Sh. R.L. Gottra |
मैंने श्री आर.एल. गोत्रा जी को पहले पहल सोशल मीडिया से जाना फिर उनसे व्यक्तिगत रूप से मिला. वे सन् 1998 में सरकारी नौकरी से रिटायर हुए और तीन चार साल बिजनेस में रहे. फिर बिजनेस छोड़ कर धार्मिक पुस्तकें पढ़नी शुरू कीं. वेद पढ़े, मनुस्मृति और गुरुइज़्म से संबंधित पुस्तकें पढ़ीं. इस्लाम, इसाईयत, सिखिज़्म और अन्य धर्मों के बारे में पढ़ने के बाद वे इस परिणाम पर पहुँचे कि धार्मिक किताबें इस नज़रिए से पढ़नी चाहिएँ कि उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है. मत-मतांतरों की पृष्ठभूमि में क्या कुछ जुड़ा हुआ है. धार्मिक ग्रंथ लिखने वाले कौन थे और उनकी सूचना के स्रोत और आधार क्या थे. उनकी मानसिकता क्या थी, उनका व्यक्तित्व कैसा था, उनके व्यक्तिगत पूर्वाग्रह (biases) क्या थे.
धार्मिक पुस्तकों की राह से ग़ुज़र कर वे जहाँ पहुँचे वह तर्क का मुकाम था. यानि आंखें बंद करके कुछ भी मत मानो. देखो, जानो, पहचानों, पड़ताल करो, जाँचो फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की तैयारी करो ताकि आपको खुद की समझ से संतुष्टि रहे और आगे चल कर अपनी न्याय बुद्धि पर पछतावा न हो. सब से बढ़ कर यह कि इतनी सावधानी ज़रूर बरती जाए कि किसी पुस्तक या धार्मिक विचारधारा की मानसिक गुलामी को ख़ुद ही अपने कंधों पर न डाल लिया जाए.
देश में शिक्षित युवाओं में बढ़ती बेरोज़गारी को उन्होंने रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन की टेक्नोलॉजी के संदर्भ में परखा है और भविष्य में बेरोज़गारी को लेकर जो कार्यनीति अपनाई जा सकती है उसके बारे में अपने विचार दिए हैं. राजनीतिक पार्टियों ने जिस प्रकार चुनावी प्रक्रिया में गंदगी फैलाई है उसके तीन वाहकों का वे उल्लेख करते हैं - धर्म, जाति और विवेकहीन राजनीति. उनका मानना है कि पार्टियों ने जानबूझ कर चुनावी प्रक्रिया में ये ख़ामियाँ पैदा की हैं.
इस विषय पर श्री आर.एल. गोत्रा जी का पॉडकास्ट यहाँ उपलब्ध है जो पंजाबी में है. उनके साथ हुई बात का विस्तृत ब्यौरा हिंदी में यहाँ उपलब्ध है जो स्वतंत्र अनुवाद है.
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