"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


02 March 2021

Dharma and Dhamma - धर्म और धम्म

    कई जगह मैंने लिखा है कि मैं नास्तिक-सा हो गया हूं. इसका अर्थ यह है कि मैं आस्तिकता और नास्तिकता के बीच झूल रहा हूं.

    झूलना अच्छी बात नहीं होती. कहते हैं कि कहीं टिक जाना अच्छा होता है. और कहा यह भी जाता है कि टिकने से कुछ नहीं होता, वहां से निकल जाना ही अल्टीमेट (परम) होता है. मेरा मानना है कि आस्तिकता और नास्तिकता दोनों रिश्तेदार हैं. ये दोनों संशय की डोरी से बँधे होते हैं. उधर हमें पढ़ाया भी गया था कि धर्म शब्द से ही धम्म शब्द बना. फिर पढ़ाया गया कि धम्म शब्द पाली का है और धर्म शब्द से पुराना है. चलो ठीक है जी. लेकिन जब दोनों शब्दों की अवधारणाएँ देखने का अवसर मिला तो पता चला कि खेल अवधारणाओं का ही है जो एक दूसरे के उत्पाद की निंदा करती दिखती हैं. यह काट-पीट और काट-छांट बौद्धिक है और राजनीतिक भी. कोई पूछ सकता है कि अब इस पोस्ट का मेघनेट पर क्या काम? अपने नास्तिक-आस्तिक होने की बात छोड़ भी दूं तो कम से कम मुझे अपनी इतिहासिक पृष्ठभूमि और धार्मिक यात्रा के आधार पर इस अवधारणा की स्पष्ट जानकारी होना बहुत ज़रूरी है. 

    "सम्राट अशोक ने धम्म का ग्रीक अनुवाद 'युसेबेइया' कराया न कि रिलीजियन. ग्रीक भाषा में रिलीजियन को 'थ्रिस्किया' कहा जाता है. 'थ्रिस्किया' में देवताओं या ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास ज़रूरी होता है. लेकिन 'युसेबेइया' में यह ज़रूरी नहीं होता."   

    मोटा-मोटी यह समझ आया कि धर्म कई तरह की पूजा पद्धतियों और नैतिक संहिताओं (Moral Codes) के समूहों का नाम है जिन्हें हर व्यक्ति अपने-अपने परिवेश में अपने-अपने तरीके से 'धारण' करता है. किस व्यक्ति ने क्या धारण किया वह दुनिया में कई नज़ारों और रंगों में दिखेगा. धर्म हर व्यक्ति का नितांत निजी पहनावा है. उसके समानांतर एक 'संगठित धर्म' की अवधारणा दिख रही है जिसे प्यार से देखता हूँ लेकिन उससे डरता हूँ. इधर धम्म ने ईश्वर जैसी अवधारणा को महत्व न देकर व्यक्ति के ऐसे नैतिक प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया जिससे पृथ्वी पर पूरा मानव समाज लाभान्वित हो. धम्म के विश्व प्रसार के पीछे यही तत्त्व कार्य करता दिखता है.

    'नो-पोलिटिक्स ज़ोन' में खड़े हो कर कहा जा सकता है कि धम्म और धर्म की (दोनों) अवधारणाएँ एक-दूसरे के क्षेत्र में अपना-अपना दख़ल रखती हैं - कभी प्रेम से कभी मन-मुटाव से.


2 comments:

  1. आस्तिक और नास्तिक सिक्के के दोनों पहलू ही है जिसमें ज्यादा फर्क नहीं होता है । कारण मन का स्वभाव है जो हाँ और ना पर डोलता रहता है । धर्म और धम्म के अंतर को सुंदरता से बताया है आपने ।

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  2. एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं दोनों ... मानव मन जहाँ लगे ... अंत बस एक है ....

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