यह कहानी एक वक्ता ने
टीम बिल्डिंग संबंधी प्रशिक्षण के दौरान ज्ञान साझा करने की आवश्यकता बताते हुए
सुनाई.
भाग-1 (पुरानी कहानी)
आपने सुना होगा. एक
सौदागर टोपियाँ बेचता था. वह जंगल से गुज़रा और थक कर सो गया. तभी बंदर उसकी
टोपियाँ चुरा कर पेड़ों पर चढ़ गए. सौदागर की नकल करते हुए उन्होंने टोपियाँ सिरों
पर पहन लीं. जगने पर सौदागर परेशान हुआ और टोपियाँ वापस पाने के लिए कई उपाय किए
लेकिन असफल रहा. फिर उसे कुछ सूझा. उसने अपनी टोपी ज़मीन पर पटक दी और नकलची
बंदरों ने नकल करते हुए टोपियाँ ज़मीन पर फेंक दीं. सौदागर का काम बन गया.
भाग-2 (नई कहानी)
कई वर्षों के बाद उस
सौदागर का बेटा टोपियाँ लेकर उसी जंगल से गुज़रा. जैसा कि होना था, बंदरों
ने उसकी टोपियाँ चुरा लीं. उसके पिता ने बताया था कि बंदर टोपियाँ चुरा लें तो
अपनी टोपी ज़मीन पर पटक देना. उसने टोपी ज़मीन पर पटकी लेकिन बंदरों ने वैसा नहीं
किया बल्कि हँसने लगे. परेशान सौदागर ने बंदरों से पूछा, "मेरे पिता जी ने बताया था
कि तुम लोग नकल करते हुए टोपियाँ नीचे फेंक दोगे. लेकिन तुमने वैसा क्यों नहीं
किया?"
एक छोटा बंदर हँस कर बोला, “तुम्हारे पिता जी ने तुम्हें वैसा बताया
था तो हमारे पिता जी ने हमें ऐसा बताया था कि सौदागर टोपी नीचे फेंके तो तुम टोपी नीचे
फेंकने की ग़लती मत करना. अब जो तू करेगा, हमारे लिए मज़ेदार होगा.”
ट्रेनिंग
ने बंदरों को उन्नत किया और इस कहानी ने ट्रेनीज़ को.
कुछ ब्लोग्गरों को भी सोचना चाहिए - टीप प्राप्त करने के नए उपाय.
ReplyDeleteसही कहा दीपक बाबा. कुछ ब्लॉगर बंदरों से परेशान है. मॉडरेशन लगाना पड़ा है. कुछ प्रशिक्षण हो जाए तो सुधार हो सकता है :))
Deleteकहानी बहुत रोचक लगी साथ ही कुछ सीख भी मिल गई ...आभार
ReplyDeleteरोचकता के साथ ...ज्ञानवर्धक भी ..आभार ।
ReplyDeleteपशु तो निरंतर उन्नति कर रहे हैं , लेकिन इंसान पशु समान होता जा रहा है। बहुत उपयोगी कथानक है भूषण सर । आभार।
ReplyDeleteहम लोगों ने पशुओं की नस्लें सुधारने के लिए जितना कार्य किया है उतना मनुष्य की नस्ल सुधारने के लिए नहीं किया. आपकी टिप्पणी सार्थक है.
Deleteआजकल तो लोग नंबर दो की कहानी का अनुसरण कर रहे हैं।
ReplyDeleteअच्छा व्यंग्य ।
यह सच है महेंद्र जी कि नंबर दो कहानी महत्व पा गई है :))
Deleteसर जी बहुत बढ़िया ! समसामयिक उपुक्त लगती है !
ReplyDeleteहमें गर्व है हमारे पूर्वज आज भी अक्ल मंद हैं और हम
ReplyDeleteटिपण्णी मंद होगये .
हा..हा..हा..हा..हा..वीरू भाई जी. अकबर इलाहाबादी को नसीहत की ज़रूरत थी जब उन्होंने कुछ ऐसा लिखा था-
Deleteडार्विन साहब वास्तविकता से निहायत दूर थे
मैं न मानूँगा कि पूर्वज आपके लंगूर थे
Amrita Tanmay ✆ 3:19 PM (1 hour ago)to me
ReplyDeleteAmrita Tanmay has left a new comment on your post "Genetics of a story – एक कहानी की अनुवांशिकी":
बचपन में जब ये कहानी पढ़ी थी तो हमारे उदाहरण में शामिल हो गया था..