
असम
(अविभाजित
असम)
में
हुआ
होगा.
यह
बात
भूलती
नहीं
थी.
कैसे
भूलती.
हमारे
पुरखों
ने
धरती
के
एक
बड़े
भू-भाग
को
तय
किया
है.
वे
कोल
भी
कहलाए
(कोलारियन
थे),
कोरी,
निषाद
आदि
के
रूप
में
वे
दक्षिण
भारत
के
संपर्क
में
आए.
यह
बात
और
है
कि
कन्निंघम
ने
भारत
में
आकर
किसकी
मदद
से
अपनी
रिपोर्टें
लिखीं
जो
इतिहास
में
दर्ज
हो
कर
इतिहास
बनीं
और
आज
उन
पर
सवाल
उठाए
जाते
हैं.
अरबी,
तुर्की,
फारसी,
फ्रेंच,
अंग्रेजी
आदि
में
‘घ’
की
ध्वनि
नहीं
है.
तो
यह
‘मेघ’
ध्वनि
शुद्ध
भारतीय
ध्वनि
ठहरती
है चाहे इसका मूल किसी अन्य भाषा में ही क्यों न हो.
श्री
आर.एल.
गोत्रा
और
श्री
के.एल.
सोत्रा
में
वैचारिक
भिन्नता
कितनी
भी
क्यों
न रही
हो
दोनों
ने
इस
बात
को
कहा
है
कि
मेघों
के
लिए
‘मेंग’
शब्द
भी
इस्तेमाल
हुआ
है.
इसकी
एक
वेरिएशन
'मेंह्गा'
(जैसे
एक
नाम
'मेंह्गाराम')
के
रूप
में
मिलती
है
जिसका
प्रयोग
कबीले
के
रूप
में
किया
गया
प्रतीत
होता
है.
जहाँ
'मेंग'
शब्द
आया
वहाँ
उसके
पास
'मेंह्ग'
शब्द
भी
रखा
था.
इस
सारी
प्रक्रिया
में
जीभ
की
सुस्ती
और
चुस्ती
की
वजह
से
हुए
उच्चारण
के
विचलन
(variation) से
स्पैलिंग
की
भिन्नताओं
को
कितनी
दूर
तक
ढूँढा
जा
सकता
है.
थोड़ा
और
आगे
चलते
हैं.
सोत्रा
जी
‘मेंग’
शब्द
को
ही
असली
मानते
हैं.
तो
हम
आखिरकार
बारस्ता
‘मेंग’
फिर
से
‘मेघ’
तक
पहुँचे
और
फिर
से
‘मेंग’
तक
आते
हैं.
‘मुग़ल
एम्पायर’
नामक
एक
पुस्तक
है
जो
आशीर्बादी
लाल
श्रीवास्तव
ने
लिखी
है.
उसके
दो
पृष्ठों
की
फोटो
कापियाँ
श्री
ताराराम
जी
ने
भेजी
हैं.
इनके
संदर्भ
से
ज्ञात
होता
है
कि
अविभाजित
बंगाल
(जिसमें
आज
का
बांग्लादेश
भी
शामिल
था)
में
एक
नदी
का
नाम
‘मेघना’
है
(आपको
याद
होगा
सतलुज
नदी
का
नाम
‘मेगारसस’
था
जिसके
किनारों
पर
‘मेग’
या
‘मेघ’
बसे
थे).
मेघना
नदी
अब
बांग्लादेश
में
है
और
भारत
की
दो
बड़ी
नदियों
ब्रह्मपुत्र
और
गंगा
का
अधिकांश
पानी
मेघना
में
मिल
कर
ही
समुद्र
में
जाता
है.
इस
पुस्तक
में
बंगाल
और
बरमा
(म्यांमार)
के
बीच
एक
‘अराकान’
राज्य
का
उल्लेख
है
जिसके
शासकों
के
नामों
में
तीम
नाम
होते
थे
जिनमें
से
एक
नाम
मुस्लिम
होता
था.
