जब
किसी की पूँछ में आग लगती है
तो खुशी तो होती ही है.
उस
आदमी का फुदकना मनोरंजन करता
ही है.
इसके
संदर्भ पर जल्दी से आ जाना ठीक
रहेगा.
SCs/STs
के
लिए आरक्षण का प्रावधान एक
आनी-जानी
चीज़ के तौर पर किया गया है.
हाल
ही में जाटों का आरक्षण रद्द
कर दिया गया.
कमज़ोर
प्रावधानों ने उनकी पूँछ में
आग लगाई.
अब
गुर्जरों को आरक्षण का वादा
कर के सरकार ने मनोरंजक खेल
शुरू किया है.
इससे
जाटों की पूँछ में आग और भड़केगी
और मीणाओं की पूँछ चिंगारियों
से लाल हो जाएगी.
जाट,
गुर्जर,
SCs और
STs मिल
कर आरक्षण के लिए संघर्ष करते
तो भी इन्हें समय-समय
पर अपनी आधी मूँछ सरकार के
यहाँ गिरवी रखनी पड़ती.
हाँ,
यदि
ये सभी आरक्षण के नियम बनवाने
और प्राइवेट सैक्टर में आरक्षण
लागू करवाने के लिए मिल कर आगे
चलते तो बार-बार
की मूँछ मुंड़ाई से छुटकारा
मिलता,
दीर्घावधि
में सत्ता पर पकड़ बनाने का
मौका मिलता.
फिलहाल
मैं जलती पूँछ वालों को अलग-अलग
डाल पर फुदकते हुए देख रहा
हूँ.
एकता
का तालाब सामने है लेकिन इन्हें
उसमें कूदना नहीं आता.
भई
मनोरंजन तो होता ही है न...
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