‘जस्सड़ां वाली गाड़ी’ (Jassadan Wali Train)- अनकही कथा
चित्र गूगल के साभार |
पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए लोग एक ट्रेन का नाम बहुत लेते हैं- ‘जस्सड़ां वाली गड्डी.’ भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से आई इस गाड़ी में सवार लगभग सभी लोगों को मार डाला गया था. इसकी प्रतिक्रिया में भारत से पाकिस्तान की ओर लाशों से भरी दो गाड़ियाँ भेजी गईं. इनमें से एक की पृष्ठभूमि में खुशवंत सिंह का उपन्यास '(Train to Pakistan)' लिखा गया. जस्सड़ां वाली गाड़ी को 'Train from Pakistan' कहा जा सकता है. मैंने एक दिन यों ही अपनी सासु माँ से पूछा कि आपको जस्सड़ां वाली गाड़ी के बारे में कुछ जानकारी है तो कहने लगीं कि हाँ है. हम उसी में आए थे. इसके बाद जो कुछ उन्होंने बताया वह मैंने समेकित और व्यवस्थित किया है. जब यह घटना घटी तब वे लगभग सोलह वर्ष की थीं.
मेरी सासु माँ का नाम ध्यान देवी (घर का नाम ध्यानो) है और वे स्यालकोट के मोहल्ला प्रकाशनगर, गाँव लुट्टर की रहने वाली हैं. पिता का नाम हाड़ी राम और माता का नाम वीरो देई था.
जब यह परिवार स्यालकोट से चला तो पहले स्यालकोट छावनी में नौ दिन रुका. इस परिवार में ध्यान देवी के माता-पिता के अतिरिक्त देसराज (भाई), ज्ञान देवी (बहन), आज्ञावंती (भाभी), प्रकाश (भाई), महेश कुमार (भाई, आयु 3 वर्ष), एक नवजात बहन कांता (आयु 20 दिन) और दादी थीं. स्यालकोट छावनी से गाड़ी पकड़ी. गाड़ी ठसाठस भरी हुई थी. दरवाज़ों-खिड़कियों और छतों पर लोग भरे हुए थे. अच्छे इंसानों ने रास्ते के लिए सभी को संतरे दे कर विदा किया. ध्यान देवी ने भी दो-तीन संतरे खीसे में डाल लिए. जस्सड़ स्टेशन नारोवाल और डेरा बाबा नानक के बीच पड़ता था और डेरा बाबा नानक से पहले रावी नदी पर एक पुल था जिसे पैदल पार करना था. जस्सड़ में मुसलमानों का एक समूह आया और आऊटर सिग्नल पर गाड़ी रोक दी गई और उसे चलने नहीं दिया. ध्यान देवी बताती हैं कि यह समूह गाड़ी में सवार एक महिला शीलू (शीला) को भारत नहीं आने दे रहा था क्यों कि उसका एक मुसलमान लड़के से प्रेम रह चुका था. शीलू के पति और अन्य संबंधियों द्वारा ज़ोर ज़बरदस्ती का मुकाबला करना मारकाट की वजह बन गई. हत्याओं का दौर शुरू हुआ और लूटपाट मची. इंसानियत कोने में दुबकी रही धर्म-मज़हब हमेशा की तरह अप्रभावी हो गए. पुल से पहले ही लोगों को मारने का सिलसिला शुरू हुआ. एक नीति अपनाई गई. युवाओं को काट कर मारा गया, बूढ़ों और बच्चों को दरिया में फेंका गया. युवतियों को हाँक कर ले जाया गया. एक-एक युवती और 15-15 हाँकने वाले. वे याद करती हैं....भगदड़ ही भगदड़....
दादी पुल पार करके नहीं आई. शायद मार डाली गई. युवा भाई प्रकाश को काट कर दरिया में फेंका गया. तीन साल के भाई महेश को जीवित दरिया में फेंका गया. माँ वीरो पर गंडासे से हमला होते देखा. वह मुँह और सिर पर चोट खा कर गिर गई. लेकिन पीछे मुड़ कर मदद करने का वह समय नहीं था. जो पीछे छूट गया उसके मरे होने और ज़िंदा रहने में अंतर देखना संभव नहीं था.
