"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


10 May 2011

Ancient History of Meghs - मेघों का पुराना इतिहास

पुराना इतिहास

मेरे प्यारे मेघ भाईबहनों और बच्चो! अब तक जो बातें मैंने लिखी हैंजिसके पढ़ने मेंजानने में और सोचने में आपका पर्याप्त समय लग गयाइसलिए लिखी हैं कि आपको विश्वास हो जाए कि आपके अन्दर जो यह इच्छा है कि हम कौन हैंमेघ जाति कब और कैसे बनीठीक है. आप यह सोचने का अधिकार रखते हैं.
इस बात को जानने के लिए पुराने साहित्य का सहारा लेना पड़ता है. मगर अनुभव में आया है कि पुराने साहित्य में जो कुछ लिखा हैउसमें स्वार्थवश तब्दीली की गई है और अब भी करते हैं. अन्य पुस्तकों की बात छोडिये सभी धर्मोंपंथों के पवित्र ग्रथों में कुछ ऐसी बातें लिखी हुई थीं जो समय आने पर यथार्थ सिद्ध न हुईं. उनको या तो निकाल दिया गया या उसका अर्थ बदल दिया गया. दूसरे ये जितनी पुस्तकें हैं सब स्वरों और वर्णों के मेल से लिखी जाती हैं. समय के मुताबिक लोगों के भावोंविचारों में तब्दीली आने के बादवो स्वर वर्ण तब्दील करने पड़ते हैं. ये वर्ण आदमी के बनाए हुए हैं. आदमी की अक्ल से बनी हुई कोई भी चीज़ सदा ठीक नहीं रहती. उसमें समय के मुताबिक तब्दीली लानी पड़ती है. ये पुरानी किताबें समय के मुताबिक लिखी हुई हैं जो देश और समाज के लिए इस समय हानिकारक सिद्ध हो रही हैंउनको बदला जाए. जो बातें अच्छी हैंदेश और समाज के लिए लाभप्रद हैंएकता और प्रेम सिखाती हैंउनको आम लोगों तक पहुँचाया जाए.
सत्ता प्राप्त होने पर कुछ लोगों ने पुराने साहित्य में तब्दीलियाँ  कीं. ऐसा स्वयं को ऊँचा और दूसरों को नीच बनाने के लिए किया गया. जिसकी लाठी उसकी भैंस. बलवान अपने बल के कारण जो चाहे कर सकता है. कमजोर को उसकी माननी पड़ती है. इसी असूल पर यह जातिवाद लिखा गया. ताकि उनकी सत्ता बनी रहे. भारत का इतिहास सिद्ध करता है कि समय-समय पर बाहर से लोग आएआक्रमण किएयहाँ की धरती पर कब्जा कर लिया और यहाँ के प्राचीन या आदिकाल से चलते आए निवासी दबा दिए गए. इसका उदाहरण अपने जीवन में मैंने देखा है. अब तो पाकिस्तान बन गया मगर इससे पहले जिला स्यालकोट में मेरे जन्मस्थान सुन्दरपुर गाँव के पास चिनाब दरिया के किनारे पर एक गांव था जिसका नाम कुल्लूवाल था. वहाँ पर काफी समय से मुसलमान जुलाहे रहते थे. गाँव की ज़मीन को भी वही संभालते थे. कुछ समय के बाद वहाँ हिंदू जाट आ गए और गाँव की जमीन में खेती का काम करना शुरू कर दिया. जुलाहों ने उनके आने पर खुशी मनाई क्योंकि जमीन फालतू पड़ी थी. उन्होंने समझा कि ये भी यहाँ रह करके अपना पेट पालेंगे. मगर जब महकमा माल का बन्दोबस्त आया तो भूमि और गाँव की मिल्कियत का सवाल आया. जुलाहों ने उस वक्त की सरकार के अधिकारियों को कहा कि इस गाँव में पर्याप्त समय से हम रह रहे हैं. हमारा एक पूर्वज जो पहले यहाँ आयाउसका नाम कुल्लु था और जुलाहा था. इसलिए यह गाँव भूमि समेत हमारा है. ये