"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


22 October 2016

Life of Kabir - कबीर का जीवन

जिन लोगों की आस्था है कि कबीर कमल के फूल पर पैदा हुए थे और 120 साल जीवित रहे वे इस लेख को आगे न पढ़ें. वे पक्का जान लें कि उनकी आस्थाएँ ज़ख़्मी होने वाली हैं. न पढ़ने की चेतावनी दे दी है, आगे उनकी मर्ज़ी.

एक बार एक कुनबाई बातचीत में एक बुज़ुर्ग ने कहना शुरू किया कि कबीर अवतारी पुरुष थे. वे एक विधवा बाह्मनी के यहाँ पैदा हुए थे. आगे कुछ देर के बाद उन्होंने कहा कि कबीर आसमानी बिजली के साथ आए और कमल के फूल पर पैदा हुए. मुझ से रहा नहीं गया. मैंने वहाँ बैठी महिलाओं से पूछा, "आप यहाँ इतनी महिलाएँ बैठी हैं. आप में से किसी ने कमल के फूल पर बच्चा पैदा होते देखा है?" पहले तो वे बुज़ुर्ग का लिहाज़ करके चुप लगाती दिखीं लेकिन बाद में एक-एक कर बोल पड़ीं कि 'बच्चे तो औरतें ही पैदा करती हैं'. सीधी बात, नो बकवास! अब कबीर विधवा बाह्मनी या बाह्मन कन्या के यहाँ पैदा हुए इसके बारे में पहले भी बहुत कुछ कहा जा चुका है.

इसी तरह किसी ने कहा कि कबीर 120 साल जिए तो किसी ने कबीर की उम्र 130 साल बताई. लेकिन एक जाने-माने भाषाविज्ञानी और इतिहास कुरेदने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने यह नई जानकारी लाकर सामने रख दी:-

"आरकियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (न्यू सीरीज) नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज़, भाग 2, पृ. 224 पर अंकित है कि कबीर का रौजा (मकबरा, समाधि) 1450 . में बस्ती जिले के पूर्व में आमी नदी के दाहिने तट पर बिजली खां ने स्थापित किया था। रौजे की पुष्टि आईन--अकबरी भी करता है। अर्थात 1450 . से पहले कबीर की मृत्यु हो चुकी थी।

कबीर का जन्म 1398 . में हुआ था। अर्थात कबीर की मृत्यु तब हुई, जब वो 51-52 साल के थे। ऐसे में स्वभाविक प्रश्न उठता है कि क्या उनकी मृत्यु सामान्य नहीं थी, आकस्मिक थी?

कबीर की आकस्मिक मृत्यु का रहस्य खुलना चाहिए। ... और यह भी कि उनके बूढ़े चित्रों का चित्रकार कौन था? ... और यह भी कि उनके 120 वर्षों तक जीवित रहने की कल्पना पहली बार किसने की? ... और यह भी कि सिकंदर लोदी के अत्याचारों से कबीर को पहली बार किसने जोड़ा तथा क्यों जोड़ा? जबकि सिकंदर लोदी तो कबीर की मृत्यु के 38 वर्षों बाद गद्दी पर बैठा था।"

जब तिहासिक सबूत मिल गया है तो यह सवाल भी उठेगा कि कबीर के 120 वर्ष तक ज़िंदा रहने और मगहर में मरने की अफ़वाह किसने उड़ाई. मुमकिन है कि उसी ने उड़ाई हो जो कबीर के पास था, जो घटना का चश्मदीद था और जिसने कहानियाँ लिख मारीं कि कबीर 120 साल ज़िंदा रहने के बाद मर्ज़ी से मगहर में जा कर मरा. याद रहे कि ऐसी झूठी कहानियाँ क़ातिल भी बनाते हैं. आख़िरी संस्कार या सुपुर्द--ख़ाक होने से पहले ही लाश फूलों (अस्थियों) में बदल जाए ऐसा साइंस के सभी असूलों के ख़िलाफ़ है. यह प्रश्न तो उठेगा कि क्या कबीर की हत्या की गई थी और कि बाद में झूठी कहानियाँ फैला दी गईं? यह भी लिखा गया कि कबीर को कई बार, कई तरीके से मारने की कोशिश की गई लेकिन वे नहीं मरे.

मैंने कबीर को लंबे अर्से तक पढ़ा है लेकिन अब मैं उसे भगत, ज्ञानी, रूहानी आदमी के रूप में नहीं देखता. मैं उस कबीर को जानता हूँ जो इस देश के मूलनिवासियों को ग़ुलामी से आज़ादी की ओर जाने के लि चेतवान बनाता है.

यदि आप फेसबुक पर हैं तो नीचे दिए लिंक पर आपको ज़्यादा जानकारी मिल जाएगी.

(17-11-2016)
इस बीच ताराराम जी ने जोधपुर से एक फोटो भेजी है जो ई. मार्सडेन की एक पुस्तक 'भारतवर्ष का इतिहास' में मिली है. यह पुस्तक 1919 में छपी थी. इस फोटो में दिया स्कैच कबीर की एक अलग छवि पेश करता है. इसमें कबीर की आयु 40 वर्ष की बताई गई है. इसमें कोई कंठी, माला, मोरपंख, मुकुट आदि धार्मिक प्रतीक नहीं हैं. एकदम सादा शख़्सियत गढ़ी गई है. इस पुस्तक के अनुसार कबीर का जीवन 40 वर्ष रहा. सवाल तो उठता रहेगा कि कबीर की मौत कुदरती थी या ग़ैर-कुदरती. उसकी वजह भी है. कबीर ने यदि केवल ईश्वर, परमेश्वर, राम, अल्लाह का नाम लेकर जीवन बिताया होता तो उसके जीवन का लोगों के लिए क्या महत्व था. किसी को उसके उस काम से क्या चिढ़ या दुशमनी हो सकती थी. लोग उसी को याद रखते हैं जिसने उनके लिए कोई संघर्ष किया हो. कबीर की जिस बात के लिए उनके समय के लोगों ने उनका विरोध किया उसे ही समझने की ज़रूरत है. वे हिंदू, मुसलमान दोनों को राह बताते थे कि इंसानियत पहले और धर्म बाद में आता है. यही बात थी जो धार्मिक या मज़हबी लोगों को रास नहीं आती थी. वे यह भी समझाते रहे कि जात-पात और कुछ नहीं सिर्फ़ गुलामी है और उससे आज़ादी ज़रूरी है. व्यक्ति की आज़ादी के वे हिमायती थे और विवेक उनका पैमाना था. उस समय उनका यह संघर्ष मामूली संघर्ष नहीं था. वे उन ख़तरों से खेल रहे थे जो धार्मि और जातिवादी लोग उनके लिए के पैदा कर रहे थे. भूलना नहीं चाहिए कि दादू दयाल जैसे कई अन्य संतों की निर्मम हत्याएँ की गई थीं. कबीर के साथ क्या हुआ यह अभी भी खोज का विषय है
  

28-06-2019
नीचे दिये गए चित्र पर कबीर के जीवन काल पर ध्यान दीजिए. यह फोटो रजत साइनर्जी ग्रुप ने अपने एक यूट्यूब वीडियो (https://www.youtube.com/watch?v=Fm0luNheZzg) के साथ किया है. वीडियो आज रिट्रीव किया गया था.

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