पुल पार करके सुरक्षित जगह पहुँचे लोगों को इंतज़ार करने का कुछ मौका मिला कि शायद कोई और भी पुल पर से आ जाए. ज़िंदा लोगों को अपनी समस्याएँ सताने लगीं. 16 वर्षीय ध्यान देवी ने अपनी 20 दिन की बहन को उठाया हुआ था और बीच-बीच में उसे संतरे का रस दे कर चुप कराती रही. पिता की चिंता थी कि इतनी छोटी बच्ची को कहाँ लिए फिरेंगे. कौन पालेगा. नन्हें शिशु को ध्यान देवी के हाथ से छीन कर दरिया में फेंकने की तैयारी कई बार की गई. परंतु ध्यान देवी ने अपनी बहन नहीं दी. वह सब समझती थी. हर बार उसे वापस छीन लेती और संतरे का रस देती. शाम होते-होते पुल से कुछ लोग आते दिखे. ध्यान देवी को अपनी माँ घायल अवस्था में आती दिखाई दी. फिर दरिया में फेंका गया छोटा भाई महेश भी आता दिखा. तीन वर्षीय महेश अपने गाँव की छोटी-छोटी दो अन्य बच्चियों को अपनी छोटी-छोटी उँगलियाँ थमा कर साथ ला रहा था.
सासु माँ की कहानी तीन घंटे चली. मेरी रुचि यह जानने में थी कि शीलू कौन थी जिससे कारण मारकाट हुई. शीलू बहुत सुंदर थी. उसकी पहली माँ का नाम भागवंती और दूसरी माँ का नाम सुमित्रा था. पिता संतराम बढ़ई थे. शीलू एक मुसलमान लड़के से प्रेम करती थी. माता-पिता किसी मुसलमान से उसके विवाह के खिलाफ थे. उसकी शादी एक सिख परिवार में कर दी गई. शीलू सहित वह सारा परिवार जस्सड़ां वाली गाड़ी में मारा गया. शीलू के माता-पिता पाकिस्तान में रह गए और आगे चल कर मुसलमान बने.
शीलू मारी गई, जस्सड़ां वाली गाड़ी निर्दयता से काट दी गई. कई सवाल हैं जो अभी तक पीछा नहीं छोड़ते.
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21 comments:
- उस समय की न जाने कितनी ऐसी यादें हमारे बज़ुर्गों के दिलों को अब भी मथती होंगी। ये मार्मिक यादें किसी को भी हिला देने के लिये काफी हैं। हम से बाँटने के लिये धन्यवाद।
- hruduy vidaarak drushy .aur vaardate......hum aapkee maansik haalat samjh sakte hai.......
- मार्मिक यादें हम से बाँटने के लिये धन्यवाद।
- Above incident is very tragic. Luckily, Dhyan Deviji, her 20 days old Sister Kanta, brother Mahesh (3 years) and her mother were able to surive this stiff anguish but others were not so lucky. Innocent people are always a soft target for fanatic crowd. Sir, please give my sincere regards and feet touching to Dadi Dhyan Deviji for consoling her 20 days old sister and facing barbarism of fanatic people. Navin Bhoiya
- विभाजन और बाद की ऐसी घटनाएं बड़ी ह्रदय विदारक लगती हैं. ध्यान देवी जी के शोर्य को नमन.
- बहुत ही दर्द भरी दास्तान है... यह कैसी आज़ादी हम लाए थे...जिसने हमारे अपने छीन लिए..घर-बार छीन लिया और हमें शर्नारथी बना दिया ।
- सबसे पहले तो नानी जी को और उनके साहस को कोटि कोटि नमन! इतनी दुखभरी और मार्मिक परिस्तिथि में भी उनके लिए अपनी छोटी सी बहन की सुरक्षा एहम थी. आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ की आपने यह सच्ची और महत्वपूर्ण घटना हम सब के साथ बाँटी... शायद इन्हीं एतिहासिक कहानियों से ही हम कुछ सीख ले सकें...
