राजतरंगिणी और मेघ लिखते समय और ‘इतिहास का दर्शन’ समझते हुए कल्हण की
राजतरंगिणी के बारे में कुछ समझा भी और कुछ सवाल भी मन में उठे थे.
ख़ैर !
जो मेघजन ‘मेघवाहन’ का नाम सुन कर ‘राजतरंगिणी’ में अपने इतिहास की
प्यास बुझाने आते रहे थे वे ख़ुद को रेगिस्तान में महसूस करते थे. वही अनुभव मेरा भी है. इस पुस्तक में ‘मेघवाहन’ के बारे में जो लिखा
गया है उसका सार यह है कि मेघवाहन का पिता उसी
युधिष्ठिर का पड़पोता (great grandson) था जिसे गांधार के
राजा गोपादित्य ने शरण दी थी. वो सन 25 ईस्वी में उठान पर था
और उसने 34 वर्ष तक राज किया. (यह इस शर्त पर यहाँ लिख दिया है
कि कोई मुझ से युधिष्ठिर की जन्म-मरण तिथि न पूछे) उसका विवाह असम की एक वैष्णव
राजकुमारी अमृतप्रभा से हुआ था, जब कश्मीर का राजा
संधिमति अनिच्छुक (unwilling king) साबित हुआ तो उसके कश्मीरी मंत्री (कश्मीरी ब्राह्मण)
मेघवाहन को (संभवतः अफ़गानिस्तान से) कश्मीर ले आए थे. मेघवाहन ने पशुवध पर प्रतिबंध
लगा दिया, उसने बौद्ध मठ (मोनेस्ट्री) की स्थापना की, उसकी रानियों ने
बौद्ध विहार और मठ बनवाए, जिससे उसके बौध राजा होने का संकेत मिलता है. मेघवाहन
श्रेष्ठ राजा था, उसने ब्राह्मणों को संरक्षण दिया था.
मेघों का इतिहास जानने के इच्छुक मेघजनों को कह सकता हूँ कि राजतरंगिणी के मेघवाहन की कहानी में मेघों के इतिहास का कोई सिरा नज़र नहीं
आता. वैसे भी मेघवाहन को पौराणिक कथाओं के साथ हैशटैग किया गया है जो सोद्देश्य
किया गया है, ज़ाहिरा तौर पर यह इतिहास में बहुत कन्फ्यूज़न पैदा करता है. इस बारे में विकिपीडिया
पर भरोसा करना अपनी ईमानदारी पर शक करने से भी बुरा है.
बेहतर है कि राजतरंगिणी के 'मेघवाहन' को समय की धारा
में बह जाने दीजिए. वैसे आपकी कोशिशों को रोकने की मेरी मंशा नहीं है.
इतिहास को जब उठाना होगा वो उठेगा ... किसी के रोके कहाँ रूकती हिया ये धरा ...
ReplyDeleteदिलचस्प है लेख ...