कुछ वर्ष पहले की बात है कि तीन
युवाओं को सोशल मीडिया पर उलझते हुए देखा था. एक युवा किन्हीं बातों पर सहमत हो
रहा था तो दूसरे को उसकी सहमत होने की आदत पर एतराज़ था. उन तीनों में एक युवा का
नाम एकमजीत (?) है जिसने सवाल उठाए थे.
पिछले दिनों एकमजीत ने यू-ट्यूब चैनल MEGHnet देखा और उसने कुछ सवाल खड़े कर दिए. सवाल गंभीर थे और जवाब
देना बनता था.
पहला सवाल था - "इन सभी
वीडियो में बताई गई बातों को सच कैसे माना जाए? ये तो
मनोचित्र हैं". मनोचित्र के बारे में मेरा मानना है कि हम जो कुछ भी
जानते-मानते हैं वह सारी जानकारी मनोचित्रों के रूप में ही दिमाग़ में इकट्ठी हुई
होती है. उसका कुछ हिस्सा हम बाहर प्रकट कर पाते हैं. अब जवाब पर आते हैं. MEGHnet चैनल पर जितने भी वीडियो हैं वो विद्वानों की पुस्तकों और
नेट पर उपलब्ध जानकारी के आधार पर हैं. उन्हें समेकित (consolidated) रूप में एक जगह रखने का कार्य मैंने
किया है और उस कार्य की अपनी सीमाएँ हैं.
मेघ ऋषि संबंधी
वीडियो कइयों
के मन में सवाल खड़े करता है क्योंकि मेघ ऋषि एक पौराणिक पात्र है जिसे आज के किसी
हाड़-मांस के आदमी ने नहीं देखा. यानि वो मनोचित्र है जो शब्दों और लकीरों से
तैयार हुआ है. मेघ ऋषि की जन्म-मरण की तिथियाँ कैसे मिलेंगी जबकि शिक्षा से वंचित जातियों में दो सौ वर्ष पहले
तक जन्म तिथि याद रखने का कैलेंडर आधारित वैज्ञानिक तरीका प्रचलित नहीं था. मेघ ऋषि
के माता-पिता का नाम कहीं लिखा है तो मैं नहीं जानता. वेदों-पुराणों में मेघ ऋषि
का कोई स्कैच था या नहीं मुझे नहीं पता. गीताप्रेस गोरखपुर वालों ने बनवाया हो तो
भी पता नहीं😀. शब्दों और लकीरों से मनोचित्र बनाए गए हैं. जो कुछ मुझे बताने योग्य लगा मैंने बता दिया. पढ़े-लिखे लोग जानते हैं कि पौराणिक कथाएँ अनपढ़ रखे गए लोगों को भरमाने के लिए लिखी गई थीं.
मेघों और
मेघवंशियों के इतिहास का
जहाँ तक संबंध है एक बात स्पष्ट करनी ज़रूरी है कि स्वामी गोकुलदास और मेरे पिता
श्री मुंशीराम भगत ने अपनी पुस्तकों में बहुत सी जानकारियाँ दी हैं लेकिन ये दोनों
महापुरुष इतिहासकार नहीं थे. अलबत्ता आगे चलकर जब कभी कोई मेघों का इतिहास लिखेगा
तो इन पुस्तकों से कुछ जानकारी वो ले सकेगा. डॉक्टर ध्यान सिंह ने अपने थीसिस "पंजाब में कबीर पंथ का उद्भव और विकास"
में जो रिसर्च कार्य किया है
उसमें उक्त दोनों लेखकों को उद्धृत किया है.
एकमजीत जी ने सवाल किया था कि चमार
समुदाय का इतिहास उन्हें सिंधुघाटी सभ्यता का बताता है. तो क्या चमार समुदाय भी
मेघऋषि का वंशज है. यह बहुत टेढ़ा सवाल है क्योंकि यह मानने की बात अधिक है. हाँ, इतना कहा जा सकता है कि कई शूद्र जातियों और लगभग सभी
अनुसूचित जातियों का इतिहास उन्हें सिंधुघाटी का बताता है और अभी
हाल ही की खोज ने स्पष्ट किया है कि जिसे हम सिंधुघाटी की सभ्यता कहते हैं वह
वास्तव में बौध सभ्यता थी. तो इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि बौध सभ्यता से
संबंधित सभी जातियाँ और वंश बौध सभ्यता से थे. (मैं यहाँ बाद में उपजे बौधधर्म की
बात नहीं कर रहा). भारत में जितनी भी दलित जातियाँ हैं उनका इतिहास अंग्रेज़ों से
पहले लुप्त था. अब शिक्षित हो कर सभी जातियां नई जानकारियों के साथ अपने गौरवपूर्ण
इतिहास को ढूंढ कर ला रही हैं और लिख रही हैं. मैंने पढ़ा है कि जाट भी खुद को
वृत्र (मेघ ऋषि) का वंशज मानते हैं; उन्होंने
अपना इतिहास खुद लिखना शुरू किया है. अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार कई जातियां
मेघवंश से निकली हैं और जाति के तौर पर वे अपनी अलग पहचान रखती हैं. उनमें इतनी
भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक
असमानताएं पैदा हो गई हैं कि वे एक दूसरे को ख़ुद से अलग ही समझती हैं. उस समझ की पृष्ठभूमि में गरीबी (poverty), भौगोलिक दूरी (distance), अनपढ़ता (illiteracy) और गतिहीनता (immobility) है.