- . आँख में आंसू आ गए ! अच्छा किया आपने ये जानकारी हमारे साथ बांटी। जरूरी है हम सब के लिए ये सब जानना । बहुत से लोगों की आँखें खुलेंगी। शायद न भी खुलें। --आभार। .
- दर्द भरी दास्तान
- हृदय विदारक... पिंजर का वर्णन जैसे एक बार दहला गया...क्या हालात रहे होंगे सोच पाना भी कठिन है.
- यह संस्मरण पढ़कर रोंगटे खड़े हो गए । धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर स्त्रियाँ सबसे अधिक सताई जाती हैं । इससे बड़ी कायरता और क्या होगी । आपने यशपाल के झूठा -सच और खुशवन्त सिंह के ट्रेन टू पाकिस्तान की याद ताज़ा कर दी । बहुत ही स्तरीय पोस्ट है । आप इस तरह के अनुभव और भी लिखिए ।
- बंटवारे के समय की कुछ किताबें मैंने पढ़ी हैं लेकिन किसी किताब से अधिक प्रभावित किया आपके इस संस्मरण ने। मन द्रवित हो उठा...
- विभाजन का दिल दहलाने वाला लोमहर्षक सच आज भी हमें सोचने पर विवश कर देता है. उन सभी परिवारों की पीड़ा आज भी मन को उद्वेलित कर देती है. यही कामना है कि हमारे अतीत की छाया हमारे वर्तमान और आगत को धुंधला न कर दे, और जीवन के इस सफ़र मे नरक कुंडों की जगह हर जगह शीतल प्राण दायिनी झरनों के झुंड मिलें. और इस के लिए हम सभी मिलकर अपने अपने स्तरों पर जिंदगी के खूबसूरत ख्वाबों को बचाने का प्रयास करें. आभार. सादर, डोरोथी.
- विभाजन पर कई किताबें पढ़ी हैं लेकिन इसकी विभीषिका इतनी भयावह है कि कोई नई अनकही कहानी हो रोंगटे खड़ेकर जाती है।
- बहुत ही अच्छा लिखा है आप ने पढ़ कर ऐसा लग रहा था मन्नो पड़ नहीं रहे हों सुन रहै हों कोई कहानी जो की सच्ची है ....हर एक वाक्य एक द्रश्य की तरह आँखों मैं घूम रहा है जैसे कोई फिल्म चल रही हो सामने ....आगे भी लिखयेगा जितना जो कुछ भी याद हो आप को इस विषय मैं .....
- दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
- दास्ताँ पढकर आँखों में आसूं आ गए ... धर्म/मज़हब किस तरह इंसान को जानवर बना देता है ये उसका एक उदाहरण है ... आपको और आपके परिवार को दीपावाली की हार्दिक शुभकामनायें ... इस पावन पर्व के अवसर में उम्मीद यही है कि इंसान फिर से इंसान होना सीख ले ...
- बहुत ही मार्मिक ...
- भारत की नींव इसी कड़वी सच्चाई पर है, ये पंजाब और वहां से आए लोग तो सतत याद रखेंगे। पर बड़े ही दु:ख की बात है कि बाकी लोग इसे भूलते जा रहे हैं। जीवन किस तरह चलता है इसकी जानकारी सभी को होनी चाहिए। संस्मरण हमेशा प्रस्तुत करते रहना चाहिए। अगर कुछ और संस्मरणों का संकलन हो सके तो अवश्य ही कीजिए। ये ऐतिहासिक दस्तावेज का दर्जा भी पा लेंगे।
- @ धन्यवाद राहुल. सुने हुए दो-एक संस्मरण और लिखना चाहूँगा. @ सभी टिप्पणीकारों को धन्यवाद. आपने जो महसूस किया वही मानव धर्म कहलाता है.
- जब भी किसी से इस मारकाट के बारे में सुनता हूं या पढ़ता हूं, तो दिल दहल जाता है...... चाहे यह दृश्य मैंने नहीं देखे, पर यह इतने हृदयविरादक हैं कि दिमाग में वैसी ही छवियां तैरने लगती हैं.... नवराही आचार्य
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