"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


08 January 2012

The rat, my friend - चूहा, मेरा मित्र


मनुष्य के तौर पर पैदा हुए हमारे वैज्ञानिकों को जब दवाइयों और रसायनों का प्रयोग करना हो तो चूहों पर करते हैं. फिर मनुष्यों में चूहों का दर्जा प्राप्त चुनिंदा मनुष्यों पर अपने प्रयोग करते हैं. फिर आगे के प्रयोगों के लिए उन दवाओं आदि को मनुष्य रूपी चूहों से भरे दक्षिण एशिया में भेज देते हैं. अमेरिकी और यूरोपियन चूहों की बारी शायद ही कभी आती हो.

बचपन में देखा कि हमारी टोहाना मंडी के मोटे चूहे देसी घी के डिब्बे के ढक्कन खोल कर घी चट कर जाते थे. कपड़े धोने वाले देसी साबुन और नहाने वाले साबुन को भी बड़े शौक से खाते थे. अब देखता हूँ कि ये चूहे साबुनों को देखते तक नहीं.

मनुष्य हूँ सो प्रयोग करने की आदत है. एक रात मैंने दो चम्मच देसी घी खुली कटोरी में डाल कर बिना ढके रसोई में रख दिया. सुबह देखा. घी पर खरोंच तक नहीं थी. अलबत्ता एक पतीले का ढक्कन चूहों ने उतार फेंका था जिसमें उबले आलू रखे थे. आलू खा कर वे कुछ टुकड़े छोड़ गए थे जैसे कह गए हों, "थैंक्यू अंकल जी, यह आलू अच्छा रहा." समझें तो चूहों ने साफ़ बता दिया कि देसी घी मिलावटी था और आलू सुरक्षित था. सुना है कुछ और जानवर भी ख़तरनाक कैमिकल्ज़ को सूँघ लेते हैं और रिजेक्ट कर देते हैं.

सरकार भी मानने लगी है कि हमारे खाने में कीटनाशकों की भारी मात्रा होती है. इधर मेरा वज़न कम हो रहा है. सोचता हूँ खाने में आलू की मात्रा बढ़ा दूँ. इंसान के तौर पर जब मेरी बुद्धि खाने-पीने की चीज़ों की सही परख नहीं कर सकती और परख हो भी गई तो खाना तो वही पड़ेगा जो बाज़ार में मिल रहा है तो ऐसी हालत में चूहों की पसंद को समझने में ही समझदारी है. दक्षिण एशिया का हूँ तो जितनी भी है अक्ल तो रखता ही हूँ.

24 comments:

  1. चूहों के पीछे चलने में ही समझदारी है. आख़िर दक्षिण एशिया का हूँ.:-)
    क्या बात है बहुत खूब बधाई

    ReplyDelete
  2. Great post !...How is your health Bhushan Sir ?....Missing you....

    ReplyDelete
  3. वाह!!! क्या प्रयोग किया है...

    ReplyDelete
  4. हाहाहाहाहा यही मैं बिल्ली मौसी को करते देख चुका हूं...घर में दुध का पतीला खुला था..देखा बिल्ली मौसी आई ..पतीले में देखा और मूंह फेर कर चल दीं......बस तब से चाय ही पी रहा हूं दूध का......आपको नव वर्ष की मुबारक बाद ..........

    ReplyDelete
  5. मनुष्य रूपी चूहे...वाह ! सटीक उपमा !
    आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  6. Pallavi has left a new comment on your post "The rat, my friend - चूहा, मेरा मित्र":

    उसमें रखे उबले आलू खा कर थोड़ा-सा छोड़ गए थे जैसे कह गए हों, "यह अच्छा रहा." वाकई यह बहुत अच्छा रहा अंकल :) मज़ेदार पोस्ट...

    ReplyDelete
  7. दिव्या जी से आपके ब्लॉग का लिंक मिला.
    बहुत रोचक और जानकारीपूर्ण है आपका लेखन.
    आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ.
    आभार.

    ReplyDelete
  8. अब इंसान इतना कुछ नकली बनाने लगा की
    जानवरों ने भी एहतियात बरतना शुरू कर दिया है .
    खुबसूरत लेख

    ReplyDelete
  9. .

    Bhushan Sir,
    Here is a link for you. Kindly have a look.

    http://zealzen.blogspot.com/2012/01/blog-post_09.html

    regards,

    .

    ReplyDelete
  10. बढिया प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  11. बढिया प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  12. कलयुग है ..चूहा हमें पाठ पढ़ा रहा है..:)
    बढ़िया लेख.
    kalamdaan.blogspot.com

    ReplyDelete
  13. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||

    Thanks to Zeal

    ReplyDelete
  14. संगीता स्वरुप ( गीत ) ✆ 10:46 AM (7 hours ago) to me
    संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "The rat, my friend - चूहा, मेरा मित्र":

    काश इंसान में भी सूंघने की तीव्र शक्ति होती .. उसे तो नकली माल बनाने में महारत हासिल है ..
    बढ़िया रहा ये प्रयोग ..

    ReplyDelete
  15. डॉ. दिव्या और उनके ब्लॉग ZEAL के ज़रिए आए सभी ब्लॉगर साथियों का आभार.

    ReplyDelete
  16. बहुत ही अच्छा प्रसंग है ...चूहे भी हमें कोई सीख दे सकते हैं .
    आप जल्दी से पूर्ण स्वस्थ्य हो जाएँ ...यही हमसब की कामना है

    ReplyDelete
  17. bahut khoob sir
    aur sach mein aajkal ke chuhe samjhdar ho gaye hain
    super post
    mere blog par bhi aaiyega
    umeed kara hun aapko pasand aayega
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

    ReplyDelete
  18. बहुत ही सुन्दर. आपसे सीख लेते हुए अब हमने भी चूहों से दोस्ती कर लेने का मन बना किया है. आभार.

    ReplyDelete
  19. kitna achcha likha aap ne,waise to main chhuhon se kafi preshaan hun,ghr chhud kar jate hi nahi,pahli baar un ki upyogita bhi pta chal gaee,dhyaan dena pdega wo kya kya khate hai......:) :)

    ReplyDelete
  20. बिलकुल सही कहा है श्री भूषण जी ने.

    ReplyDelete
  21. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

    ReplyDelete
  22. सुना है मानव शारीर भी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता रहता है . खैर भगवान् मालिक इस केमिकल युग का..

    ReplyDelete