"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


25 January 2021

Bhakt and Bhagat - भक्त और भगत

    ऐतिहासिक (historical) सूचनाओं से स्पष्ट है कि पूरा भारत कभी बौद्धमय था. इस ऐतिहासिक प्रभाव से भारत का कोई धरा-खंड या समाज-खंड इससे अप्रभावित रहा होगा ऐसा सोचना कठिन हो जाता है. मेघ समाज भी इसके प्रभाव में रहा होगा इस बात को सहज ही समझा जा सकता है।

     समाज में यह विचार अक्सर चर्चा का विषय रहा है कि मेघ समाज को भगत कब से कहा जाने लगा. कुछ ने इसे भगत कबीर के साथ जोड़ा और किसी ने इसे 'भक्त' शब्द से बिगड़ कर बना मान लिया. किसी ने इसे आर्यसमाज द्वारा शुद्धिकरण और लाला गंगाराम से जोड़ा. लेकिन क्योंकि यह विषय इतिहास और भाषा का है इसलिए भाषा विज्ञानियों की बात सुनना बेहतर होगा.

     प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह जो इतिहास के भी अन्वेषक हैं, उन्होंने बताया है कि कबीर जब अपनी वाणी में 'साधो' कह कर संबोधित करते हैं तो उसका सीधा अर्थ होता है कि वे श्रमण परंपरा के साधु को संबोधित कर रहे हैं. जैसा कि पहले भी मैंने एक ब्लॉग में लिखा था कि कबीर बौध परंपरा के हैं. उसी बात में यह एक और प्रमाण जुड़ जाता है कि कबीर श्रमण परंपरा के ही हैं. साधु का अर्थ होता है 'जो सील संपन्न' हो. डॉ सिंह ने एक बात और कही है जो रुचिकर है. वे लिखते हैं कि कबीर 'भक्त' नहीं थे और कि 'भगत' शब्द श्रमण परंपरा का शब्द है जो 'भगवत' शब्द का संक्षिप्त रूप है. इसलिए कबीर निर्गुण परंपरा के नहीं बल्कि श्रमण परंपरा के 'भगत' हैं इसीलिए वे 'साधु' को संबोधित करते हैं.

     ज्ञान का कोई अंत नहीं जितना ले लिया जाए उतना कम प्रतीत होता है.

 


1 comment:

  1. सहमति ... ज्ञान यदि सत्य को प्रतीत कराये तो सर्व स्वीकार्य एवं शिरोधार्य होना ही चाहिए ।

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