प्रतिदिन यह प्रश्न उठता है कि मेघवंशी जातियों में एकता क्यों नहीं होती. इस प्रश्न की गंभीरता का रंग अत्यंत काला है जिसे रोशनी की ज़रूरत है. यदि मेघवंशियों का आधुनिक इतिहास लिखा जाए तो उसमें एक वाक्य अवश्य लिखा रहेगा कि इनमें एकता नहीं है. एकता न होना एक नकली चीज़ है जो गुलामी का जीवन जी रहे/जी चुके लोगों में पाई जाती है. यह एक मानसिकता है जो यात्नाएँ दे कर गुलामों में विकसित की जाती है. उन्हें विश्वास दिलाया जाता है कि वे न तो एक हैं और न ही एक हो सकते हैं. उनके समूहों के नाम, धर्म आदि अलग कर दिए जाते हैं. उन्हें यह विचार दिया जाता है कि उनका धर्म, जाति या दर्जा अलग-अलग है. इस तरह उन्हें एक-दूसरे से अलग रहने की आदत डाल दी जाती है और सामाजिक दबाव से मजबूर किया जाता है कि वे एक दूसरे से संपर्क न बढ़ाएँ. जाति आधारित इस गुलामी (Caste based slavery), जिसे भारतीय गुलामी (Indian slavery) कहा जाता है, में बने रहने की मजबूरी याद दिलाई जाती रहती है. इससे उन्हें मानवीय अधिकारों (Human rights) से दूर रखना आसान हो जाता है. वे शिक्षा, कमाई के बेहतर साधनों, सम्मानपूर्ण जीवन आदि से दूर कर दिए जाते हैं. यदि शिक्षा द्वारा इस तथ्य को समझ लिया जाए तो इस मानसिकता से पूरी तरह पार पाया जा सकता है और सामाजिक एकता लाई जा सकती है. इसका लाभ यह होगा कि आत्मविश्वास बढ़ेगा और सब के साथ मिल कर चलने की शक्ति आएगी. लोकतंत्र में अपने विकास के मुद्दों पर बात कहने के लिए सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मंच साझा करने की और संगठन की आवश्यकता है. अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का यही एक रास्ता है.
2 comments:
- एकता तो ज़रूरी है, मेघवंश समुदाय में भी और सब समुदायों के बीच भी, तभी सच्चा विकास संभव है... जब तक लोग एक दुसरे को नीचा दिखाने या गुलाम बनाने की सोच रखेंगे... देश का विकास नहीं हो पाएगा. एक अच्छी पोस्ट जिसमें सालों साल चले आ रहे अन्याय के प्रति पीड़ा साफ़ झलकती है. इश्वर करे की सभी मिल के आगे बड़ सकें
- Education is the answer indeed !
सार्थक पोस्ट ..शुभकामनायें
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