"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


27 November 2018

The Legend of Porus - पोरस की गाथा - 1

ताराराम जी अकसर बहुत रुचिकर ऐतिहासिक संदर्भ शेयर करते हैं. हाल ही में उन्होंने कर्नल कन्निंघम का एक रेफरेंस भेजा. याद आया कि कभी मैंने उसका हिंदी अनुवाद किया था. Age factor you know. 🙂

इससे पहले पढ़ चुका हूँ कि प्राचीन भारत के सिंधु क्षेत्र की कई जात-बिरादरियों ने पोरस को अपनी जात-बिरादरी का बताया है. उन बिरादरियों में पढ़े-लिखे लोग थे जिन्होंने इतिहास में अपने समाज की जगह बनाने के लिए कुछ संदर्भ लिए, आलेख लिखे और उन्हें आधार बना कर मनोवांछित साहित्य की रचना की है और उसे वे इतिहास कहते हैं ठीक उसी तरह जैसे हमारे यहाँ मिथकीय कहानियों को इतिहास बताने की परंपरा रही है. ग्रीक और भारतीय इतिहासकारों द्वारा लिखे गए पोरस के इतिहास में काफी पृष्ठ  खाली पड़े थे जिन पर कब्ज़ा जमाने की होड़-सी लगी है, विशेषकर कथा-कहानियों के ज़रिए. लेकिन संदर्भों की नाजानकारी और लेखन कौशल के अभाव में मेघ समाज ने अधिकारपूर्वक उन पृष्ठों पर कोई दावा नहीं ठोका. हलाँकि उनका एक दावा बनता है.

प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता अलैग्ज़ैंडर कन्निंघम ने मेघ जाति को मद्र (मेघाद्रु- ‘मेघों की नदी’- से व्युत्पन्न शब्द) / मेद (मेघ=मेध=मेद) जाति का ही बताया है. श्री आर.एल. गोत्रा ने अपने लंबे आलेख ‘Meghs of India’ में बताया है कि वेदों में मेघ और मेद शब्द आपस में अदल-बदल कर लिखे गए हैं. महाराजा पोरस मद्र नरेश थे. (इस बात को समझ लेना ज़रूरी है कि किन्हीं नदियों के किनारे या क्षेत्रों में बसे लोगों के नाम पर उस नदी या क्षेत्र का नाम रख दिया जाता था). इस नज़रिए से पोरस के मेघ जाति के अग्र-पुरुष (ancester) होने का ऐतिहासिक उल्लेख मिलता है. (ताराराम जी द्वारा उपलब्ध कराया गया संदर्भ- Cunningham Reports, Vol-2, A S I reports- 1862-63.64-65. Page-2, 11 to 13)

महाराजा पोरस मेघों के अग्रणीय पुरुष थे इस जानकारी को पुख़्ता करने वाली कुछ और कड़ियों की प्रतीक्षा है. संभव है राजा पोरस मेघवंश या उसके निकट भाई नागवंश के हों. कथाओं से भरी पोरस की गाथा आज भी कितनी तरल है उसके बारे में आप इस लिंक पर जा कर जान सकते हैं. इस विषय पर एक और पोस्ट शीघ्र आएगी. बाकी काम ताराराम जी का. 🙂



2 comments:

  1. हिंदी अनुवाद के लिए आभार।।।

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  2. रोचक इतिहास है अपने समाज का ...
    खोज जारी रहना ही उचित होता है ...

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