जैसे-
“(Meng
Doulya (1481-1491)=Mathu Shah, Meng Yangu (1491-1498)=Mahamed Shah, Meng
Ranoung (1493-94)=Nori Shah, Chhalunggathu (1494-1501)=Shekmodulla Shah, Meng
Raja (1509-13)=Ili Shah, Meng Shou (1515)=Jal Shah, Thajat (1515-1521)=Ili
Shah, Meng Beng (1581-58)=Sri Surya Chandra Dharma Raja Jogpon Shah, Meng
Phaloung (Sekendar Shah 1671-1593), Meng Radzagni=Selim Shah (1598-1612), Meng
Khamaung=Hussain Shah (1612-1622).)” इन नामों में लगे 'मेंग' शब्द का कुछ पीछा किया जाए.
इन
शासकों
के
नामों
से
पहले
लगे
‘Meng’ (मेंग)
शब्द
का
अर्थ
‘क्यूट’
(प्यारा,
निपुण,
प्रवीण,
कुशल)
जैसा
मिल
रहा
है
लेकिन
पहली
नज़र
में
लगता
है
कि
इसे
टाइटल
या
पहचान
की
तरह
इस्तेमाल
किया
गया
है
जैसे
कि
मध्य
एशिया
के
कुछ
कबीलों
के
नामों
में
प्रयुक्त
होता
है.
इन
शासकों
के
बारे
में
इतना
तो
पता
चलता
है
कि
वे
बौध
थे
हालाँकि
उनके
नामों
में
एक
नाम
मुस्लिम
नाम
भी
होता
था
जो
उनकी
किसी
के
प्रति
कृतज्ञता
का
प्रतीक
हो
सकता
है.
यदि
इसे
डायनेस्टी
मान
कर
गूगल
करें
तो
चीन
की
मिंग
(Ming) डायनेस्टी
सामने
पड़ती
है
लेकिन
जल्दी
ही
वो
एक
अलग
राजवंश
होने
का
पता
देने
लगती
है
जिसके
एक
पाँव
के
नीचे
नाग
है
और
दूसरे
पाँव
के
नीचे
कछुआ.
अब
यह
‘मिंग’
शब्द
और
‘ड्रैगन’
यानि
‘नाग’
शब्द
भी
ध्यान
खींच
रहे
हैं.
दक्षिणी
चीन
में
‘Snake Cults’ (जिसका
अर्थ
‘नागपंथ’
जैसा
हो
सकता
है)
का
संदर्भ
मिलता
है.
संभव
है
इसी
का
संबंध
अविभाजित
असम
के
मेघालय
और
नागा
लोगों
से
रहा
हो
जो
म्यांमार
में
भी
रहते
हैं.
Nagaland (नागालैंड
राज्य)
और
‘नागा’
जनजातियाँ
वहाँ
हैं.
टार्च
लेकर
अरुणांचल
प्रदेश
में
भी
देख
लेना
चाहिए.
इतना
लिख
कर
मुझे
फ़ील
हो
रहा
है
कि
‘मेंग’
शब्द
को
लेकर
शायद
मैं
किसी
फॉरबिडन
एरिया
(वर्जित
क्षेत्र)
में
आ
गया
हूँ
और
मेरी
कल्पना
के
जंगली
घोड़े
चीन
की
दीवार
फाँदने
के
लिए
आतुर
हैं.
उन्हें
मैं
कह
रहा
हूँ-
'ज़रा
सब्र
करो
बच्चो'.
अब
किसी
को
तो
इतिहास
की
ऐसी
पुस्तक
लिखनी
चाहिए
जिसका
टाइटल
हो
- ‘History of Nagas (Made Simpler)’.
thank you for my help...
ReplyDeleteager aapko bhi padhna hain vayu pradushan par nibandhto aap essaytonibandh.com par ja skte hain.
सत्य तक पहुँचने की ऐसी ही कोशिश मानव -जाति की यात्रा है जो अपने आप में काफी दिलचस्प है ।
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