"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


14 March 2021

After the Hindi translation of 'The Unknowing Sage' - 'The Unknowing Sage' के हिंदी अनुवाद के बाद - 2

    जीवन के आख़िरी वर्षों में फ़कीर चंद जी अपनी फक्कड़ फ़कीरी की पुरानी छवि से निकल आए थे और लोगों को गुरुवाई के असली मतलब समझाने के लिए वात्सल्य भरा कोमल तरीका अपना रहे थे. जीवन के उसी दौर में डॉ लेन की उनसे भेंट हुई थी. लेन ने आगे चल कर फ़कीर पर गहरा शोध किया. कई वर्ष बाद डॉ लेन और मैं फेसबुक पर मित्र बने. 2009 में उनसे संपर्क करने में अमेरिकी स्कॉलर और विश्व के महान समाजशास्त्री Dr Mark Juergensmeyer मददगार हुए...और आख़िर फ़कीर की आत्मकथा और डॉ लेन की पूरी पुस्तक The Unknowing Sage का हिंदी अनुवाद करना मेरे हिस्से में आया. प्रसंगवश, ये दोनों रिसर्चर फ़कीर चंद जी के मानवता मंदिर आश्रम में मेरे पिता श्री मुंशीराम जी से भी मिले थे जो फ़कीर की संगत में 14 वर्ष रहे थे.

    फ़कीर के स्वभाव को देखते हुए मुझे कभी नहीं लगा था कि वे कभी पब्लिक फिगर (Public Figure) के रूप में अपने जीवन की उपलब्धियों के बारे में लिखेंगे या आत्मकथा के रूप में एक पुस्तक लोगों को देंगे. डॉ लेन ने लिखा है कि उनके कहने पर फ़कीर ने 94 साल की आयु में आत्मकथा लिखाई थी. प्रयोजन डॉ लेन के शोध के लिए सहायता करना था. आत्मकथा में केवल ऐसे अनुभवों और घटनाओं का उल्लेख था जिनका संबंध फ़कीर की 'स्व' की खोज से था. ऐसी ही एक घटना पर डॉ. लेन ने एक बहुत खूबसूरत फिल्म बनाई थी ‘Faqir Chand: Inner Visions and Running Trains’. डॉ लेन और उनके सहकर्मी विद्वानों ने फ़कीर पर काफी समीक्षात्मक, विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से कार्य किया है और दुनिया के लिए फ़कीर की अनुभव-धारा को पहुंचाया है. यह कहना ठीक होगा कि पश्चिमी जगत का फ़कीर से परिचय डॉ डेविड सी. लेन और उनकी टीम के ज़रिए हुआ है. 

    आखिर में अनुवाद की भाषा के बारे में लिख देना ज़रूरी है. जहाँ तक हो सका मैंने उसी हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग किया है जो फ़कीर की भाषा-शैली के अनुरूप है. संस्कृतनिष्ठ हिंदी से बचने की मेरी कोशिश रही. बहुत से वाक्य शब्दशः फ़कीर की भाषा में और उन्हीं के शब्दों में उतर आए हैं. कहीं-कहीं अंगरेज़ी, उर्दू, पर्शियन और हिंदी के संस्कृतनिष्ठ शब्द अर्थ की स्पष्टता के लिए कोष्ठकों (ब्रैकेट्स) में दे दिए गए हैं. भाषा और शब्दों से आगे जा कर मंशा यह रही कि पाठकों तक वो संदेश पहुँचे जो फ़कीर ने अपनी रहनी से दिया.

    ‘The Unknowing Sage’ शीर्षक का हिंदी अनुवाद करने के दौरान कई शब्दों और व्याकरण के साथ हाथापाई हुई. लेकिन अंत में शीर्षक - ‘अनजान वो फ़कीर’ - के साथ हाथ और दिल मिल गए. अनजान यानी - ‘ऐसा फ़कीर जो मन की रचना और उसकी कार्यप्रणाली के रहस्य और ‘चमत्कारों’ को जानता था लेकिन जिन चमत्कारों का श्रेय उसे दिया गया उनसे वो ख़ुद अनजान रहा.’

3 comments:

  1. मेरी समझ से अनजान वो फ़कीर अपने चमत्कारों से उतना भी अनजान नहीं रहें होंगे कारण जाने-अनजाने में भी ली गई भावों की आवृत्ति मूर्त रूप में प्रकट हो जाती है । जो अति सूक्ष्म चेतना को भी स्थूलता प्रदान करती हैं । अब ये उस चेतना पर निर्भर करता है कि वे इसका श्रेय लेने के लिए कितना उत्सुक हैं । मेरे देखे में विराट स्वरूप भी संभव है और एक ही समय में घटित होता है ।

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    1. 😊😊
      मुझे याद पड़ता है कि कम से कम एक सत्संग में फकीर ने कहा था कि यदि सत्संगी में ताकत है कि वह रूप प्रकट कर सकता है तो क्या गुरु में वह शक्ति नहीं हो सकती कि वह रूप प्रकट कर सके?

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  2. फ़कीर आत्मा स्वयं सिद्ध होती है और खुद को लिखना/लिखवा लेना भी उन्ही की प्रेरणा से सम्भव हो पता है ...
    और जो अच्छा है उसको जो ज़रूर सामने आना चाहिए ...

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