Bhagat Munshi Ram |
Here is gist of an article written by Bhagat Munshi Ram. It is regarding prophecies made by saints including Baba Faqir Chand.
“In 1976 Baba Faqir Chand, in Vaisakhi discourses said that within 5-6 years world population would be reduced to 30-40 percent. That time has passed. The world population did not reduce in India or in the world. Why did he say so?
In Islam it is written that after thirteenth century Doomsday will come. But nothing happened. Lord Buddha had estimated life of Buddhism to be 500 years. Today, the number of followers of Buddhism in the world is higher.
The thought of reduction in world population keeps occurring to people doing inner practices, yogis, sages and saints. Such views come during dreams, inner practices or lower level Samadhi. In year 1966-67, my friend Yogiraj Rameshwar Giri had predicted the world ending up with one third of population remaining.
It rather reveals a mystery. At the time these great men experienced such visions their bodies were in the process of dying. Possibly that was the cause behind such visions. It is a popular saying- ‘It is dooms day when one dies himself’. When the last day falls on someone he thinks the whole world is going to end. It's natural.
Prof. Vashishth of Chandigarh asked Baba Faqir Chand what would happen to the world. His own body was about to end and he died. There could have been its effect on the brain of Baba Faqir.
While making such prophesies saints have good intentions and there is nothing against the world.”
Hope it explains the truth of prophecies as the world continues.
संतों की भविष्यवाणियों के बारे में भगत मुंशीराम जी के एक आलेख का सार नीचे दिया है. यह बाबा फकीर सहित अन्य संतों की भविष्यवाणियों के बारे में है.
“सन् 1976 के वैसाखी सत्संगों में बाबा फकीर चंद ने कहा था कि 5-6 वर्ष में जनसंख्या 30-40 प्रतिशत रह जाएगी. वह समय गुज़र चुका है. दुनिया की जनसंख्या में कमी नहीं आई. न भारत में और न संसार में. उन्होंने ऐसा क्यों कहा.
इस्लाम धर्म में लिखा है कि तेरहवीं सदी के बाद कयामत आ जाएगी. मगर कयामत नहीं आई. महात्मा बुद्ध ने कहा था कि बौद्धधर्म 500 साल चलेगा. आज संसार में बौद्धधर्म मानने वाले लोग बहुत अधिक हैं.
विश्व की जनसंख्या कम हो जाने के विचार अभ्यासियों, योगियों, साधुओं और सन्तों को आते रहते हैं. स्वप्न में, अभ्यास में या नीचे की समाधियों में ऐसे दृश्य आते हैं. वर्ष 1966-67 में मेरे मित्र योगीराज रामेश्वर गिरी ने कहा था कि संसार की आबादी एक तिहाई रह जायेगी.
इससे एक गहरा रहस्य समझ आता है. इन महापुरुषों ने जब ये दृश्य देखे तो इनके शरीर छूटने वाले थे. संभव है ये दृश्य इसी कारण से हों. कहा भी गया है कि ‘आप मरे जग परलो‘. जब किसी के अंतिम दिन आते हैं तो वह समझता है कि सारी दुनिया मर गई. यह स्वाभाविक बात है.
चंडीगढ़ के प्रोफैसर वसिष्ठ ने परम दयाल जी से पूछा था कि महाराज दुनिया का क्या होगा. उनका अपना शरीर समाप्त होने को था और वह चला गया. हो सकता है इसका प्रभाव परम दयाल जी के मस्तिष्क पर रहा हो.
जब संत ऐसी भविष्यवाणी करते हैं तो उनकी भावना शुभ होती है. वे संसार के अहित में कोई विचार नहीं रखते.”
इससे भविष्यवाणियों की सच्चाई स्पष्ट हो जानी चाहिए क्योंकि दुनिया चल रही है.
MEGHnet
इससे भविष्यवाणियों की सच्चाई स्पष्ट हो जानी चाहिए क्योंकि दुनिया चल रही है.
