"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


16 October 2010

Reverence of Ravana on Dussehra - दशहरे पर रावण की पूजा


रावण के मिथ को ले कर कई रोचक और भयानक कथाएँ प्रचलित हैं. इनमें से कुछ रुचिकर हैं जिन्हें 'शब्द शिखर' ब्लॉग पर एक आलेख में संजोया गया है. इसे इस लिंक पर देखा जा सकता है -->  दशहरे पर रावण की पूजा


एक और कथा फेसबुक से सामने आई है. उसे भी देखते हैं. रुचिकर है-

"श्रीलंकायह रावण की लंका नही ।-

अनेक विद्वान इतिहासकारों ने रावण की लंका नर्मदा और सोनभद्र नदि के संगम के पास अमरकंठक पर्बत के उपर होने का दावा किया है। लंका मतलब ऊँचा टीला। लंका शब्द गौंडी भाषा का शब्द है। इसीलिए गौंड (द्रविडराजा रावण कि लंका मध्य प्रदेश के अमरकंठक पर्बत पर थी ऐसा विद्वान मानते हैं। अमरकंठक पर्बत के पास ही बडा दलदली इलाका हैजिसे पार करना असंभव हैवही वाल्मीकि का समुंद्र है।

आज भी अमरकंठक पर्बत के पास "रावण ग्रामनामक गौंड जाती के लोगों का गांव है। वहाॅ रावण की जमीन के उपर सोती हुई पत्थर कि मूर्ती हैऔर वहाॅ के लोग विजया दशमी के दिन "रावण बाबाकहकर उसकी पूजा करते हैं। रावण बाबा उन्हें सुखी रखता हैऐसी उनकी श्रध्दा है। (ज्यादा जानकारी के लिए पढीए दिवाकर डांगे लिखित मराठी ग्रंथ "रहस्य विश्वोत्पतीचे आणि इश्वराचे।".)






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