एकमजीत जी ने एक रुचिकर बात कही कि 'हमने अपना
जो पुराना इतिहास देखा नहीं या समझा नहीं उसे क्यों न छोड़ ही दिया जाए?' इस सवाल से मैं पहले भी रूबरू हो चुका
हूँ. ऐसा सवाल दो कारणों से पैदा होता है. 1. हमें
पुराणों में दिए गए ऐतिहासिक संकेतों की समझ नहीं आती और 2. यदि आती है तो हम पाते हैं कि हमारे अतीत
(गुज़रे इतिहास) को इतने गंदे तरीके से बयान किया गया है कि पढ़ कर गुस्सा आता है.
इसलिए हम पूछने लगते हैं कि क्या उस इतिहास को पढ़ने या दोहराने से कोई फ़ायदा है?
एकमजीत जी के इस सवाल को मैं बहुत महत्व देता हूँ. हमारे समाज के बारे में
जो इतिहास मिलता है वो हमारे समाज के लोगों ने नहीं लिखा बल्कि अन्य समाजों के
लोगों ने लिखा है या फिर उनकी मदद से अंग्रेज़ों या अन्य ने लिखा है. वो जैसा भी
लिखा है दूसरे उसे सही मानते-जानते हैं. हमारी मजबूरी है कि हम भी वही पढ़ते हैं.
इसलिए अब अनुसूचित जातियों के लोग कहने लगे हैं कि पौराणिक कहानियों को इतिहास
मानना बंद करो.
आज भारत की सभी अनुसूचित जातियां महसूस कर रही हैं कि उन्हें अपना इतिहास
खुद ही लिखना होगा क्योंकि उनके बारे में जो दूसरों ने लिखा है वह एकतरफा और घृणा
से ग्रस्त है. एक तरफ जहाँ चमार, धानक, जाट आदि समुदायों ने अपना इतिहास खुद
लिखने के सघन प्रयास किए हैं दूसरी तरफ मेघ समाज में अभी तक इतिहास के
प्रति जागरूकता की बहुत कमी है. कारण है - सदियों की अनपढ़ता. अभी हमारी दूसरी या
अधिक से अधिक तीसरी पीढ़ी के लोग शिक्षित हुए हैं. अभी उम्मीदें जगी हैं. पंजाब के
डॉक्टर ध्यान सिंह ने पंजाब के कबीरपंथियों पर रिसर्च की है जो मुख्यतः मेघ समुदाय
पर केंद्रित हैं. उनकी रिसर्च में मेघों का पिछले 200 वर्षों का इतिहास मिल जाता है. उसे
फिलहाल पूरा इतिहास नहीं कहा जा सकता. आगे चलकर उनसे बेहतर प्रकाशन की उम्मीद है.
अंत में एकमजीत जी का सवाल है कि क्या दलितों द्वारा दलितों के इतिहास पर की गई रिसर्च को मान्यता मिल सकती है? हाँ, मिलेगी, जब वर्तमान शैक्षिक व्यवस्था बदलेगी. उसके आसार बनने लगे हैं. आखिर नवल वियोगी जैसे कई इतिहासकार हैं जो दबे नहीं. उन्होंने अपने शोध को पुस्तक रूप में छपवाया. आगे चलकर भारत सरकार ने उसे मान्यता दी और राष्ट्रीय सम्मान भी दिया. और फिर बहुत कुछ आपके संघर्ष पर भी निर्भर करता है.
Hey! This is my first visit to your blog! We are a team of volunteers and starting a new
ReplyDeleteinitiative in a community in the same niche. Your blog provided us useful information to work
on. You have done a outstanding job!
Thanks. You have commented as 'Anonymous'. We shall be happy if you could tell us about yourself and your team.
DeleteAwesome things here. I am very happy to peer your article.
ReplyDeleteThank you a lot and I am looking ahead to contact you.
Will you kindly drop me a e-mail?
You're so interesting! I do not suppose I've read
ReplyDeletea single thing like this before. So wonderful to discover someone with some genuine thoughts
on this issue. Really.. many thanks for starting this
up. This site is something that is required on the internet, someone with a little originality!
I'm truly enjoying the design and layout of your site.
ReplyDeleteIt's a very easy on the eyes which makes it much more
enjoyable for me to come here and visit more often. Did
you hire out a developer to create your theme? Great work!
I am genuinely grateful to the owner of this web site who has shared this fantastic piece of writing
ReplyDeleteat at this place.