नवल वियोगी ने हाशिए की उन जातियों का इतिहास ढूँढा है जो आज अलग-अलग पहचान रखती हैं लेकिन अतीत में एक ही बड़े कबीले के रूप में दिखाई देती हैं.
डॉ नवल वियोगी ने अपनी पुस्तक 'मद्रों और मेघों का प्राचीन और आधुनिक इतिहास' में महामहिम बाबू परमानंद को मेघ जाति का बताया है. कैसे बताया वही जानते होंगे लेकिन उनकी बात पर मुझे शक था. कुछ मेघ मंत्री बने हैं लेकिन कोई मेघ राज्यपाल बनाया गया हो ऐसा कभी सुना नहीं. फिर भी उस पर एक पोस्ट मैंने सोशल मीडिया पर डाल दी जिस पर बहस छिड़ गई. मेरी मंशा यह थी कि जिन समाजसेवियों ने मेघ जाति के लिए कार्य किया, चाहे वे किसी भी समाज से हों, उनकी याद कायम रखने का हीला करना चाहिए. लेकिन जैसा कि अक्सर होता है सियासी शख़्सियत पर चर्चा उनकी जाति तक आते ही राजनीति में चली जाती है.
सोशल मीडिया पर और बाहर भी पर्याप्त रूप से लोगों ने जानकारी दी कि बाबू परमानंद मेघ जाति से नहीं थे और यह भी कि उनके और भगत छज्जूराम (मेघ) जी के राजनीतिक हितों में टकराव था. अब नवल वियोगी जी तो दुनिया में हैं नहीं कि उनसे कुछ पूछा जा सकता. सो मैंने उस पोस्ट को डिलीट करना बेहतर समझा.
नवल वियोगी जी की चूक भी इतिहासिक हो गई है.😊 ख़ैर! जिस इतिहासकार ने इतना बड़ा असंभव-सा लगने वाला कार्य किया उससे हुई ऐसी मामूली चूक नज़रअंदाज़ करने के काबिल है.
जाति की राजनीति तो होती ही है पर दिख रहा है कि राजनीति की भी जाति होती है । बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteजहाँ राजनीति आ जाये वहाँ विवाद न आए ऐसे हो नहीं सकता ...
ReplyDeleteराजनीति अपने अप में एक वर्ग है जिसकी जाती भी राजनीति ही है ...