अचानक
मुझे भारत के एक दबे कुचले संवर्ग की याद हो आई. सरकारी कार्यालयों में एक अलग रंग
का कबीला है जिसे हिंदी स्टाफ़ कहा जाता है. सभी कार्यालयों में आम धारणा है कि
दफ़्तर में यदि हिंदी में कुछ किया जाना है तो यही कबीला करेगा. अँग्रेज़ कबीला
हिंदी को छूने का कार्य नहीं करेगा.
सौ-दो
सौ स्टाफ़ वाले कार्यालय में कितना हिंदी स्टाफ़ होता है. दो नहीं तो चार. अंग्रेज़ी
स्टाफ़ बहुसंख्यक समुदाय बना रहता है. वह जब चाहे हिंदी कबीले को अनुवाद की गठरी
से ओवरलोड कर दे,
जब चाहे दबाव बना दे- ‘यू
डू इट इन हिंदी बाबा!! व्हॉट फॉर यू आर हियर?’ बैंकों के कई हिंदी अधिकारी अब जनरल
बैंकिंग करते हैं और फील्ड में जा कर ऋण वसूली का कार्य देखते हैं तिस पर हिंदी स्टाफ़
होने की तोहमत भी उठाए फिरते हैं. सिग्नल गए हैं कि बिज़नेस पहले ‘बाकी’
बाद में. संसदीय राजभाषा समिति सब जानती है.
कंप्यूटरों
से पहले टाइपराइटर सारा-सारा दिन अंग्रेज़ी में टिपटिपाते थे. अब कंप्यूटरों आए तो
उन संग अंग्रेज़ी ठुमकती हुई आ पधारीं. अफ़सर तुरत कंप्यूटर पर अंग्रेज़ी की-बोर्ड
के निःशब्द ताल पर थिरकने लगे. पता चला कि उसी की-बोर्ड पर हिंदी भी थिरक सकती है तो
उन्हें हिंदी की सरकारी नौटंकी में शामिल होने का ख़ौफ़ सालने लगा. ये हिंदी को
ऐसा गटर समझते हैं जिसमें उनका पाँव नहीं लगना चाहिए.
हिंदी
अधिकारी ने हिंदी की नौकरी करनी है और कार्यालय प्रमुख को हरगिज़ नाराज़ नहीं करना
है. कोई हिंदी में काम नहीं करता या कार्यान्वयन में कोताही करता है, तो करे. हिंदी का ‘करबद्ध’
काडर सेवा में है.
अवास्तविक
आँकड़े देने में हिंदी स्टाफ़ और अंग्रेज़ी स्टाफ़ की मित्रता प्रगाढ़ है. हिंदी
अधिकारी वास्तविक आँकड़े प्रस्तुत करे तो कार्यालय प्रमुख कहता है, “भाई
मेरे मुझे भी नौकरी करनी है,
तुम्हें भी करनी है. प्रधान कार्यालय को जवाब देना है और
दफ्तर भी चलाना है. इन आँकड़ों को अपने कृपालु हाथों से ठीक कर लो यार.”....या फिर यही कार्यालय प्रमुख कहते
हैं, “मिस्टर
हिंदी ऑफिसर, तुम्हारी कितनी सर्विस हो गई है? तुम अपने साथियों से हिंदी में काम
नहीं करवा सकते? यू आर टोटली इनइफ़ेक्टिव....क्या बोलते
हैं.....‘अप्रभावी’ हो!!” यही
कार्यालय प्रमुख साल में कई बार ‘सभी’
से हिंदी में काम करने की अपील करते हैं. जब कैबिन में होते हैं तो अपने साथी
अधिकारियों को सदा उत्साही आवाज़ में कहते हैं,
“पहले काम, हिंदी-विंदी
बाद में. देख लेंगे जो गोली चलेगी.”
हिंदी
स्टाफ़ खटता फिरता है. ‘हिंदी में करवा लीजिए न सर जी’. यह एकदम शाकाहारी कबीला है. हिंदी
अधिकारी के लिए इबारत बहुत साफ़ है- ‘हिंदी
लागू हो या न हो लेकिन तुम लगे रहो मुन्ना भाई’.
कार्यालयों
में ‘शतप्रतिशत’ कार्य हिंदी में होने लगा है. इस बीच
हिंदी अधिकारी की कनपटी पर RTI
के गब्बर सिंह की रिवाल्वर आ सटी है- ‘तेरा क्या होगा कालिया हः हः...हः हः...'
जी वक्त आ गया है हिंदी के श्राद का ........... उसी अनुसार बेहतरीन लेख.
ReplyDeleteहिंदी लागू हो या न हो लेकिन तुम लगे रहो मुन्ना भाई’.
ReplyDeleteसटीक और सामयिक व्यंग्य किया है सर।
सादर
बहुत सटीक और सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteha ha ha ha .
