जम्मू से मेरे मित्र श्री ताराचंद भगत ने एक वीडियो मुझे भेजा था जिसे देख कर कई सवाल मन में खड़े हुए. वीडियो का लिंक नीचे लगा दिया है.
चंबा (हि.प्र) के इस सिप्पी समूह के जिन लोगों से बातचीत ताराचंद भगत जी ने की है वे जम्मू के बसोहली (Basohli) ज़िला के भूँड (Bhoond) गाँव में बसे हुए हैं. इसमें जिन कमलूराम जी से बात की गई है वे बताते हैं कि वे ठाकुरों और ब्राह्मणों के घर का खा लेते हैं. ताराचंद जी ने फोन पर बताया है कि इसका अर्थ यह न निकाला जाए कि उस गाँव के ठाकुर और ब्राह्मण इनके हाथ का खा लेते हैं. हालाँकि चंबा की रियासत में मेघों को छोटे ठाकुर कह कर भी पुकारा जाता था और इस जाति ने अपने भीतर से पुरोहित पैदा किए हैं अतः देखना पड़ेगा कि कमलू जी का अभिप्रायः कहीं उन्हीं ठाकुरों और पुरोहितों से तो नहीं है. कमलूराम जी का कहना है कि महाशय, मेघ, चमार जैसी जातियाँ सिप्पयों से नीचे मानी जाती हैं. वे स्वीकार करते हैं कि उन्हीं की जाति के लोग साथ लगते राज्यों में एससी हैं लेकिन ख़ुद इनका समुदाय हिमाचल प्रदेश की एससी सूची में नहीं है. (यह स्पष्टतः राजनीतिक मामला है.)
बयान की गई सिप्पी लोगों की स्थिति, भाषा, व्यवसाय, आर्थिक हालत और चेहरों की बनावट से लगता है कि वे मेघवंशी हैं साथ ही अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित भी हैं.
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