The history
of great Santhal (the aboriginal tribe of India) also finds its roots in Indus
Valley Civilization. Their struggle and spirit to sacrifice for their freedom
was punished jointly by Britishers, Indian zamidars and
moneylenders. Their yearn for independence is also mirrored in the
story of Bhil-Meenas.
However, their prolonged struggle has resulted in formation of Jharkhand. Like
Bhils they are also Mulnivasis of India. Slowly the gap between backward castes
and tribes is narrowing down. The process has to be hastened through education.
It will help Indian society at large.
The Wiki
story of Santhals (retrieved on 11-01-2010) goes like this:-
“The
insurrection of the Santals was mainly against the corrupt moneylenders, zamindars and
their operatives. Before the advent of the British in India the Santhals
resided peacefully in the hilly districts of Mayurbhanj
Chhotanagpur, Palamau, Hazaribagh, Midnapur, Bankura and Birbhum. Their
agrarian way of life was based on clearing the forest; they also engaged
themselves in hunting for subsistence. But, as the agents of the new colonial
rule claimed their rights on the lands of the Santals, they peacefully went to
reside in the hills of Rajmahal. After a brief period of peace the British
operatives with their native counterparts jointly started claiming their rights
in this new land as well. The simple and honest Santals were cheated and turned
into slaves by the zamindars and the money lenders who first appeared to them
as business men and lured them into debt, first by goods lent to them on loans.
However hard the Santals tried to repay these loans, they never ended. Through
corrupt measures of the money lenders, the debts multiplied to an amount for
which a generation of the santal family had to work as slaves. Furthermore, the
Santali women who worked under labour contractors were disgraced and abused.
This loss of the freedom that they once enjoyed turned them into rebels.
Rebellion
On 30 June
1855, two great Santal rebel leaders, Sido Murmu
and his brother Kanhu, mobilized ten thousand Santals and declared a rebellion
against British colonists. The Santals initially gained some success but soon
the British found out a new way to tackle these rebels. Instead, they forced
them to come out of the forest. In a conclusive battle which followed, the
British, equipped with modern firearms and war elephants, stationed themselves
at the foot of the hill. When the battle began the British officer ordered his
troops to fire without loading bullets. The Santals, who did not suspect this
trap set by the British war strategy, charged with full potential. This step
proved to be disastrous for them: as soon as they neared the foot of the hill,
the British army attacked with full power and this time they were using
bullets. Thereafter, attacking every village of the Santals, they made sure
that the last drop of revolutionary spirit was annihilated. Although the
revolution was brutally suppressed, it marked a great change in the colonial
rule and policy. The day is still celebrated among the Santal community with
great respect and spirit for the thousands of the Santal martyrs who sacrificed
their lives along with their two celebrated leaders to win freedom from the
rule of the Jamindars
and the British operatives.”
This is the
real song of Vande Mataram of freedom struggle of Santhals because this land
belongs to them. They are aboriginals of this land. Their struggle is not yet
over. Their land is still grabbed and the law is not in their favor.
महान संथाल कबीले (भारत के मूलनिवासी
जनजाति) के इतिहास की जड़ें भी सिंधुघाटी सभ्यता में हैं. उनकी स्वतंत्रता के
जज़्बे और संघर्ष को अंग्रेज़ों, भारतीय ज़मीदारों और
साहूकारों ने मिल कर दंडित किया इनकी स्वतंत्रता की बेचैनी भील-मीणा
की कहानी में भी प्रतिबिंबित है. तथापि इनके देर तक संघर्ष करने का परिणाम यह हुआ
कि झाड़खंड राज्य की स्थापना हो पाई. भीलों की भाँति वे भी भारत के मूलनिवासी हैं.
अब धीरे-धीरे पिछड़ी जातियों और जनजातियों के बीच की दूरी कम होने लगी है.
इस
प्रक्रिया को शिक्षा के माध्यम से गति देनी होगी. इससे कुल मिला कर भारतीय समाज को
लाभ होगा.