ReplyDeletevyangatmak andaaz badiya raha .
Loved reading the article! Presents the realistic picture with sarcasm and light humour!
ReplyDeleteJai Hindi, Jai RTI
हर जगह तो ऐसा ही होता है। क्या करें, यही सोच रहे हैं और रोज अपना सिर नोच रहे हैं।
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ReplyDeleteआपने तो मेरी ही व्यथा उतार दी!
ReplyDeleteएक दुर्भाग्य ,एक विडंबना -मगर एक त्रासदी इससे भी बड़ी है -कई हिन्दी अधिकारी, यहाँ तक कि आज तक मैं इस विशिष्ट प्रजाति के जितने भी नुमायिन्दों से मिला हूँ उन्हें हिन्दी ही ठीक से नहीं आती -ऐसे अनुवाद करते हैं कि माथा भन्ना जाता है! जरा ordinarily resident की हिन्दी उनसे पूछिए -एक ने मुझे बताया मामूली तौर पर निवासी !
ReplyDeleteये बात तो शत प्रतिशत सत्य है सर, हिंदी के साथ हो रहा ये दोगला व्यवहार अफसोसजनक है| और जो लोग थोडा बहुत हिंदी का इस्तेमाल करते भी हैं उनकी हिंदी कितनी शुद्ध है ये सर्वविदित है | मुझे एक बात आज तक समझ में नहीं आई की क्या हमारे मुल्क में भाषाओँ का आकाल पड़ गया है जो हमें गैर मुल्कों की भाषा अपनानी पड़े |देश के बाहर अंग्रेजी का प्रयोग फिर भी समझ आता है, पर अपने देश के अंदर ही अपने देश की भाषा ना बोलना, ये तो सरासर कही ना कहीं देश का ही तो अपमान है|
ReplyDeleteहालात लम्बे समय तक ऐसे ही चलने वाले हैं।
ReplyDeleteअरविंद मिश्र जी सभी हिंदी अधिकारी एक से नहीं हैं...कुछ हिंदी अधिकारी जरुर इस स्तर के हो सकते हैं,जो शायद खुद हिंदी की पोस्टों की खानापूर्ति में भर्ती हुए हैं।
हिन्दी के लिए किए जा रहे तमाशे की असलियत आपने प्रकट कर दी है। कागज़ों में सब हो रहा है , वास्तव में हिन्दी राज्य भी कोई बेहतर काम नहीं कर रहे है।
ReplyDeleteईमेल से प्राप्त कमेंट-
ReplyDeleteASHOK KR. MISHRA. ✆ to me
सर जी आपने तो दिल की बात कह दी है ...
‘तेरा क्या होगा कालिया हः हः हः हः...'
पोस्ट का शीर्षक अच्छा है और जिस फ़िल्म से लिया गया है उसका नाम भी ‘हिंदी‘ में नहीं है लेकिन कहलाती है फिर भी हिंदी फ़िल्म ही।
ReplyDeleteमुग़ले आज़म और उमराव जान को भी हिंदी फ़िल्म ही का प्रमाण पत्र दे देते हैं।
क्या है हिंदी ?
कहां है हिंदी ?
शुक्रिया !
तर्क मज़बूत और शैली शालीन रखें ब्लॉगर्स :-
हमारा संवाद नवभारत टाइम्स की साइट पर ,
दो पोस्ट्स पर ये कुछ कमेंट्स हमने अलग अलग लोगों के सवालों जवाब में दिए हैं। रिकॉर्ड रखने की ग़र्ज़ से इन्हें एक पोस्ट की शक्ल दी जा रही है।
हिंदी का सत्यानाश तथाकथित हिंदी अधिकारी ही कर रहे हैं।
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य।
कल 05/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सटीक व्यंग्य और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDelete"तेरा क्या होगा कालिया" ha h hhhhhhhhhhhhhhhhh
apt sarcasm... Lovely read
ReplyDeletelol
ReplyDeletetera kya hoga kaliaya
आपने बहुत सही लिखा है ....सार्थक और प्रासंगिक
ReplyDeleteजी ....
ReplyDeleteसितम्बर माह में तो
दफ्तरों में हिंदी का जोर अचानक बढ़ने लगता है
कार्यालय के हिंदी विभाग वाले
अचानक सचेत हो उठते हैं ...
आजकल ,, यही विधान मान्य है !!
हिंदी की अर्थी निकल रही है , इन अधिकारिओ से ! सार्थक पोस्ट !
ReplyDeleteसारगर्भित लेख....
ReplyDeleteबहुत खूब! मजेदार! :(
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति!
ReplyDelete....धन्यवाद!
Every Indian should respect their mother tongue but every indian should also learn english . English is the only language which can unite indians and it is also the source of knowledge and information .
ReplyDeleteबहुत दिनों में गुत्थी सुलझी !
ReplyDeleteरोचक!
what is this .i cant understand anything
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