I had a question in mind as to why
one of the greatest religions i.e. Buddha Religion (also called Buddhism) was
so hated in India. I got few answers which may not contain anything new but
certainly impart new information.
There are statues of Black Buddha
available having features of people of African origin. When we talk of black
races of African origin then people of South India (Dravidians) are also
included who have straight hair and comparatively thin lips. These Dravidian
people have their origin in Indus Valley Civilization. They lived in a
developed civilization and were forced to go into south due to food finding
nomadic tribes coming from central Asia. In the process there was blood mixing
in various social groups. Castes were made and many groups were enslaved and
given the low work according to the proportion of black color in the skin. From
this angle Indian caste system is the form of racism and apartheid and still
prevalent in its dirtiest form. OBCs, SCs and STs of India are the target of
this system and every effort is made to keep them away from quality life and
Human Rights. A very large part of corruption in
India is caste based as development is not allowed to reach interior of India
where these people live.
A lecture of 2 hrs duration delivered
by Dr. Velu Annamalai is given below. Links
regarding ‘Black Buddha’ are also given below.
एक प्रश्न बहुत समय से मन पर टँगा था कि जब
बुद्धधर्म दुनिया भर के महानतम धर्मों में से एक है तो उसे भारत में घृणा की
दृष्टि से क्यों देखा गया?
कुछ उत्तर मिले हैं जिनमें चाहे नया कुछ न हो
परंतु जानकारी बढ़ाने में ये मदद करते हैं.
बुद्ध की कुछ मूर्तियाँ दुनिया में
उपलब्ध हैं जिनमें बुद्ध का रूप-रंग और नैन-नक्श अफ्रीकी मूल के लोगों के से हैं. जब
अफ्रीकी मूल की श्यामवर्ण या मेघश्याम (काले रंग) की प्रजातियों की बात आती है तो उनमें दक्षिण
भारत के द्रविड़ियन मूल लोग भी इनमें शामिल होते
हैं जिनके बाल सीधे और होंठ तुलनात्मक रूप से पतले हैं. द्रविडियन मूल के लोगों का
संबंध सिंधुघाटी और हड़प्पा सभ्यता से है. एक विकसित सभ्यता में रहने वाले ये लोग
मध्य एशिया की आदिम जातियों के आक्रमण के दबाव में दक्षिण की ओर चले गए थे. इसी
क्रम में उस समय के सभी सामाजिक समूहों में रक्त-मिश्रण हुआ. जातियाँ बनी और कई
समूहों को गुलाम बना कर उनकी चमड़ी में काले रंग की मात्रा के अनुसार निम्न
प्रकृति का कार्य दिया गया. इस दृष्टि से भारतीय जाति प्रथा नस्लवाद और रंगभेद का
ही रूप है जो आज भी अपने निकृष्टतम रूप में प्रचलित है. भारत की अन्य पिछड़ी जातियाँ, अनुसूचित जातियाँ
और जनजातियाँ इसकी शिकार हैं और इन्हें गुणवत्तापूर्ण जीवन और मानवाधिकारों से दूर
रखने की हर संभव कोशिश होती है. भारत में भ्रष्टाचार
का बहुत बड़ा भाग जातिप्रथा आधारित है क्योंकि विकास को उन दूर-दराज़ के इलाकों में पहुँचने
ही नहीं दिया जाता जहाँ ये लोग बसते हैं.
ख़ैर, इस क्रम में डॉ. वेळु अण्णामलै का दो घंटे
का एक व्याख्यान 12 भागों में मिला है जिसके लिंक नीचे दिए हैं.
इसी तरह ‘ब्लैक बुद्धा’ के लिंक्स यहाँ हैं.
विश्व में बुद्ध की ऐसी मूर्तियों की बहुतायत है जिनमें वे मंगोलायड प्रतीत होते हैं. इससे यह सिद्ध नहीं हो जाता कि वे चीनी या जापानी थे. वे तो वर्तमान नेपाल राज्य में जन्मे थे इसलिए उनके उनके तत्संबंधी रूप रंग वाले होने की सम्भावना अधिक है.
ReplyDeleteबुद्ध ने वैसे भी अत्यधिक कठोर जीवन जिया. अतः यह स्वाभाविक है कि वे अपनी सुकुमारिता बहुत जल्द ही खो चुके रहे होंगे.
बुद्ध के द्रविड़ मूल के होने का प्रश्न बेमानी है. दुनिया के बहुत से बुद्धिमान लोग ऐसी ही बातों में सर खपाते हैं.
बुद्ध का संदेश महत्त्वपूर्ण है...
ReplyDeleteवे मानव थे उनमें जाति मत ढ़ूंढ़ों!!!
@ निशांत मिश्र जी, द्रविडि़यन सभ्यता का मूल सिंधुघाटी सभ्यता में है और वे लोग आदिम जातियों के आक्रमण बाद न केवल दक्षिण में चले गए बल्कि भारत के उत्तर-पूर्व में जा कर भी बसे हैं और नेपाल में भी. बौध धर्म को भारत से क्यों खदेड़ा गया यह आलेख इसमें दिए लिंक्स के माध्यम से उसकी व्याख्या है.
ReplyDelete@ मनोज भारती जी, बुद्ध के मानवीय दृष्टिकोण को आप रेखांकित कर रहे हैं, बहुत अच्छी बात है लेकिन बौध धर्म को भारत से बाहर कर दिया गया था और आज भी आरएसएस जैसे हिंदू संगठन दलित जातियों के लोगों को बौध धर्म में जाने से रोकने के लिए कार्यरत हैं. क्यों कार्य रत हैं, यह आलेख उसके कारण को समझने का प्रयास है.
ReplyDeleteधन्यवाद भूषण जी. मैंने अपना कमेन्ट लिंक्स का अध्ययन किये बिना दिया था. मैं लिंक्स पर जाकर पढूंगा और देखूँगा की यह विषय क्या है.
ReplyDeleteइस नयी जानकारी को प्रकाश में लाने के लिए आपका आभार.
jaankari vardhak post... magar aapne jahan tak jaativaad ki baat ki hai wo na keval aadivasi janjajaati ya pichchde varg ki hi baat nahi hai hamaare desh main to padhe likhe sabhy logon mai aaj bhi jaati bhed asaani se dekhne ko mil saktaa hai.jiske chalte parinaam svroop arakshan jaise muddon ko lekaar ek bahtreen film tak bani hai ARAKSHAN...
ReplyDelete@ Pallavi जी, जातिवादी समस्या के साथ देश जूझ रहा है. परंतु आप को यह जान कर हैरानी होगी कि इसी समस्या के लेबल का इस्तेमाल आरक्षण फिल्म में किया गया है लेकिन फिल्म में आरक्षण की बात न करके शिक्षा प्रणाली की बात है. ज़ाहिर है जनभावनाओं का बेजा इस्तेमाल किया गया है.
ReplyDeleteInitially Buddhism was so much flourishing and widely accepted because of its simplicity, but the main reason for its decline later was the complexities it acquired with due course of time and it was almost as same as Hinduism.
ReplyDelete@ Jyoti Mishra, You have a point Jyoti. कालांतर में बौधधर्म में कर्मकांड आ गए और इसकी कई शाखाएँ बनी.
ReplyDeleteविस्तृत जानकारी भरा पोस्ट.
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