विकिपीडिया
(retrieved on
11-01-2010) पर दी गई संथालों की कहानी इस प्रकार
है:-
“संथालों
का विद्रोह मुख्यतः भ्रष्ट साहूकारों,
ज़मींदारों और उनके गुर्गों के विरुद्ध था. ब्रिटिश
लोगों के आने से पहले ये संथाल मयूरभंज, छोटा
नागपुर,
पलामौ, हज़ारीबाग़, मिदनापुर, बाँकुरा
और बीरभूम में शांतिपूर्वक रह रहे थे. उनका कृषिकार जीवन वनों के पास ज़मीन बना कर
खेती करना था. जीवनयापन के लिए शिकार भी करते थे. लेकिन जैसे-जैसे औपनिवेशिक शासन
के एजेंटों ने संथालों की ज़मीन पर दावे जताने शुरू किए तो वे शांतिपूर्वक राजमहल
की पहाड़ियों में रहने चले गए. कुछ समय शांति के बाद ब्रिटिश गुर्गों ने और उनके
स्थानीय समकक्षों ने नई ज़मीन पर भी दावा जताना शुरू कर दिया. सरल और इमानदार
संथालों को धोखा दिया गया. पहले तो वे ज़मींदार और साहूकार व्यापारी बन कर पहुँचे और
संथालों को कर्ज़ लेने के लिए प्रेरित किया, पहले-पहल
उन्हें उधार दिया गया. आगे चल कर उन्हें ग़ुलाम बना लिया गया. संथाल उन कर्ज़ों को
चुकाने की कितनी भी कोशिश करते, लेकिन कर्ज़ था कि
समाप्त होने का नाम ही नहीं लेता था. साहूकारों के भ्रष्ट हथकंडों से ऋण की राशि
इतनी बढ़ गई कि उसके लिए संथाल परिवारों की पूरी पीढ़ी को ग़ुलामों की तरह काम
करना पड़ता था. इतना ही नहीं, संथाली महिलाएँ जो
मज़दूरों के तौर पर ठेकेदारों के अधीन कार्य करती थीं
उन्हें
बदनामी और दुर्व्यवहार मिलता था. जिस स्वतंत्रता से वे कभी रहती थीं उस स्वतंत्रता
का ऐसा हनन होने से उनमें विद्रोह जाग पड़ा.
स्वतंत्रता का लड़ाई
30 जून 1855 को दो स्वतंत्रता के दीवाने
नेताओं,
सिडो
मुर्मू और उसके भाई कान्हु ने दस हज़ार संथालों को एकत्रित किया और ब्रिटिश
साम्राज्यवाद के विरुद्ध बिग़ुल फूँक दिया. संथालों को शुरू में कुछ सफलता मिली
लेकिन शीघ्र ही अँग्रेज़ों ने इन स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों के विरुद्ध
एक रणनीति बना ली. उन्हें जंगल से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया. उसके बाद होने
वाले निर्णायक युद्ध में अँग्रेज़ों के पास नई बंदूकें और युद्धक हाथी थे और उन्होंने
पहाड़ी के नीचे डेरा डाल दिया. जब
युद्ध शुरू हुआ तो अँग्रेज़ अधिकारी ने अपनी सेना को बिना गोली के फायर करने के
लिए कहा. संथाल
अँग्रेज़ों की चाल को समझ नहीं पाए और उन्होंने पूरी शक्ति के साथ आक्रमण कर दिया.
ऐसा करना उनके लिए घातक सिद्ध हुआ क्योंकि जैसे ही वे पहाड़ी से नीचे उतर कर कुछ
पास आए ब्रिटिश फौज ने पूरी शक्ति से आक्रमण किया और इस बार वे गोलियाँ चला रहे
थे. इसके
बाद ब्रिटिश फौज ने संथालों के प्रत्येक गाँव पर हमला किया. उनकी कोशिश थी कि
स्वतंत्रता की भावना की आखिरी बूँद तक का उन्मूलन कर दिया जाए. यद्यपि इस क्रांति
को पाश्विक तरीके से कुचल दिया गया लेकिन इसने साम्राज्यवादी शासन और नीति में
बदलाव को रेखांकित कर दिया. संथाल
समुदाय में यह दिन आज भी उन शहीदों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने ज़मीदारों
और उनके गुर्गों से आज़ादी पाने के लिए अपने नेतृत्व के साथ प्राण न्यौछावर कर दिए
थे.”
संथालों का यह स्वतंत्रता संघर्ष ही
वास्तविक ‘वंदे
मातरम्’
गीत है क्योंकि यह धरती उनकी है. वे यहाँ के मूलनिवासी हैं. उनका संघर्ष अभी
समाप्त नहीं हुआ है. उनकी ज़मीनें आज भी छीनी जा रही हैं और कानून उनकी मदद नहीं
करता.
Dear Bhusanji,It is nice to see the articles and image of Indus valley civilization,I love Indus valley.it is effort to reach the root of meghvanshi.
ReplyDeleteDr Nitin Vinzoda
Jamnagar, Gujarat India
RSS is busy in declaring Adivasis to Vanvasis ...Why ? It is a topic of research . They are destroying the adivasi culture by hinduizing them.
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