जाट आरक्षण खत्म कर दिया गया. काफी बहस छिड़ी है. इस मुद्दे को कोई नहीं देख रहा कि आरक्षण संबंधी कमज़ोर प्रावधान करके सरकार ने दलित-पिछड़े लोगों को जम कर अपमानित किया है. कभी लाभ दिया कभी वापस ले लिया. इस बारे में कोर्ट को सरकार का ही हिस्सा मानें. आरक्षण के संबंध में नियम नहीं बनाए गए. केवल अनुदेशों से काम चलाया गया. कानूनी तौर पर यह बहुत उलझाया गया मामला है. इस मामले में सुझाव बहुत आते हैं, आते रहेंगे. आरक्षण के खिलाफ और हक में बहुत दलीलें दी जाती रहेंगी. लेकिन प्राइवेट क्षेत्र में (जहाँ सबसे अधिक रोज़गार है और आगे भी होगा) वहाँ विभिन्न वर्गों के जाति विचार से मुक्त प्रतिनिधित्व पर गंभीरता से कार्य करने की बात कोई नहीं करता.
आरक्षण ख़त्म होने में अब हरियाणा का जाट इसमें अपना छीना गया हक देखता है और हरियाणा का यादव इसी में अपनी खुशी ढूँढ रहा है. ओबीसी में यदि एकता की समझ पैदा हो गई होती तो रोना किस बात का था और यदि ओबीसी और एससी/एसटी सामाजिक न सही राजनीतिक रूप से थोड़े भी जागृत हो गए होते तो उनके लिए बेहतर वातावरण बना होता. जो लोग फूलन देवी को आज भी डाकू मानते हैं उन्हें समझना चाहिए कि ओबीसी के वोटरों की एकता और ओबीसी सरकार ने उसे सांसद बनाया और उस वीरांगना ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ओबीसी, खासकर महिलाओं, की स्थिति पर जागरूकता फैलाने वाले भाषण दिए. ज़रूरी है कि ओबीसी और वंचित जमातें आपस में एकता लाएँ ताकि सरकार से अपने हित की नीतियाँ बनवा सकें.
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