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छोडो भविष्य की आहत, आज तो जी लो,
ReplyDeleteभविष्य की बात आजतक न कोई जान पाया है न जान पायेगा ... इसलिए हमें आज में जीना होगा ...
ReplyDeleteमेरे विचार से इन भविष्यवाणियों से तत्कालीन परिस्थितियों का आकलन किया जा सकता है...जैसे वर्तमान दशा में हमें लगता है कि शुद्ध हवा, ईंधन और पेयजल का भविष्य अंधकारमय है...
ReplyDeleteबात तो सही है आपकी .....हार्दिक शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteआपने सही लिखा है ! संतो द्वारा की गयी भविष्यवानियाँ तत्कालीन परिस्थितियों में उनके मन में उभरी अनुभितियों पर आधारित होती होंगी !
ReplyDeleteवैसे भी भविष्यवाणियाँ कब सच हुई हैं !
आभार !
* Dr. Sharad.
ReplyDeleteहाँ,आपने भविष्य के आकलन का उल्लेख किया है. आपसे सहमत हूँ. हम सभी यह करते हैं. आभार.
*संदीप जी
ReplyDelete*सैल जी
*सतीश जी
*मर्मज्ञ जी
आप सभी का सस्नेह आभार.
मैं भी ऐसी सवालों में वर्षों से उलझी हूँ ..अबतक कोई यथोचित जवाब नहीं मिला है ..
ReplyDeleteसही विश्लेषण किया है आपने .......
ReplyDeleteजागरूक करता आलेख । भ्रांतियों को तोड़ता हुआ। धन्यवाद भूषण जी।
ReplyDelete*Amrita Ji, मैं अब इन सवालों में नहीं उलझता. बचपन से कई बार दुनिया के तबाह होने की भविष्यवाणियाँ सुन चुका हूँ. दो मामलों में भविष्यवक्ता मरने के डर से आत्महत्या कर गए. दुनिया चलती रही.
ReplyDelete*सुरेंद्र जी, धन्यवाद. भगत मुंशीराम जी के विश्लेषण से मैं भी प्रभावित हूँ.
*Zeal, धन्यवाद डॉ. दिव्या. मैं इन भ्रांतियों में नहीं हूँ इसलिए मुक्त महसूस करता हूँ. आपका आभार.
सन्तों को ध्यान से पढ़ने से पता लगता है कि उन्होंने जो कुछ भी कहा अपनी नियत को साफ रख कर कहा ओर सच्चाई की खोज के लिए जरूरी है हम झूठ को छोड़ते जाएँ आपका आभार
ReplyDeleteMr Bhusan
ReplyDeleteits really a nice article, the credibility of saints are questioned. Those who talk about destruction or create fear, are the actually saints. we should remember if God is a destroyer He is also a creater. Rather that living in fear, i feel, we should enjoy the beautiful gift given to us by God i.e Life.
मृत्यु पर्व से लौटे लोगों का अनुभव कई साइंसदान कलम बद्ध कर रहें हैं .दिमाग में जैव रसायन परिवर्तनों से मृत्यु के आगोश में जाते जाते कई अन -अनुभूत सत्य भी उजागर हुए हैं ..साधुवाद आपका जानकारी के लिए ,विश्लेषण के लिए .
ReplyDelete*Rajpurohit Ji,आपके विचार से सहमत हूँ.
ReplyDelete*Lettersofdesire, I have noticed that saints express express their ordinary feelings, their disciples take it to the market and sell it as a commodity.
*Veerubhai Ji, आपका आभार.
बहुत ही बेहतरीन विश्लेषण
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
I agree with you
ReplyDeletetill the living spirit is alive in man, nothing can destroy him.
there are so many examples in this world who will prove this right.
Nice post !!
बहुत सुन्दर और शानदार विश्लेषण! उम्दा पोस्ट!
ReplyDelete* Vivek
ReplyDelete* Jyoti
* Babli
यहाँ पधारने के लिए आप सभी का आभार.
thanks for visiting my blog, i wish our paths will cross someday and may be we will explore the spiritual self more.
ReplyDelete* Sure Nirmal ji. This is a common path of human beings.
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