तो ‘इच्छाधारी नाग’ की कथा बाकी रह गई थी.
उस कथा की जड़ ज़रूर पौराणिक कथाओं में रही होगी जो भारत के वंचित समाजों को मूर्ख बनाने के लिए लिखी गई थीं. ऐसा बहुत से विद्वानों का मानना है. यदि ये प्रतीकात्मक कथाएँ किसी भी तरह से नागवंशियों को लक्ष्य करके लिखी गई हैं तो उसके कुछ स्पष्ट अर्थ भी ज़रूर होंगे.
एक तेलुगु फिल्म का डॉयलाग था कि ‘पुलि’ के मुकाबले ‘गिलि’ अधिक खतरनाक होता है. मतलब ‘शेर-वेर’ में से ‘वेर’ अनदेखा है और खतरनाक है. यानि ‘नाग’ को हम जानते हैं लेकिन ‘इच्छाधारी नाग’ एक अनजाना शत्रु है. उसका भय काल्पनिक है इसी लिए बड़ा है. लेकिन वो आइने (भ्रम) में से दिख जाएगा (आपको नहीं, फिल्म बनाने वाले को). तो उस नकली भय से बचाव ज़रूरी है जो मंत्र-ताबीज़, टोने-टोटके, सँपेरे-बीन, यज्ञ-हवन से लेकर पुलिस-फौज आदि से संभव हो सकता है, ऐसा फिल्मकार दिखाते हैं. वैसे फिल्म में एक आस्तिक-से आदमी की मौजूदगी और उसकी सहायता तो न्यूनतम शर्त है ही. कुल मिला कर इन फिल्मों का सार यह होता है कि नाग को या नाग-जैसी किसी चीज़ को कहीं भी मार डालना अत्मरक्षा-जैसा होगा. यह नागों जैसे भोले-भाले जीवों के लिए खतरे की घंटी रही है जो वैसे भी इंसानों से डरे-छिपे फिरते हैं.
नागो और नागवंशियो, अमां जाओ यार! तुम इन कथाओं से पीछा नहीं छुड़ा सकते. हाँ, एनिमल प्रोटेक्शन के नाम पर कुछ कार्य हुआ है जो केवल एनिमल्ज़ के लिए है. नागिन का श्राप लोगों पर पड़ता दिखाया जाता है लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में नागों का श्राप फिल्मकारों पर नहीं पड़ता.
पुराने ज़माने में नागवंशियों को पत्थरों पर उकेरा जाता था लेकिन अब फोटोशॉप का शाप पड़ा है. कह लो, क्या कहते हो? फिल्म में इच्छाधारी नागिन की एंट्री बहुत आकर्षक और भयानक होती है. नहीं?
उस कथा की जड़ ज़रूर पौराणिक कथाओं में रही होगी जो भारत के वंचित समाजों को मूर्ख बनाने के लिए लिखी गई थीं. ऐसा बहुत से विद्वानों का मानना है. यदि ये प्रतीकात्मक कथाएँ किसी भी तरह से नागवंशियों को लक्ष्य करके लिखी गई हैं तो उसके कुछ स्पष्ट अर्थ भी ज़रूर होंगे.
एक तेलुगु फिल्म का डॉयलाग था कि ‘पुलि’ के मुकाबले ‘गिलि’ अधिक खतरनाक होता है. मतलब ‘शेर-वेर’ में से ‘वेर’ अनदेखा है और खतरनाक है. यानि ‘नाग’ को हम जानते हैं लेकिन ‘इच्छाधारी नाग’ एक अनजाना शत्रु है. उसका भय काल्पनिक है इसी लिए बड़ा है. लेकिन वो आइने (भ्रम) में से दिख जाएगा (आपको नहीं, फिल्म बनाने वाले को). तो उस नकली भय से बचाव ज़रूरी है जो मंत्र-ताबीज़, टोने-टोटके, सँपेरे-बीन, यज्ञ-हवन से लेकर पुलिस-फौज आदि से संभव हो सकता है, ऐसा फिल्मकार दिखाते हैं. वैसे फिल्म में एक आस्तिक-से आदमी की मौजूदगी और उसकी सहायता तो न्यूनतम शर्त है ही. कुल मिला कर इन फिल्मों का सार यह होता है कि नाग को या नाग-जैसी किसी चीज़ को कहीं भी मार डालना अत्मरक्षा-जैसा होगा. यह नागों जैसे भोले-भाले जीवों के लिए खतरे की घंटी रही है जो वैसे भी इंसानों से डरे-छिपे फिरते हैं.
नागो और नागवंशियो, अमां जाओ यार! तुम इन कथाओं से पीछा नहीं छुड़ा सकते. हाँ, एनिमल प्रोटेक्शन के नाम पर कुछ कार्य हुआ है जो केवल एनिमल्ज़ के लिए है. नागिन का श्राप लोगों पर पड़ता दिखाया जाता है लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में नागों का श्राप फिल्मकारों पर नहीं पड़ता.
पुराने ज़माने में नागवंशियों को पत्थरों पर उकेरा जाता था लेकिन अब फोटोशॉप का शाप पड़ा है. कह लो, क्या कहते हो? फिल्म में इच्छाधारी नागिन की एंट्री बहुत आकर्षक और भयानक होती है. नहीं?
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