पत्रकार
श्री देसराज काली ने मेरे
ब्लॉग पर एक टिप्पणी के द्वारा
बताया कि एक अंग्रेज़ सर डेंज़िल
इब्बेटसन ने अपनी पुस्तक
'पंजाब
कास्ट्स'
में
मेघों पर काफी लिखा है.
बहुत
पृष्ठ तो नहीं मिल पाए परंतु
एक पैरा नेट से मिला है जिसे
आपसे शेयर कर रहा हूँ.
आज
की पीढ़ी इस जानकारी से चौंक
जाएगी.
मेरी
पीढ़ी भी चौंकेगी.
ख़ैर! जो हो सो हो.
जानकारी
तो जानकारी ही होती है.
मैंने आज तक इतना ही जाना था कि मेघ परंपरागत रूप से केवल कपड़ा बनाने का कार्य रहे हैं. डेंज़िल
ने स्पष्ट लिखा है कि मेघ जूते
बनाने का कार्य करते रहे हैं
यानि चमड़े के काम में ये
थे.
कई
वर्ष पूर्व कहीं पढ़ा था कि
मेघ कपड़े के जूते बनाते थे.
उसका
विवरण मैं नहीं जानता.
आप
उक्त पुस्तक के एक पृष्ठ की फोटो
नीचे देख सकते हैं.
डेंज़िल
की जानकारी संभवतः लॉर्ड
कन्निंघम की पुस्तक "जियॉलॉजिकल
सर्वे ऑफ़ इंडिया"
पर
आधारित है.
इन
दोनों महानुभावों ने मेघों
के बारे में वही लिखा प्रतीत
होता है जो उस समय उनसे संबद्ध
पढ़े-लिखे
लोगों (जिनमें
मेघ शामिल नहीं थे)
ने
उन्हें बताया था.
यह
भी ज़ाहिर है कि ये दोनों
महानुभाव मार डाले गए लाखें
मेघों की हड्डियों,
उनके
जलाए गए जंगलों,
घरों,
उन्हें
ग़ुलाम बनाने की प्रक्रिया
पर शोध करने नहीं निकले थे.
तथापि
उन्होंने जो भी लिखा है वह
इतिहास का एक छोटा सा हिस्सा
है और उसका अपना महत्व है.
वैसे भी किसी व्यक्ति का अपना चुनाव होता है कि किन्हीं परिस्थितियों में वह कौन सा व्यवसाय अपना लेता है. संभव है ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में डेंजिल सुना या जाना हो. अन्यथा मेघ मुख्यतः बुनकर रहे और जुलाहे का काम करते रहे हैं.
हाँ! चौकना लाजिमी है..
ReplyDeleteपुरानी पुस्तकों में मेरी अपनी वर्तमान जानकारी के विरुद्ध कुछ लिखा हो तो चौंकना लाज़िमी हो ही जाता है. आभार.
Delete