लोग किसान हैंअपना काम करें मगर भूमि के मालिक नहीं हो सकते. उन हिंदू जाटों ने कहा कि महाराज इस गाँव में जो हमारा पूर्वज पहले आया था उस समय यहाँ कोई नहीं था. हमारे पूर्वज ने एक झोंपड़ी या कुल्ली बनाई और फिर उस कुल्ली पर दो-तीन कुल्लियाँ और बना लीं और उस जगह का नाम कुल्लु मशहूर हो गया और गाँव का नाम कुल्लूवाल रखा गया. हम इस गाँव व ज़मीन के मालिक हैं. क्योंकि उनके हाथ में सत्ता थीगिनती में अधिक थेइसलिए बन्दोबस्त में गाँव और ज़मीन के मालिक बन गए. अब उस गाँव का इतिहास कहता है कि वहाँ के मालिक जाट थे जोकि ग़लत था और ज़बरदस्ती बनाया गया था.
इसी तरह हम मेघ जाति का कोई इतिहास किताबों से देखना चाहेंमाल के बन्दोबस्त या और जाति कोषों से पता करना चाहें तो उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. किताबों में लिखा ग़लत भी हो सकता है और खास तौर पर जो लोग यह जानना चाहते हैं कि हम कौन हैंउनके लिए पुराने पुस्तकीय इतिहास काम नहीं देते. सन्त कबीर जो महान सन्त हुए हैं उन्होंने एक शब्द लिखा हैः-
मेरा तेरा मनुआ कैसे इक होई रे।।
मैं कहता हौं आँखन देखीतू कहता कागद की लेखी ।।
इसमें कबीर साहिब फरमाते हैं कि जो किताबों में लिखा हुआ है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता.
मैं कहता सुरझावनहारीतू राख्यो उरझाई रे ।।
मैं वो बात कहता हूँ जिसे साक्षात्‌ देखकर पूरी शांति प्राप्त कर सकें और तुम किताबों में पढ़ कर वो बातें करते हो जिससे व्यर्थ उलझन पैदा हो जाए. किताबों में पढ़ कर कोई भी पूरे तौर पर शांति हासिल नहीं कर सकता.
मैं कहता तू जागत रहियोतू रहता है सोई रे।
मैं कहता निर्मोही रहियोतू जाता है मोही रे ।।
जुगन जुगन समझावत हाराकही न मानत कोई रे।
तू तो रण्डी फिरे बिहण्डीसब धन डारे खोई रे ।।
जो लोग किताबों में सच्ची बात या असलीयत की खोज करते हैंवो अपना सब कुछ खो बैठते हैं. ऐसे लोगों को कबीर साहिब रण्डी और बिहण्डी कहते हैं:-
सतगुरु धारा निर्मल बाहैवा में काया धोई रे।
कहत कबीर सुनो भाई साधोतब ही वैसा होई रे ।।
जिस वर्ण को तू जानने का इच्छुक हैउसका पता तो तब लगेगा जब जो शक्ल और वर्ण अपना समझ रखा है उसको धो डालेगा. हमें ये तरह-तरह के वर्ण मिलते हैंइनको धारण करकेधर्म की राह पर चल करहम इन वर्णों को धो सकते हैं और असली वर्ण जान सकते हैं और सच्चा सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं.
कबीर साहिब के इस शब्द से साबित हो गया है कि पुस्तकों में लिखे गए पुराने साहित्य हमारा पता नहीं दे सकते. इसी तरह मेघ वर्ण की बाबत जो कुछ किताबों में लिखा हुआ है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. इसलिए मैं आपको मेघ का वो वर्ण या रूप बताना चाहता हूँ जो हम आंखों से देखकर इन जाति-पाति के झगड़ों से निकल सकें.

(From Megh Mala written by Bhagat Munshi Ram)


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