बचपन में देखा कि हमारी टोहाना मंडी के मोटे चूहे देसी घी के डिब्बे के ढक्कन खोल कर घी चट कर जाते थे. कपड़े धोने वाले देसी साबुन और नहाने वाले साबुन
को भी बड़े शौक से खाते थे. अब देखता हूँ कि ये
चूहे साबुनों को देखते तक नहीं.
मनुष्य हूँ सो प्रयोग करने की आदत है. एक रात मैंने दो चम्मच देसी घी खुली कटोरी में डाल कर बिना
ढके रसोई में रख दिया. सुबह देखा. घी पर खरोंच तक नहीं थी. अलबत्ता
एक पतीले का ढक्कन चूहों ने उतार फेंका था जिसमें उबले आलू रखे थे. आलू खा कर वे कुछ टुकड़े छोड़ गए थे जैसे कह गए हों, "थैंक्यू अंकल जी, यह आलू अच्छा रहा." समझें तो चूहों ने साफ़ बता दिया कि देसी घी मिलावटी था और आलू सुरक्षित था. सुना है कुछ और जानवर भी ख़तरनाक कैमिकल्ज़ को सूँघ लेते हैं और रिजेक्ट कर देते हैं.
सरकार भी मानने लगी है कि हमारे खाने में कीटनाशकों की भारी मात्रा होती है. इधर मेरा वज़न
कम हो रहा है. सोचता हूँ खाने में आलू की मात्रा बढ़ा दूँ. इंसान के तौर पर जब मेरी बुद्धि खाने-पीने की चीज़ों की सही परख नहीं कर सकती और परख हो भी गई तो खाना तो वही पड़ेगा जो बाज़ार में मिल रहा है तो ऐसी हालत में चूहों की पसंद को समझने में ही समझदारी है. दक्षिण एशिया का हूँ तो जितनी भी है अक्ल तो रखता ही हूँ.
चूहों के पीछे चलने में ही समझदारी है. आख़िर दक्षिण एशिया का हूँ.:-)
ReplyDeleteक्या बात है बहुत खूब बधाई
Great post !...How is your health Bhushan Sir ?....Missing you....
ReplyDeleteवाह!!! क्या प्रयोग किया है...
ReplyDeleteहाहाहाहाहा यही मैं बिल्ली मौसी को करते देख चुका हूं...घर में दुध का पतीला खुला था..देखा बिल्ली मौसी आई ..पतीले में देखा और मूंह फेर कर चल दीं......बस तब से चाय ही पी रहा हूं दूध का......आपको नव वर्ष की मुबारक बाद ..........
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
मनुष्य रूपी चूहे...वाह ! सटीक उपमा !
ReplyDeleteआपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं।
Pallavi has left a new comment on your post "The rat, my friend - चूहा, मेरा मित्र":
ReplyDeleteउसमें रखे उबले आलू खा कर थोड़ा-सा छोड़ गए थे जैसे कह गए हों, "यह अच्छा रहा." वाकई यह बहुत अच्छा रहा अंकल :) मज़ेदार पोस्ट...
दिव्या जी से आपके ब्लॉग का लिंक मिला.
ReplyDeleteबहुत रोचक और जानकारीपूर्ण है आपका लेखन.
आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ.
आभार.
अब इंसान इतना कुछ नकली बनाने लगा की
ReplyDeleteजानवरों ने भी एहतियात बरतना शुरू कर दिया है .
खुबसूरत लेख
.
ReplyDeleteBhushan Sir,
Here is a link for you. Kindly have a look.
http://zealzen.blogspot.com/2012/01/blog-post_09.html
regards,
.
बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteकलयुग है ..चूहा हमें पाठ पढ़ा रहा है..:)
ReplyDeleteबढ़िया लेख.
kalamdaan.blogspot.com
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteThanks to Zeal
संगीता स्वरुप ( गीत ) ✆ 10:46 AM (7 hours ago) to me
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "The rat, my friend - चूहा, मेरा मित्र":
काश इंसान में भी सूंघने की तीव्र शक्ति होती .. उसे तो नकली माल बनाने में महारत हासिल है ..
बढ़िया रहा ये प्रयोग ..
डॉ. दिव्या और उनके ब्लॉग ZEAL के ज़रिए आए सभी ब्लॉगर साथियों का आभार.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा प्रसंग है ...चूहे भी हमें कोई सीख दे सकते हैं .
ReplyDeleteआप जल्दी से पूर्ण स्वस्थ्य हो जाएँ ...यही हमसब की कामना है
bahut khoob sir
ReplyDeleteaur sach mein aajkal ke chuhe samjhdar ho gaye hain
super post
mere blog par bhi aaiyega
umeed kara hun aapko pasand aayega
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर. आपसे सीख लेते हुए अब हमने भी चूहों से दोस्ती कर लेने का मन बना किया है. आभार.
ReplyDeletekitna achcha likha aap ne,waise to main chhuhon se kafi preshaan hun,ghr chhud kar jate hi nahi,pahli baar un ki upyogita bhi pta chal gaee,dhyaan dena pdega wo kya kya khate hai......:) :)
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है श्री भूषण जी ने.
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteसुना है मानव शारीर भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता रहता है . खैर भगवान् मालिक इस केमिकल युग का..
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