लगभग एक वर्ष पहले मैंने एक ब्लॉग लिखा था - गुंजलिका में एक कथा
‘मेंग’ को ढूँढने निकले मेरे ख़्यालों के जंगली घोड़े दूर-दूर तक घूम आए थे. उत्तर-पूर्व में, बल्कि उससे भी आगे. उसी ब्लॉग में लार्ड अलेग्ज़ैंडर कन्निंघम को भी उद्धृत किया था.
अब इतिहासकार श्री ताराराम जी ने फेसबुक के एक ग्रुप ‘Megh विचार गोष्ठी’ में एक पोस्ट डाली है जिसमें उन्होंने मध्यकाल में मेघों के लिए प्रयुक्त कुछ अन्य नामों का भी उल्लेख किया है यथा- मेख, मख, मोकर या मौखरि. अपनी पोस्ट में वे लिखते हैं- “अपने मूल स्थान से विस्थापन के बाद यह जाति सिंधु से बर्मा तक फैल गयी. जहां मंगोल जाति से इसका संपर्क हुआ. अरकान का क्षेत्र इसके अधीन था. मेघों के वहां निवास के कारण ब्रह्मपुत्र नदी का नाम वहां पर मेघना हो गया. मेगाद्रू और मेघना, दोनों नामों में मूल जाति (मेग) का नाम सुरक्षित है”.
अपनी बात को पुष्ट करने के लिए उन्होंने CULCUTTA REVIEW, Volume LXXX, Page- 193, publication: 1885 का हवाला दिया है और उससे संबंधित स्क्रीन शॉट भी वहाँ पेस्ट कर दिए हैं.
तथ्यपूर्ण आलेख ।
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