कल
मैं डॉ.
राजेंद्र
प्रसाद सिंह का एक वीडियो देख
रहा था जिसमें उन्होंने व्याख्या
की थी किस प्रकार पंडितों ने
हिंदी व्याकरण के नियम बना
कर उसके विकास को रोका है,
संस्कृत
के नियमों को हिंदी पर थोपा
है आदि.
उनके
दिए हुए तर्क मुझे सही जान
पड़े.
मुझे
अपने करियर के दौरान हिंदी
के कई रूपों से बावस्ता होना
पड़ा है.
इस
लिए भी उनकी बातें सुन कर मैं
थोड़ा आज़ाद महसूस कर रहा हूँ.
फिर एकदम
मुझे अपने ब्लॉग की भाषा का
ख़्याल आया जो 'सरकारी
हिंदी'
जैसी
हो गई है.
उसमें स्वरों
और वर्णों की संधियाँ साथ-साथ
चली हैं जो हिंदी की सेहत के लिए नुकसानदेह हैं.
मेरी भाषा आम
आदमी की भाषा से दूर
हुई है.
जिन
लोगों के लिए मैं लिख रहा था
उनके लिए तो मेरी भाषा और भी
मुश्किल हो गई.
अब थोड़ा पछतावे का टाइम है.
धीरे-धीरे अपनी लिखी हुई
पिछली सारी पोस्टें जाँच कर
उनके टेढ़े शब्दों की बदली करता हूँ.
डॉ.
राजेंद्र
प्रसाद के तीखे वीडियो का
लिंक नीचे दे रहा हूँ. फोटो पर क्लिक कीजिए.
Dr. Rajendra Prasad Singh - डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह |
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