कोई भी ज्ञान अंतिम नहीं होता. लगातार पढ़ने, लिखने और शोध करने से वह समृद्धि होता है.
जिसे कभी हम 'सिंधुघाटी सभ्यता' के नाम से पढ़ते थे उसे अब आर्कियोलॉजिस्ट 'हड़प्पा सभ्यता' कहना पसंद करते हैं. पहले जिसे हम स्कूल के दिनों में 'मोहनजोदड़ो' शहर के नाम से पढ़ते थे उसमें परिवर्तन हुआ है. शोधकर्ताओं ने बताया कि वह शब्द वास्तव में मोहनजोदड़ो न हो कर ‘मुअन जो दाड़ो’ है जिसका अर्थ होता है ‘मुर्दों का टीला’ या 'मरे हुओं का टीला'. ‘मुअन’ शब्द पंजाबी के ‘मोए’ और हिंदी के ‘मुए’ शब्द का लगभग समानार्थी है. इस शहर को यह नाम शायद इसलिए दिया गया कि वहां बहुत से लोग मर गए थे या मार डाले गए थे. लेकिन अब आगे खोज बता रही है कि 'मुअन जो दाड़ो' भी उसका असली नाम नहीं था. प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सिंह (यह फेसबुक का लिंक है) ने बताया है कि उस शहर का नाम ‘मेलुख्ख’ था. यह शब्द मेसोपोटामियाई अभिलेखों और साहित्य से प्रकाश में आया है.
हमने कभी पढ़ा था कि सिंधुघाटी सभ्यता के क्षेत्र में खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो के निशान मिले हैं लेकिन अब नई खोज है कि सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में जहां बौद्ध स्तूप मिला था उस स्तूप के नीचे की खुदाई में 'मुअन जो दाड़ो' शहर मिला और कि उसी शहर का असली नाम ‘मेलुख्ख’ था.
हमने कभी पढ़ा था कि सिंधुघाटी सभ्यता के क्षेत्र में खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो के निशान मिले हैं लेकिन अब नई खोज है कि सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में जहां बौद्ध स्तूप मिला था उस स्तूप के नीचे की खुदाई में 'मुअन जो दाड़ो' शहर मिला और कि उसी शहर का असली नाम ‘मेलुख्ख’ था.
यह सब इसलिए नोट कर लिया है क्योंकि भारत के लगभग सभी मूलनिवासी लोग जब अतीत की यात्रा पर निकलते हैं तो वे सिंधुघाटी, हड़प्पा, मुअन जो दाड़ो तक ज़रूर पहुँचते हैं. अब वे मेलुख्ख शहर से भी ग़ुज़रेंगे.
इतिहास रुका हुआ पानी नहीं है. यह प्रवाहमान है. यायावरी है.
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